भारतीय साक्ष्य (दूसरा) विधेयक, 2023
अध्याय 1- प्रारंभिक
1. संक्षिप्त नाम, लागू होना और प्रारंभ ।
2. परिभाषाएं ।
अध्याय 2- तथ्यों की सुसंगति
3. विवाद्रद्यक तथ्यों और सुसंगत तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
4. एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति ।
5. वे तथ्य, जो विवाद्द्यक तथ्यों या सुसंगत तथ्यों के प्रसंग, हेतुक या परिणाम हैं ।
6. हेतु, तैयारी और पूर्व का या पश्चात् का आचरण ।
7. विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्यों के स्पष्टीकरण या पुरःस्थापन के लिए आवश्यक तथ्य ।
8. सामान्य परिकल्पना के बारे में षड्यंत्रकारी द्वारा कही गई या की गई बातें।
9. वे तथ्य जो अन्यथा सुसंगत नहीं हैं कब सुसंगत हैं।
10. रकम अवधारित करने के लिए न्यायालय को समर्थ करने की प्रवृत्ति रखने वाले तथ्य नुकसानी के लिए वादों में सुसंगत हैं।
11. जब कि अधिकार या रूढ़ि प्रश्नगत है, तब सुसंगत तथ्य।
12. मन या शरीर की दशा या शारीरिक संवदेना का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य।
13. कार्य आकस्मिक या साशय था इस प्रश्न पर प्रकाश डालने वाले तथ्य।
14. कारबार के अनुक्रम का अस्तित्व कब सुसंगत है।
15. स्वीकृति की परिभाषा ।
16. कार्यवाही के पक्षकार या उसके अभिकर्ता द्वारा स्वीकृति।
17. उन व्यक्तियों द्वारा स्वीकृतियां जिनकी स्थिति वाद के पक्षकारों के विरुद्ध साबित की जानी चाहिए।
18. वाद के पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट व्यक्तियों द्वारा स्वीकृतियां।
19. स्वीकृतियों का उन्हें करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध और उनके द्वारा या उनकी ओर से
20. दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु के बारे में मौखिक स्वीकृतियां कब सुसंगत होती हैं।
21. सिविल मामलों में स्वीकृतियां कब सुसंगत होती हैं।
22. उत्प्रेरणा, धमकी, प्रपीड़न या वचन द्वारा कराई गई संस्वीकृति दाण्डिक कार्यवाही में कब
23. पुलिस अधिकारी से की गई संस्वीकृति ।
24. साबित संस्वीकृति को, जो उसे करने वाले व्यक्ति और एक ही अपराध के लिए संयुक्त रूप से विचारित अन्य को प्रभावित करती है विचार में लेना।
25. स्वीकृतियां निश्चायक सबूत नहीं हैं किंतु विबंध कर सकती हैं। उन व्यक्तियों के कथन, जिन्हें साक्ष्य में बुलाया नहीं जा सकता
26. वे दशाएं जिनमें उस व्यक्ति द्वारा सुसंगत तथ्य का किया गया कथन सुसंगत है, जो मर गया है या मिल नहीं सकता, इत्यादि।
27. किसी साक्ष्य में कथित तथ्यों की सत्यता को पश्चातवर्ती कार्यवाही में साबित करने के लिए उस साक्ष्य की सुसंगति।
28. लेखा-पुस्तकों की प्रविष्टियां कब सुसंगत हैं।
29. कर्तव्य-पालन में की गई लोक अभिलेख या इलैक्ट्रानिकी अभिलेख की प्रविष्टियों की सुसंगति ।
30. मानचित्रों, चार्टों और रेखांकों के कथनों की सुसंगति।
31. किन्हीं अधिनियमों या अधिसूचनाओं में अन्तर्विष्ट लोक प्रकृति के तथ्य के बारे में कथन की सुसंगति ।
32. विधि की पुस्तकों में अन्तर्विष्ट किसी विधि के कथनों की सुसंगति, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक या डिजिटल प्ररूप भी हैं ।
33. कथन किसी बातचीत, दस्तावेज, इलैक्ट्रानिक अभिलेख, पुस्तक या पत्रों या कागज-पत्रों की आवली का भाग हो, तब क्या साक्ष्य दिया जाए।
34. द्वितीय वाद या विचारण के वारणार्थ पूर्व निर्णय सुसंगत हैं।
35. प्रोबेट इत्यादि विषयक अधिकारिता के किन्हीं निर्णयों की सुसंगति।
36. धारा 35 में वर्णित से भिन्न निर्णयों, आदेशों या डिक्रियों की सुसंगति और प्रभाव।
37. धारा 34, धारा 35 और धारा 36 में वर्णित से भिन्न निर्णय आदि कब सुसंगत हैं ।
38. निर्णय अभिप्राप्त करने में कपट या दुस्संधि या न्यायालय की अक्षमता साबित की जा सकेगी।
39. विशेषज्ञों की रायें ।
40. विशेषज्ञों की रायों से संबंधित तथ्य।
41. हस्तलेख और हस्ताक्षर के बारे में राय कब सुसंगत है।
42. साधारण रूढ़ि या अधिकार के अस्तित्व के बारे में रायें कब सुसंगत हैं ।
43. प्रथाओं, सिद्धान्तों आदि के बारे में रायें कब सुसंगत हैं।
44. नातेदारी के बारे में राय कब सुसंगत है।
45. राय के आधार कब सुसंगत हैं।
46. सिविल मामलों में अध्यारोपित आचरण साबित करने के लिए शील विसंगत है।
47. दाण्डिक मामलों में पूर्वतन अच्छा शील सुसंगत है।
48. कतिपय मामलों में शील या पूर्व लैंगिक अनुभव के साक्ष्य का सुसंगत न होना।
49. उत्तर में होने के सिवाय पूर्वतन बुरा शील सुसंगत नहीं है।
50. नुकसानी पर प्रभाव डालने वाला शील।
अध्याय 3- तथ्य, जिनका साबित किया जाना आवश्यक नहीं है
51. न्यायिक रूप से अवेक्षणीय तथ्य साबित करना आवश्यक नहीं है ।
52. वे तथ्य, जिनकी न्यायिक अवेक्षा न्यायालय करेगा ।
53. स्वीकृत तथ्यों को साबित करना आवश्यक नहीं है ।
अध्याय 4- मौखिक साक्ष्य के विषय में
54. मौखिक साक्ष्य द्वारा तथ्यों का साबित किया जाना ।
55. मौखिक साक्ष्य का प्रत्यक्ष होना ।
अध्याय 5- दस्तावेजी साक्ष्य के विषय में
56. दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु का सबूत ।
57. प्राथमिक साक्ष्य ।
58. द्वितीयक साक्ष्य ।
59. दस्तावेजों का प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना ।
60. अवस्थाएं जिनमें दस्तावेजों के सम्बन्ध में द्वितीयक साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
61. इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख ।
62. इलैक्ट्रानिक अभिलेख से संबंधित साक्ष्य के बारे में विशेष उपबंध ।
63. इलैक्ट्रानिक अभिलेखों की ग्राह्यता ।
64. पेश करने की सूचना के बारे में नियम ।
65. जिस व्यक्ति के बारे में अभिकथित है कि उसने पेश की गई दस्तावेज को हस्ताक्षरित किया था या लिखा था उस व्यक्ति के हस्ताक्षर या हस्तलेख का साबित किया जाना ।
66. इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर के बारे में सबूत ।
67. ऐसे दस्तावेज के निष्पादन का साबित किया जाना, जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित है ।
68. जब किसी भी अनुप्रमाणक साक्षी का पता न चले, तब सबूत ।
69. अनुप्रमाणित दस्तावेज के पक्षकार द्वारा निष्पादन की स्वीकृति ।
70. जबकि अनुप्रमाणक साक्षी निष्पादन का प्रत्याख्यान करता है, तब सबूत ।
71. उस दस्तावेज का साबित किया जाना जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित नहीं है ।
72. हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा की तुलना अन्यों से जो स्वीकृत या साबित हैं ।
73. डिजिटल हस्ताक्षर के सत्यापन के बारे में सबूत ।
74. लोक और प्राइवेट दस्तावेज ।
75. लोक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां ।
76. प्रमाणित प्रतियों के पेश करने द्वारा दस्तावेजों का सबूत ।
77. अन्य शासकीय दस्तावेजों का सबूत ।
78. प्रमाणित प्रतियों के असली होने के बारे में उपधारणा ।
79. साक्ष्य, आदि के अभिलेख के तौर पर पेश की गई दस्तावेजों के बारे में उपधारणा ।
80. राजपत्रों, समाचारपत्रों, और अन्य दस्तावेजों के बारे में उपधारणा ।
81. इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख में राजपत्र के बारे में उपधारणा ।
82. सरकार के प्राधिकार द्वारा बनाए गए मानचित्रों या रेखांकों के बारे में उपधारणा ।
83. विधियों के संग्रह और विनिश्चयों की रिपोर्टों के बारे में उपधारणा ।
84. मुख्तारनामों के बारे में उपधारणा ।
85. इलैक्ट्रानिक करारों के बारे में उपधारणा ।
86. इलैक्ट्रानिक अभिलेखों और इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर के बारे में उपधारणा ।
87. इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्रों के बारे में उपधारणा ।
88. विदेशी न्यायिक अभिलेखों की प्रमाणित प्रतियों के बारे में उपधारणा ।
89. पुस्तकों, मानचित्रों और चार्टों के बारे में उपधारणा ।
90. इलैक्ट्रानिक संदेशों के बारे में उपधारणा ।
91. पेश न किए गए दस्तावेजों के सम्यक् निष्पादन आदि के बारे में उपधारणा ।
92. तीस वर्ष पुराने दस्तावेजों के बारे में उपधारणा ।
93. पांच वर्ष पुराने इलैक्ट्रानिक अभिलेखों के बारे में उपधारणा ।
अध्याय 6- दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा मौखिक साक्ष्य के अपवर्जन के विषय में
94. दस्तावेजों के रूप में लेखबद्ध संविदाओं, अनुदानों और संपत्ति के अन्य व्ययनों के निबन्धनों का साक्ष्य ।
95. मौखिक करार के साक्ष्य का अपवर्जन ।
96. संदिग्धार्थ दस्तावेज को स्पष्ट करने या उसका संशोधन करने के साक्ष्य का अपवर्जन । 97. विद्यमान तथ्यों को दस्तावेज के लागू होने के विरुद्ध साक्ष्य का अपवर्जन ।
98. विद्यमान तथ्यों के सदंर्भ में अर्थहीन दस्तावेज के बारे में साक्ष्य ।
99. उस भाषा के लागू होने के बारे में साक्ष्य जो कई व्यक्तियों में से केवल एक को लागू हो सकती है ।
100. तथ्यों के दो संवर्गों में से जिनमें से किसी एक को भी वह भाषा पूरी की पूरी ठीक-ठीक लागू नहीं होती, उसमें से एक को भाषा के लागू होने के बारे में साक्ष्य ।
101. न पढ़ी जा सकने वाली लिपि आदि के अर्थ के बारे में साक्ष्य ।
102. दस्तावेज के निबन्धनों में फेर-फार करने वाले करार का साक्ष्य कौन दे सकेगा ।
103. भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के विल सम्बन्धी उपबन्धों की व्यावृत्ति ।
अध्याय 7- सबूत के भार के विषय में
104. सबूत का भार ।
105. सबूत का भार किस पर होता है ।
106. विशिष्ट तथ्य के बारे में सबूत का भार ।
107. साक्ष्य को ग्राह्य बनाने के लिए जो तथ्य साबित किया जाना हो, उसे साबित करने का भार ।
108. यह साबित करने का भार कि अभियुक्त का मामला अपवादों के अन्तर्गत आता है ।
109. विशेषतः ज्ञात तथ्य को साबित करने का भार ।
110. उस व्यक्ति की मृत्यु साबित करने का भार जिसका तीस वर्ष के भीतर जीवित होना ज्ञात है।
111. यह साबित करने का भार कि वह व्यक्ति, जिसके बारे में सात वर्ष से कुछ सुना नहीं गया है, जीवित है ।
112. भागीदारों, भू-स्वामी और अभिधारी, मालिक और अभिकर्ता के मामलों में सबूत का भार ।
113. स्वामित्व के बारे में सबूत का भार ।
114. उन संव्यवहारों में सद्भाव का साबित किया जाना जिनमें एक पक्षकार का सम्बन्ध सक्रिय विश्वास का है ।
115. कतिपय अपराधों के बारे में उपधारणा ।
116. विवाहित स्थिति के दौरान जन्म होना धर्मजत्व का निश्चायक सबूत है ।
117. किसी विवाहित स्त्री द्वारा आत्महत्या के दुष्प्रेरण के बारे में उपधारणा ।
118. दहेज मृत्यु के बारे में उपधारणा ।
119. न्यायालय किन्हीं तथ्यों का अस्तित्व उपधारित कर सकेगा ।
120. बलात्संग के लिए कतिपय अभियोजन में सम्मति के न होने की उपधारणा ।
अध्याय 8- विबन्ध
121. विबंध ।
122. अभिधारी का और कब्जाधारी व्यक्ति के अनुज्ञप्तिधारी का विबन्ध ।
123. विनिमयपत्र के प्रतिगृहीता का, उपनिहिती का या अनुज्ञप्तिधारी का विबन्ध ।
अध्याय 9- साक्षियों के विषय में
124. कौन साक्ष्य दे सकेगा ।
125. साक्षी का मौखिक रूप से संसूचित करने में असमर्थ होना ।
126. कतिपय मामलों में पति और पत्नी की साक्षी के रूप में सक्षमता ।
127. न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट ।
128. विवाहित स्थिति के दौरान में की गई संसूचनाएं ।
129. राज्य के कार्यकलापों के बारे में साक्ष्य ।
130. शासकीय संसूचनाएं ।
131. अपराधों के करने के बारे में जानकारी ।
132. वृत्तिक संसूचनाएं ।
133. साक्ष्य देने के लिए स्वयंमेव उद्द्यत होने से विशेषाधिकार अभित्यक्त नहीं हो जाता ।
134. विधि सलाहकारों से गोपनीय संसूचनाएं ।
135. जो साक्षी पक्षकार नहीं है उसके हक विलेखों का पेश किया जाना ।
136. ऐसे दस्तावेजों या इलैक्ट्रानिक अभिलेखों का पेश किया जाना, जिन्हें कोई दूसरा व्यक्ति, जिसका उन पर कब्जा है, पेश करने से इंकार कर सकता था ।
137. इस आधार पर कि उत्तर उसे अपराध में फंसाएगा, साक्षी उत्तर देने से क्षम्य न होगा ।
138. सह अपराधी ।
139. साक्षियों की संख्या ।
अध्याय 10- साक्षियों की परीक्षा के विषय में
140. साक्षियों के पेशकरण और उनकी परीक्षा का क्रम ।
141. न्यायाधीश साक्ष्य की ग्राह्यता के बारे में निश्चय करेगा ।
142. साक्षियों की परीक्षा ।
143. परीक्षाओं का क्रम ।
144. किसी दस्तावेज को पेश करने के लिए बुलाए गए व्यक्ति की प्रतिपरीक्षा ।
145. शील का साक्ष्य देने वाले साक्षी ।
146. सूचक प्रश्न ।
147. लेखबद्ध विषयों के बारे में साक्ष्य ।
148. पूर्वतन लेखबद्ध कथनों के बारे में प्रतिपरीक्षा ।
149. प्रतिपरीक्षा में विधिपूर्ण प्रश्न ।
150. साक्षी को उत्तर देने के लिए कब विवश किया जाए ।
151. न्यायालय विनिश्चित करेगा कि कब प्रश्न पूछा जाएगा और साक्षी को उत्तर देने के लिए कब विवश किया जाएगा ।
152. युक्तियुक्त आधारों के बिना प्रश्न न पूछा जाएगा ।
153. युक्तियुक्त आधारों के बिना प्रश्न पूछे जाने की अवस्था में न्यायालय की प्रक्रिया ।
154. अशिष्ट और कलंकात्मक प्रश्न ।
155. अपमानित या क्षुब्ध करने के लिए आशयित प्रश्न ।
156. सत्यवादिता परखने के प्रश्नों के उत्तरों का खण्डन करने के लिए साक्ष्य का अपवर्जन ।
157. पक्षकार द्वारा अपने ही साक्षी से प्रश्न ।
158. साक्षी की विश्वसनीयता पर अधिक्षेप ।
159. सुसंगत तथ्य के साक्ष्य की सम्पुष्टि करने की प्रवृत्ति रखने वाले प्रश्न ग्राह्य होंगे ।
160. उसी तथ्य के बारे में पश्चात्वर्ती अभिसाक्ष्य की संपुष्टि करने के लिए साक्षी के पूर्वतन कथन साबित किए जा सकेंगे ।
161. साबित कथन के बारे में, जो कथन धारा 26 या धारा 27 के अधीन सुसंगत है, कौन सी बातें साबित की जा सकेंगी ।
162. स्मृति ताजी करना ।
163. धारा 162 में वर्णित दस्तावेज में कथित तथ्यों के लिए परिसाक्ष्य ।
164. स्मृति ताजी करने के लिए प्रयुक्त लेख के बारे में प्रतिपक्षी का अधिकार ।
165. दस्तावेजों का पेश किया जाना ।
166. मंगाई गई और सूचना पर पेश की गई दस्तावेज का साक्ष्य के रूप में दिया जाना ।
167. सूचना पाने पर जिसे दस्तावेज के पेश करने से इंकार कर दिया गया है उसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाना ।
168. प्रश्न करने या पेश करने का आदेश देने की न्यायाधीश की शक्ति ।
अध्याय 11- साक्ष्य के अनुचित ग्रहण और अग्रहण के विषय में
169. साक्ष्य के अनुचित ग्रहण या अग्रहण के लिए नवीन विचारण नहीं होगा ।
अध्याय 12- निरसन और व्यावृत्ति
170. निरसन और व्यावृत्ति
अध्याय 1- प्रारंभिक
खंड- 1. संक्षिप्त नाम, लागू होना और प्रारंभ ।
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भारतीय साक्ष्य (दूसरा) अधिनियम, 2023 है।
(2) यह किसी न्यायालय में या उसके समक्ष सभी न्यायिक कार्यवाहियों, जिसके अंतर्गत सेना न्यायालय सम्मिलित है, को लागू होता है, किंतु न तो किसी न्यायालय या अधिकारी के समक्ष पेश किए शपथ-पत्रों को, न ही किसी मध्यस्थ के समक्ष कार्यवाहियों को लागू होता है।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।
खंड- 2. परिभाषाएं ।
(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–
(क) न्यायालय के अन्तर्गत सभी न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट तथा मध्यस्थों के सिवाय साक्ष्य लेने के लिए वैध रूप से प्राधिकृत सभी व्यक्ति आते हैं ;
(ख) निश्चायक सबूत से अभिप्रेत है कि जब इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य को किसी अन्य तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित किया जाता है, वहां न्यायालय उस एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस अन्य को साबित हुआ मानेगा और उसे नासाबित करने के प्रयोजन के लिए साक्ष्य दिए जाने की अनुज्ञा नहीं देगा ;
(ग) तथ्य के संबंध में, नासाबित से अभिप्रेत है कि जब न्यायालय अपने समक्ष विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उसका अस्तित्व नहीं है, या उसके अनस्तित्व को इतना अधिसम्भाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिए कि उस तथ्य का अस्तित्व नहीं है;
(घ) दस्तावेज से ऐसा कोई विषय अभिप्रेत है जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिह्नों के साधन द्वारा या उनमें से एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित या अन्यथा अभिलेखबद्ध किया गया है जो उस विषय के अभिलेखन के प्रयोजन से उपयोग किए जाने को आशयित हो या जिसका उपयोग किया जा सके और इसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक और डिजिटल अभिलेख भी हैं;
दृष्टांत
(i) लेख दस्तावेज है ।
(ii) मुद्रित, शिलामुद्रित या फोटोचित्रत शब्द दस्तावेज हैं ।
(iii) मानचित्र या रेखांक दस्तावेज है ।
(iv) धातुपट्ट या शिला पर उत्कीर्ण लेख दस्तावेज है ।
(v) उपहासांकन दस्तावेज है ।
(vi) ई-मेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, लैपटॉप या स्मार्ट फोन, मैसेज, वेबसाइट, अवस्थिति साक्ष्य में इलैक्ट्रानिकी अभिलेख और डिजिटल युक्तियों में भंडार किए गए वॉयस मेल मैसेज दस्तावेज हैं ;
(ङ) साक्ष्य से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आते हैं-
(i) सभी कथन, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिकी रूप से दिए गए कथन सम्मिलित हैं, जिसे न्यायालय जांचाधीन तथ्य के विषयों के सम्बन्ध में अपने समक्ष साक्षियों द्वारा किए जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है और ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं ;
(ii) न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किए गए सभी दस्तावेज, जिनके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख भी हैं और ऐसे दस्तावेज दस्तावेजी साक्ष्य कहलाते हैं ;
(च) तथ्य से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आती हैं-
(i) ऐसी कोई वस्तु, वस्तुओं की अवस्था या वस्तुओं का सम्बन्ध, जो इन्द्रियों द्वारा बोधगम्य हो ;
(ii) कोई मानसिक दशा, जिसका भान किसी व्यक्ति को हो ।
दृष्टांत
(i) यह कि अमुक स्थान में अमुक क्रम से अमुक पदार्थ व्यवस्थित हैं, एक तथ्य है ।
(ii) यह कि किसी व्यक्ति ने कुछ सुना या देखा, एक तथ्य है ।
(iii) यह कि किसी व्यक्ति ने अमुक शब्द कहा, एक तथ्य है।
(iv) यह कि कोई मनुष्य अमुक राय रखता है, अमुक आशय रखता है, सद्भावपूर्वक या कपटपूर्वक कार्य करता है, या किसी विशिष्ट शब्द को विशिष्ट भाव में प्रयोग करता है, या उसे किसी विशिष्ट संवेदना का भान है या किसी विनिर्दिष्ट समय में था, एक तथ्य है ;
(छ) विवाद्रद्यक तथ्य से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी तथ्य, जो स्वयं से, या अन्य तथ्यों के संसर्ग में किसी ऐसे अधिकार, दायित्व या निर्योग्यता के, जिसका किसी वाद या कार्यवाही में प्राख्यान या प्रत्याख्यान किया गया है, आता है, अस्तित्व, अनस्तित्व, प्रकृति या विस्तार की उत्पत्ति अवश्यमेव होती है ।
स्पष्टीकरण-जब कभी, कोई न्यायालय विवाद्यक तथ्य को सिविल प्रक्रिया से सम्बन्धित किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों के अधीन अभिलिखित करता है, तब ऐसे विवाद्यक के उत्तर में जिस तथ्य का प्राख्यान या प्रत्याख्यान किया जाना है, वह विवाद्यक तथ्य है ।
दृष्टांत
ख की हत्या का क अभियुक्त है । उसके विचारण में निम्नलिखित तथ्य विवाद्य हो सकते हैं-
(i) यह कि क ने ख की मृत्यु कारित की ।
(ii) यह कि क का आशय ख की मृत्यु कारित करने का था ।
(iii) यह कि क को ख से गम्भीर और अचानक प्रकोपन मिला था ।
(iv) यह कि ख की मृत्यु कारित करते समय क चित्त-विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति जानने में असमर्थ था ;
(ज) उपधारणा कर सकेगा जहां कहीं इस अधिनियम द्वारा यह उपबन्धित है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा कर सकेगा, वहां न्यायालय या तो ऐसे तथ्य को साबित हुआ मान सकेगा, यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है, या उनके सबूत की मांग कर सकेगा ;
(झ) साबित नहीं हुआ कोई तथ्य साबित नहीं हुआ कहा जाता है, जब वह न तो साबित किया गया हो और न नासाबित ;
(ञ) साबित कोई तथ्य साबित हुआ कहा जाता है, जब न्यायालय अपने समक्ष के विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उस तथ्य का अस्तित्व है या उसके अस्तित्व को इतना अधिसम्भाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिए कि उस तथ्य का अस्तित्व है ;
(ट) सुसंगत – एक तथ्य दूसरे तथ्य से सुसंगत कहा जाता है जब कि तथ्यों की सुसंगति से सम्बन्धित इस अधिनियम के उपबन्धों में निर्दिष्ट प्रकारों में से किसी भी प्रकार से वह तथ्य उस दूसरे तथ्य से संसक्त हो ;
(ठ) उपधारणा करेगा जहां कहीं इस अधिनियम द्वारा यह निर्दिष्ट है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारण करेगा, वहां न्यायालय ऐसे तथ्य को साबित मानेगा यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है ।
(2) इसमें प्रयुक्त शब्द और पद, जो इस अधिनियम में परिभाषित नहीं हैं किंतु सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 में परिभाषित हैं, का वही अर्थ होगा, जो उनका उक्त अधिनियम और संहिता में है :
परन्तु इस अधिनियम में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 या भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रतिनिर्देश का अर्थान्वयन क्रमशः भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 या भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता, 2023 से लिया जाएगा ।
अध्याय 2- तथ्यों की सुसंगति
खंड- 3. विवाद्रद्यक तथ्यों और सुसंगत तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
किसी वाद या कार्यवाही में हर विवाद्यक तथ्य के और ऐसे अन्य तथ्यों के, जिन्हें एतस्मिन् पश्चात् सुसंगत घोषित किया गया है, अस्तित्व या अनस्तित्व का साक्ष्य दिया जा सकेगा और किन्हीं अन्यों का नहीं ।
स्पष्टीकरण यह धारा किसी व्यक्ति को ऐसे तथ्य का साक्ष्य देने के लिए योग्य नहीं बनाएगी, जिससे सिविल प्रक्रिया से सम्बन्धित किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के किसी उपबन्ध द्वारा वह साबित करने से निर्हकित कर दिया गया है ।
दृष्टांत
(क) ख की मृत्यु कारित करने के आशय से उसे लाठी मारकर उसकी हत्या कारित करने के लिए क का विचारण किया जाता है । क के विचारण में निम्नलिखित तथ्य विवाद्य है :- क का ख को लाठी से मारना; क का ऐसी मार द्वारा ख की मृत्यु कारित करना;
ख की मृत्यु कारित करने का क का आशय । (ख) एक वादकर्ता अपने साथ वह बन्धपत्र, जिस पर वह निर्भर करता है, मामले की पहली सुनवाई पर अपने साथ नहीं लाता और पेश करने के लिए तैयार नहीं रखता । यह धारा उसे इस योग्य नहीं बनाती कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 द्वारा विहित शर्तों के अनुकूल वह उस कार्यवाही के उत्तरवर्ती प्रक्रम में उस बन्धपत्र को पेश कर सके या उसकी अन्तर्वस्तु को साबित कर सके ।
खंड- 4. एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति ।
जो तथ्य विवाद्य न होते हुए भी किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य से इस प्रकार संसक्त है कि वे एक ही संव्यवहार के भाग हैं, वे तथ्य सुसंगत हैं, चाहे वे उसी समय और स्थान पर या विभिन्न समयों और स्थानों पर घटित हुए हों ।
दृष्टांत
(क) ख को पीटकर उसकी हत्या करने का क अभियुक्त है। क या ख या पास खड़े लोगों द्वारा जो कुछ भी पिटाई के समय या उससे इतने अल्पकाल पूर्व या पश्चात् कहा या किया गया था कि वह उसी संव्यवहार का भाग बन गया है, वह सुसंगत तथ्य है ।
(ख) क एक सशस्त्र विप्लव में भाग लेकर, जिसमें सम्पत्ति नष्ट की जाती है, फौजों पर आक्रमण किया जाता है और जेलें तोड़ कर खोली जाती हैं, भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने का अभियुक्त है । इन तथ्यों का घटित होना साधारण संव्यवहार का भाग होने के नाते सुसंगत है, चाहे क उन सभी में उपस्थित न रहा हो ।
(ग) क एक पत्र में, जो एक पत्र-व्यवहार का भाग है, अन्तर्विष्ट अपमान-लेख के लिए ख पर वाद लाता है । जिस विषय में अपमान-लेख उद्भूत हुआ है, उससे सम्बन्ध रखने वाले पक्षकारों के बीच जितनी चिट्ठियां उस पत्र-व्यवहार का भाग हैं जिसमें वह अन्तर्विष्ट, वे सुसंगत है तथ्य हैं, चाहे उनमें वह अपमान-लेख स्वयं अन्तर्विष्ट न हो ।
(घ) प्रश्न यह है कि क्या ख से आदिष्ट अमुक माल क को परिदत्त किया गया था । वह माल, अनुक्रमशः कई मध्यवर्ती व्यक्तियों को परिदत्त किया गया था । हर एक परिदान सुसंगत तथ्य है ।
खंड- 5. वे तथ्य, जो विवाद्द्यक तथ्यों या सुसंगत तथ्यों के प्रसंग, हेतुक या परिणाम हैं ।
वे तथ्य सुसंगत हैं, जो सुसंगत तथ्यों के या विवाद्रद्यक तथ्यों के अव्यवहित या अन्यथा प्रसंग, हेतुक या परिणाम हैं, या जो उस वस्तुस्थिति को गठित करते हैं, जिसके अन्तर्गत वे घटित हुए या जिसने उनके घटित होने या संव्यवहार का अवसर दिया ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या क ने ख को लूटा । ये तथ्य सुसंगत हैं कि लूट के थोड़ी देर पहले ख अपने कब्जे में धन लेकर किसी मेले में गया, और उसने दूसरे व्यक्तियों को उसे दिखाया या उनसे इस तथ्य का कि उसके पास धन है, उल्लेख किया ।
(ख) प्रश्न यह है कि क्या क ने ख की हत्या की । उस स्थान पर जहां हत्या की गई थी या उसके समीप भूमि पर गुत्थम-गुत्था होने से बने हुए चिह्न सुसंगत तथ्य हैं ।
(ग) प्रश्न यह है कि क्या क ने ख को विष दिया । विष से उत्पन्न कहे जाने वाले लक्षणों के पूर्व ख के स्वास्थ्य की दशा और क को ज्ञात ख की वे आदतें, जिनसे विष देने का अवसर मिला, सुसंगत तथ्य हैं ।
खंड- 6. हेतु, तैयारी और पूर्व का या पश्चात् का आचरण ।
(1) कोई भी तथ्य, जो किसी विवाद्द्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य का हेतु या तैयारी दर्शित या गठित करता है, सुसंगत है ।
(2) किसी वाद या कार्यवाही के किसी पक्षकार या किसी पक्षकार के अभिकर्ता का ऐसे वाद या कार्यवाही के बारे में या उसमें विवाद्यक तथ्य या उससे सुसंगत किसी तथ्य के बारे में आचरण और किसी ऐसे व्यक्ति का आचरण, जिसके विरुद्ध कोई अपराध किसी कार्यवाही का विषय है, सुसंगत है, यदि ऐसा आचरण किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य को प्रभावित करता है या उससे प्रभावित होता है, चाहे वह उससे पूर्व का हो या पश्चात् का ।
स्पष्टीकरण 1 इस धारा में आचरण शब्द के अन्तर्गत कथन नहीं आते, जब तक कि वे कथन उन कथनों से भिन्न कार्यों के साथ-साथ और उन्हें स्पष्ट करने वाले न हों, किन्तु इस अधिनियम की किसी अन्य धारा के अधीन उन कथनों की सुसंगति पर इस स्पष्टीकरण का प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
स्पष्टीकरण 2-जब किसी व्यक्ति का आचरण सुसंगत है, तब उससे, या उसकी उपस्थिति और श्रवणगोचरता में किया गया कोई भी कथन, जो उस आचरण पर प्रभाव डालता है, सुसंगत है ।
दृष्टांत
(क) ख की हत्या के लिए क का विचारण किया जाता है। ये तथ्य किक ने ग की हत्या की, कि ख जानता था कि क ने ग की हत्या की है और कि ख ने अपनी इस जानकारी को लोकविदित करने की धमकी देकर क से धन उद्द्यापित करने का प्रयत्न किया था, सुसंगत है ।
(ख) क बन्धपत्र के आधार पर रुपए के संदाय के लिए ख पर वाद लाता है । ख इस बात का प्रत्याख्यान करता है कि उसने बन्धपत्र लिखा । यह तथ्य सुसंगत है कि उस समय, जब बन्धपत्र का लिखा जाना अभिकथित है, ख को किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए धन चाहिए था ।
(ग) विष द्वारा ख की हत्या करने के लिए क का विचारण किया जाता है । यह तथ्य सुसंगत है कि ख की मृत्यु के पूर्व क ने ख को दिए गए विष के जैसा विष उपाप्त किया था ।
(घ) प्रश्न यह है कि क्या अमुक दस्तावेज क की विल है । ये तथ्य सुसंगत है कि अभिकथित विल की तारीख से थोड़े दिन पहले क ने उन विषयों की जांच की जिनसे अभिकथित विल के उपबन्धों का सम्बन्ध है, कि उसने वह विल करने के बारे में अधिवक्ताओं से परामर्श किया और उसने अन्य विलों के प्रारूप बनवाए जिन्हें उसने पसन्द नहीं किया ।
(ङ) क किसी अपराध का अभियुक्त है । ये तथ्य कि अभिकथित अपराध से पूर्व या अपराध करने के समय या पश्चात् क ने ऐसे साक्ष्य का प्रबन्ध किया जिसकी प्रवृत्ति ऐसी थी कि मामले के तथ्य उसके अनुकूल प्रतीत हों या कि उसने साक्ष्य को नष्ट किया या छिपाया या कि उन व्यक्तियों की, जो साक्षी हो सकते थे, उपस्थिति निवारित की या अनुपस्थिति उपाप्त की या लोगों को उसके सम्बन्ध में मिथ्या साक्ष्य देने के लिए तैयार किया, सुसंगत है ।
(च) प्रश्न यह है कि क्या क ने ख को लूटा । ये तथ्य कि ख के लूटे जाने के पश्चात् ग ने क की उपस्थिति में कहा कि ख को लूटने वाले आदमी को खोजने के लिए पुलिस आ रही है, और यह कि उसके तुरन्त पश्चात् क भाग गया, सुसंगत हैं ।
(छ) प्रश्न यह है कि क्या ख के प्रति क दस हजार रुपए का देनदार है । यह तथ्य किक ने ग से धन उधार मांगा और कि घ ने ग से क की उपस्थिति और श्रवणगोचरता में कहा कि मैं तुम्हें सलाह देता हूं कि तुम क पर भरोसा न करो क्योंकि वह ख के प्रति दस हजार रुपए का देनदार है, और कि क कोई उत्तर दिए बिना चला गया, सुसंगत हैं ।
(ज) प्रश्न यह है कि क्या क ने अपराध किया है । यह तथ्य कि क एक पत्र पाने के उपरान्त, जिसमें क को चेतावनी दी गई थी कि अपराधी के लिए जांच की जा रही है, फरार हो गया और उस पत्र की अन्तर्वस्तु, सुसंगत हैं ।
(झ) क किसी अपराध का अभियुक्त है । ये तथ्य कि अभिकथित अपराध के किए जाने के पश्चात् क फरार हो गया या कि उस अपराध से अर्जित सम्पत्ति या सम्पत्ति के आगम उसके कब्जे में थे या कि उसने उन वस्तुओं को, जिनसे वह अपराध किया गया था, या किया जा सकता था, छिपाने का प्रयत्न किया, सुसंगत हैं ।
(ञ) प्रश्न यह है कि क्या क के साथ बलात्संग किया गया । यह तथ्य कि अभिकथित बलात्संग के अल्पकाल पश्चात् क ने अपराध के बारे में परिवाद किया, वे परिस्थितियां जिनके अधीन तथा वे शब्द जिनमें वह परिवाद किया गया, सुसंगत हैं । यह तथ्य कि क ने परिवाद के बिना कहा कि मेरे साथ बलात्संग किया गया है, इस धारा के अधीन आचरण के रूप में सुसंगत नहीं है । यद्यपि वह धारा 26 के खण्ड (क) के अधीन मृत्युकालिक कथन या धारा 160 के अधीन सम्पोषक साक्ष्य के रूप में सुसंगत हो सकता है ।
(ट) प्रश्न यह है कि क्या क को लूटा गया । यह तथ्य कि अभिकथित लूट के तुरन्त पश्चात् क ने अपराध के सम्बन्ध में परिवाद किया, वे परिस्थितियां जिनके अधीन तथा वे शब्द, जिनमें वह परिवाद किया गया, सुसंगत हैं । यह तथ्य कि क ने कोई परिवाद किए बिना कहा कि मुझे लूटा गया है इस धारा के अधीन आचरण के रूप में सुसंगत नहीं है, यद्यपि वह धारा 26 के खण्ड (क) के अधीन मृत्युकालिक कथन या धारा 160 के अधीन सम्पोषक साक्ष्य के रूप में सुसंगत हो सकता है ।
खंड- 7. विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्यों के स्पष्टीकरण या पुरःस्थापन के लिए आवश्यक तथ्य ।
वे तथ्य, जो विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के स्पष्टीकरण या पुरःस्थापन के लिए आवश्यक हैं या जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य द्वारा इंगित अनुमान का समर्थन या खण्डन करते हैं या जो किसी व्यक्ति या वस्तु का, जिसकी अनन्यता सुसंगत हो, अनन्यता स्थापित करते हैं या वह समय या स्थान स्थिर करते हैं जब या जहां कोई विवाद्द्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य घटित हुआ या जो उन पक्षकारों का सम्बन्ध दर्शित करते हैं जिनके द्वारा ऐसे किसी तथ्य का संव्यवहार किया गया था, वहां तक सुसंगत हैं जहां तक वे उस प्रयोजन के लिए आवश्यक हों ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या कोई विशिष्ट दस्तावेज क की विल है । अभिकथित विल की तारीख पर क की सम्पत्ति की और उसके कुटुम्ब की अवस्था सुसंगत तथ्य हो सकती है ।
(ख) क पर निकृष्ट आचरण का लांछन लगाने वाले अपमान-लेख के लिए ख पर क वाद लाता है । ख प्रतिज्ञान करता है कि वह बात, जिसका अपमान-लेख होना अभिकथित है, सच है । पक्षकारों की उस समय की स्थिति और सम्बन्ध, जब अपमान-लेख प्रकाशित हुआ था, विवाद्रद्यक तथ्यों की पुरःस्थापना के रूप में सुसंगत तथ्य हो सकते हैं। क और ख के बीच किसी ऐसी बात के विषय में विवाद की विशिष्टियां, जो अभिकथित अपमान- लेख से असंसक्त हैं, विसंगत है, यद्यपि यह तथ्य कि कोई विवाद हुआ था, यदि उससे क और ख के पारस्परिक सम्बन्धों पर प्रभाव पड़ा हो, सुसंगत हो सकता है ।
(ग) क एक अपराध का अभियुक्त है । यह तथ्य कि, उस अपराध के किए जाने के तुरन्त पश्चात् क अपने घर से फरार हो गया, धारा 6 के अधीन विवाद्द्यक तथ्यों के पश्चात्वर्ती और उनसे प्रभावित आचरण के रूप में सुसंगत है। यह तथ्य कि उस समय, जब वह घर से चला था, क का उस स्थान में, जहां वह गया था, अचानक और अर्जेंट कार्य था, उसके अचानक घर से चले जाने के तथ्य के स्पष्टीकरण की प्रवृत्ति रखने के कारण सुसंगत है । जिस काम के लिए वह चला उसका ब्यौरा सुसंगत नहीं है सिवाय इसके कि जहां तक वह यह दर्शित करने के लिए आवश्यक हो कि वह काम अचानक और अर्जेंट था ।
(घ) क के साथ की गई सेवा की संविदा को भंग करने के लिए ग को उत्प्रेरित करने के कारण ख पर क वाद लाता है। क की नौकरी छोड़ते समय क से ग कहता है कि मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं क्योंकि ख ने मुझे तुमसे अधिक अच्छी प्रस्थापना की है । यह कथन ग के आचरण को, जो विवाद्यक तथ्य होने के रूप में सुसंगत है, स्पष्ट करने वाला होने के कारण सुसंगत है ।
(ङ) चोरी का अभियुक्त क चुराई हुई सम्पत्ति ख को देते हुए देखा जाता है, जो उसे क की पत्नी को देते हुए देखा जाता है । ख उसे परिदान करते हुए कहता है कि क ने कहा है कि तुम इसे छिपा दो । ख का कथन उस संव्यवहार का भाग होने वाले तथ्य को स्पष्ट करने वाला होने के कारण सुसंगत है ।
(च) क बल्वे के लिए विचारित किया जा रहा है और उसका भीड़ के आगे चलना साबित हो चुका है । इस संव्यवहार की प्रकृति को स्पष्ट करने वाली होने के कारण भीड़ की आवाजें सुसंगत हैं ।
खंड- 8. सामान्य परिकल्पना के बारे में षड्यंत्रकारी द्वारा कही गई या की गई बातें।
जहां कि यह विश्वास करने का युक्तियुक्त आधार है कि दो या अधिक व्यक्तियों ने अपराध या अनुयोज्य दोष करने के लिए मिलकर षड्यंत्र किया है, वहां उनके सामान्य आशय के बारे में उनमें से किसी एक व्यक्ति द्वारा उस समय के पश्चात्, जब ऐसा आशय उनमें से किसी एक ने प्रथम बार मन में धारण किया, कही, की, या लिखी गई कोई बात उन व्यक्तियों में से हर एक व्यक्ति के विरुद्ध, जिनके बारे में विश्वास किया जाता है कि उन्होंने इस प्रकार षड्यंत्र किया है, षड्यंत्र का अस्तित्व साबित करने के प्रयोजनार्थ उसी प्रकार सुसंगत तथ्य है जिस प्रकार यह दर्शित करने के प्रयोजनार्थ कि ऐसा कोई व्यक्ति उसका पक्षकार था ।
दृष्टांत
यह विश्वास करने का युक्तियुक्त आधार है कि क राज्य के विरुद्ध युद्ध करने के षड्यंत्र में सम्मिलित हुआ है ।
ख ने उस षड्यंत्र के प्रयोजनार्थ यूरोप में आयुध उपाप्त किए, ग ने वैसे ही उद्देश्य से कोलकाता में धन संग्रह किया, घ ने मुम्बई में लोगों को उस षड्यंत्र में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया, ङ ने आगरा में उस उद्देश्य के पक्षपोषण में लेख प्रकाशित किए और ग द्वारा कोलकाता में संगृहीत धन को च ने दिल्ली से छ के पास सिंगापुर भेजा । इन तथ्यों और उस षड्यंत्र का वृत्तान्त देने वाले झ द्वारा लिखित पत्र की अन्तर्वस्तु में से हर एक षड्यंत्र का अस्तित्व साबित करने के लिए तथा उसमें क की सह अपराधिता साबित करने के लिए भी सुसंगत है, चाहे वह उन सभी के बारे में अनभिज्ञ रहा हो और चाहे उन्हें करने वाले व्यक्ति उसके लिए अपरिचित रहे हों और चाहे वे उसके षड्यंत्र में सम्मिलित होने से पूर्व या उसके षड्यंत्र से अलग हो जाने के पश्चात् घटित हुए हों ।
खंड- 9. वे तथ्य जो अन्यथा सुसंगत नहीं हैं कब सुसंगत हैं।
वे तथ्य, जो अन्यथा सुसंगत नहीं हैं, सुसंगत हैं :-
(1) यदि वे किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य से असंगत हैं ;
(2) यदि वे स्वयंमेव या अन्य तथ्यों के संसर्ग में किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य का अस्तित्व या अनस्तित्व अत्यन्त अधिसम्भाव्य या अनधिसम्भाव्य बनाते हैं ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या क ने किसी अमुक दिन चेन्नई में अपराध किया । यह तथ्य कि वह उस दिन लद्दाख में था, सुसंगत है । यह तथ्य कि जब अपराध किया गया था उस समय के लगभग क उस स्थान से, जहां कि वह अपराध किया गया था, इतनी दूरी पर था कि क द्वारा उस अपराध का किया जाना यदि असम्भव नहीं, तो अत्यन्त अनधिसम्भाव्य था, सुसंगत है ।
(ख) प्रश्न यह है कि क्या क ने अपराध किया है। परिस्थितियां ऐसी हैं कि वह अपराध क, ख, ग, या घ में से किसी एक के द्वारा अवश्य किया गया होगा । वह हर तथ्य, जिससे यह दर्शित होता है कि वह अपराध किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता था वह ख, ग या घ में से किसी के द्वारा नहीं किया गया था, सुसंगत है ।
खंड- 10. रकम अवधारित करने के लिए न्यायालय को समर्थ करने की प्रवृत्ति रखने वाले तथ्य नुकसानी के लिए वादों में सुसंगत हैं।
उन वादों में, जिनमें नुकसानी का दावा किया गया है, कोई भी तथ्य सुसंगत है जिससे न्यायालय नुकसानी की वह रकम अवधारित करने के लिए समर्थ हो जाए, जो अधिनिर्णीत की जानी चाहिए ।
खंड- 11. जब कि अधिकार या रूढ़ि प्रश्नगत है, तब सुसंगत तथ्य।
जहां कि किसी अधिकार या रूढ़ि के अस्तित्व के बारे में प्रश्न है, वहां निम्नलिखित तथ्य सुसंगत हैं-
(क) कोई संव्यवहार, जिसके द्वारा प्रश्नगत अधिकार या रूढ़ि सृष्ट, दावाकृत, उपांतरित, मान्यकृत, प्राख्यात या प्रत्याख्यात की गई थी या जो उसके अस्तित्व से असंगत था ;
(ख) वे विशिष्ट उदाहरण, जिनमें वह अधिकार या रूढ़ि दावाकृत, मान्यकृत या प्रयुक्त की गई थी या जिनमें उसका प्रयोग विवादग्रस्त था प्राख्यात किया गया था या उसका अनुसरण नहीं किया गया था ।
दृष्टांत
प्रश्न यह है कि क्या क का एक मीनक्षेत्र पर अधिकार है । क के पूर्वजों को मीनक्षेत्र प्रदान करने वाला विलेख, क के पिता द्वारा उस मीनक्षेत्र का बन्धक, क के पिता द्वारा उस बन्धक से अनमेल पाश्चिक अनुदान, विशिष्ट उदाहरण, जिनमें क के पिता ने अधिकार का प्रयोग किया या जिनमें अधिकार का प्रयोग क के पड़ोसियों द्वारा रोका गया था, सुसंगत तथ्य हैं ।
खंड- 12. मन या शरीर की दशा या शारीरिक संवदेना का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य।
मन की कोई भी दशा जैसे आशय, ज्ञान, सद्भाव, उपेक्षा, उतावलापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के प्रति वैमनस्य या सदिच्छा दर्शित करने वाले या शरीर की या शारीरिक संवेदना की किसी दशा का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य तब सुसंगत हैं, जब कि ऐसी मन की या शरीर की या शारीरिक संवेदन की किसी ऐसी दशा का अस्तित्व विवाद्य या सुसंगत है ।
स्पष्टीकरण 1 जो तथ्य इस नाते सुसंगत हैं कि वह मन की सुसंगत दशा के अस्तित्व को दर्शित करता है उससे यह दर्शित होना ही चाहिए कि मन की वह दशा साधारणतः नहीं, अपितु प्रश्नगत विशिष्ट विषय के बारे में, अस्तित्व में है ।
स्पष्टीकरण 2 किन्तु जब कि किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण में इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत उस अभियुक्त द्वारा किसी अपराध का कभी पहले किया जाना सुसंगत हो, तब ऐसे व्यक्ति की पूर्व दोषसिद्धि भी सुसंगत तथ्य होगी ।
दृष्टांत
(क) क चुराया हुआ माल यह जानते हुए कि वह चुराया हुआ है, प्राप्त करने का अभियुक्त है । यह साबित कर दिया जाता है कि उसके कब्जे में कोई विशिष्ट चुराई हुई चीज थी । यह तथ्य कि उसी समय उसके कब्जे में कई अन्य चुराई हुई चीजें थीं यह दर्शित करने की प्रवृत्ति रखने वाला होने के नाते सुसंगत है कि जो चीजें उसके कब्जे में थीं उनमें से हर एक और सब के बारे में वह जानता था कि वह चुराई हुई हैं ।
(ख) क पर किसी अन्य व्यक्ति को कूटकृत मुद्रा के कपटपूर्वक परिदान करने का अभियोग है, जिसे वह परिदान करते समय जानता था कि वह कूटकृत है। यह तथ्य कि उसके परिदान के समय क के कब्जे में वैसे ही दूसरे कूटकृत मुद्रा थी, सुसंगत है। यह तथ्य कि क एक कूटकृत मुद्रा को, यह जानते हुए कि वह मुद्रा कूटकृत है, उसे असली के रूप में किसी अन्य व्यक्ति को परिदान करने के लिए पहले भी दोषसिद्ध हुआ था, सुसंगत हैं ।
(ग) ख के कुत्ते द्वारा, जिसका हिंस्र होना ख जानता था, किए गए नुकसान के लिए ख पर क वाद लाता है। ये तथ्य कि कुत्ते ने पहले, भ, म और य को काटा था और यह कि उन्होंने ख से शिकायतें की थीं, सुसंगत हैं।
(घ) प्रश्न यह है कि क्या विनिमयपत्र का प्रतिगृहीता क यह जानता था कि उसके पाने वाले का नाम काल्पनिक है। यह तथ्य कि क ने उसी प्रकार से लिखित अन्य विनिमयपत्रों को इसके पहले कि वे पाने वाले द्वारा, यदि पाने वाला वास्तविक व्यक्ति होता तो, उसको पारेषित किए जा सकते, प्रतिगृहीत किया था, यह दर्शित करने के नाते सुसंगत है कि क यह जानता था कि पाने वाला व्यक्ति काल्पनिक है।
(ङ) क पर ख की ख्याति की अपहानि करने के आशय से एक लांछन प्रकाशित करके ख की मानहानि करने का अभियोग है। यह तथ्य कि ख के बारे में क ने पूर्व प्रकाशन किए, जिनसे ख के प्रति क का वैमनस्य दर्शित होता है, इस कारण सुसंगत है कि उससे प्रश्नगत विशिष्ट प्रकाशन द्वारा ख की ख्याति की अपहानि करने का क का आशय साबित होता है। ये तथ्य कि क और ख के बीच पहले कोई झगड़ा नहीं हुआ और कि क ने परिवादगत बात को जैसा सुना था वैसा ही दुहरा दिया था, यह दर्शित करने के नाते कि क का आशय ख की ख्याति की अपहानि करना नहीं था, सुसंगत हैं ।
(च) ख द्वारा क पर यह वाद लाया जाता है कि ग के बारे में क ने ख से यह कपटपूर्वक व्यपदेशन किया कि ग शोधक्षम है जिससे उत्प्रेरित होकर ख ने ग का, जो दिवालिया था, भरोसा किया और हानि उठाई। यह तथ्य कि जब क ने ग को शोधक्षम व्यपदिष्ट किया था, तब ग को उसके पड़ोसी और उससे व्यौहार करने वाले व्यक्ति शोधक्षम समझते थे, यह दर्शित करने के नाते कि क ने व्यपदेशन सद्भापूर्वक किया था, सुसंगत है ।
(छ) क पर ख उस काम की कीमत के लिए वाद लाता है जो ठेकेदार ग के आदेश से किसी गृह पर, जिसका क स्वामी है, ख ने किया था। क का प्रतिवाद है कि ख का ठेका ग के साथ था। यह तथ्य कि क ने प्रश्नगत काम के लिए ग को कीमत दे दी इसलिए सुसंगत है कि उससे यह साबित होता है कि क ने सद्भावपूर्वक ग को प्रश्नगत काम का प्रबन्ध दे दिया था, जिससे कि ख के साथ ग अपने ही निमित्त, न कि क के अभिकर्ता के रूप में, संविदा करने की स्थिति में था ।
(ज) क ऐसी सम्पत्ति का, जो उसने पड़ी पाई थी, बेइमानी से दुर्विनियोग करने का अभियुक्त है और प्रश्न यह है कि क्या जब उसने उसका विनियोग किया उसे सद्भावपूर्वक विश्वास था कि वास्तविक स्वामी मिल नहीं सकता। यह तथ्य कि सम्पत्ति के खो जाने की लोक सूचना उस स्थान में, जहां क था, दी जा चुकी थी, यह दर्शित करने के नाते सुसंगत है कि क को सद्भावपूर्वक यह विश्वास नहीं था कि उस सम्पत्ति का वास्तविक स्वामी मिल नहीं सकता। यह तथ्य कि क यह जानता था या उसके पास यह विश्वास करने का कारण था कि सूचना कपटपूर्वक ग द्वारा दी गई थी जिसने संपत्ति की हानि के बारे में सुन रखा था और जो उस पर मिथ्या दावा करने का इच्छुक था यह दर्शित करने के नाते सुसंगत है कि क का सूचना के बारे में ज्ञान क के सद्भाव को नासाबित नहीं करता ।
(झ) क पर ख को मार डालने के आशय से उस पर असन करने का अभियोग है । क का आशय दर्शित करने के लिए यह तथ्य साबित किया जा सकेगा कि क ने पहले भी ख पर असन किया था ।
(ञ) क पर ख को धमकी भरे पत्र भेजने का आरोप है। इन पत्रों का आशय दर्शित करने के नाते क द्वारा ख को पहले भेजे गए धमकी भरे पत्र साबित किए जा सकेंगे ।
(ट) प्रश्न यह है कि क्या क अपनी पत्नी ख के प्रति क्रूरता का दोषी रहा है । अभिकथित क्रूरता के थोड़ी देर पहले या पीछे उनके एक दूसरे के प्रति भावना की अभिव्यक्तियां सुसंगत तथ्य हैं ।
(ठ) प्रश्न यह है कि क्या क की मृत्यु विष से कारित की गई थी । अपनी रुग्णावस्था में क द्वारा अपने लक्षणों के बारे में किए हुए कथन सुसंगत तथ्य हैं ।
(ड) प्रश्न यह है कि क के स्वास्थ्य की दशा उस समय कैसी थी जिस समय उसके जीवन का बीमा कराया गया था। प्रश्नगत समय पर या उसके लगभग अपने स्वास्थ्य की दशा के बारे में क द्वारा किए गए कथन सुसंगत तथ्य हैं ।
(ढ) क ऐसी उपेक्षा के लिए ख पर वाद लाता है जो ख ने उसे युक्तियुक्त रूप से अनुपयोग्य कार भाड़े पर देने द्वारा की, जिससे क को क्षति हुई थी । यह तथ्य कि उस विशिष्ट कार की त्रुटि की ओर अन्य अवसरों पर भी ख का ध्यान आकृष्ट किया गया था, सुसंगत है । यह तथ्य कि ख उन कारों के बारे में, जिन्हें वह भाड़े पर देता था, अभ्यासतः उपेक्षावान था, विसंगत है ।
(ण) क साशय असन द्वारा ख की मृत्यु करने के कारण हत्या के लिए विचारित है । यह तथ्य कि क ने अन्य अवसरों पर ख पर असन किया था, क का ख पर असन करने का आशय दर्शित करने के नाते सुसंगत है । यह तथ्य कि क लोगों पर उनकी हत्या करने के आशय से असन करने का अभ्यासी था, विसंगत है ।
(त) क का किसी अपराध के लिए विचारण किया जाता है। यह तथ्य कि उसने कोई बात कही जिससे उस विशिष्ट अपराध के करने का आशय उपदर्शित होता है, सुसंगत है । यह तथ्य कि उसने कोई बात कही जिससे उस प्रकार के अपराध करने की उसकी साधारण प्रवृत्ति उपदर्शित होती है, विसंगत है ।
खंड- 13. कार्य आकस्मिक या साशय था इस प्रश्न पर प्रकाश डालने वाले तथ्य।
जब कि प्रश्न यह है कि कार्य आकस्मिक या साशय था या किसी विशिष्ट ज्ञान या आशय से किया गया था, तब यह तथ्य कि ऐसा कार्य समरूप घटनाओं की आवली का भाग था जिनमें से हर एक घटना के साथ वह कार्य करने वाला व्यक्ति सम्पृक्त था, सुसंगत है ।
दृष्टांत
(क) क पर यह अभियोग है कि अपने गृह के बीमे का धन अभिप्राप्त करने के लिए उसने उसे जला दिया । ये तथ्य कि क कई गृहों में एक के पश्चात् दूसरे में रहा, जिनमें से हर एक का उसने बीमा कराया, जिनमें से हर एक में आग लगी और जिन अग्निकांडों में से हर एक के उपरान्त क को किसी भिन्न बीमा कंपनी से बीमा धन मिला, इस नाते सुसंगत हैं कि उनसे यह दर्शित होता है कि वे अग्निकांड आकस्मिक नहीं थे ।
(ख) ख के ऋणियों से धन प्राप्त करने के लिए क नियोजित है । क का यह कर्तव्य है कि बही में अपने द्वारा प्राप्त राशियां दर्शित करने वाली प्रविष्टियां करे । वह एक प्रविष्टि करता है जिससे यह दर्शित होता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर उसे वास्तव में प्राप्त राशि से कम राशि प्राप्त हुई । प्रश्न यह है कि क्या यह मिथ्या प्रविष्टि आकस्मिक थी या साशय । ये तथ्य कि उसी बही में क द्वारा की हुई अन्य प्रविष्टियां मिथ्या हैं और कि हर एक अवस्था में मिथ्या प्रविष्टि क के पक्ष में है, सुसंगत है ।
(ग) ख को कपटपूर्वक कूटकृत करेंसी का परिदान करने का क अभियुक्त है । प्रश्न यह है कि क्या करेंसी का परिदान आकस्मिक था। यह तथ्य कि ख को परिदान के तुरन्त पहले या पीछे क ने ग, घ और ङ को कूटकृत करेंसी का परिदान किया था इस नाते सुसंगत हैं कि उनसे यह दर्शित होता है कि ख को किया गया परिदान आकस्मिक नहीं था ।
खंड- 14. कारबार के अनुक्रम का अस्तित्व कब सुसंगत है।
जबकि प्रश्न यह है कि क्या कोई विशिष्ट कार्य किया गया था, तब कारबार के ऐसे किसी भी अनुक्रम का अस्तित्व, जिसके अनुसार वह कार्य स्वभावतः किया जाता, सुसंगत तथ्य है ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या एक विशिष्ट पत्र प्रेषित किया गया था । ये तथ्य कि कारबार का यह साधारण अनुक्रम था कि वे सभी पत्र, जो किसी खास स्थान में रख दिए जाते थे, डाक में डाले जाने के लिए ले जाए जाते थे और कि वह पत्र उस स्थान में रख दिया गया था, सुसंगत हैं ।
(ख) प्रश्न यह है कि क्या एक विशिष्ट पत्र क को मिला । ये तथ्य कि वह सम्यक् अनुक्रम में डाक में डाला गया था, और कि वह पुनः प्रेषण केन्द्र द्वारा लौटाया नहीं गया था, सुसंगत है ।
स्वीकृतियां
खंड- 15. स्वीकृति की परिभाषा ।
स्वीकृति वह मौखिक या दस्तावेजी या इलैक्ट्रानिक रूप में अंतर्विष्ट कथन है, जो किसी विवाद्द्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान इंगित करता है और जो ऐसे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा और ऐसी परिस्थितियों में किया गया है जो एतस्मिन पश्चात् वर्णित है ।
खंड- 16. कार्यवाही के पक्षकार या उसके अभिकर्ता द्वारा स्वीकृति।
(1) वे कथन स्वीकृतियां हैं, जिन्हें कार्यवाही के किसी पक्षकार ने किया हो, या ऐसे किसी पक्षकार के ऐसे किसी अभिकर्ता ने किया हो जिसे मामले की परिस्थितियों में न्यायालय उन कथनों को करने के लिए उस पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से प्राधिकृत किया हुआ मानता है ।
(2) वे कथन स्वीकृतियां हैं, जो-
(i) वाद के ऐसे पक्षकारों द्वारा, जो प्रतिनिधिक हैसियत में वाद ला रहे हों या जिन पर प्रतिनिधिक हैसियत में वाद लाया जा रहा हो, जब तक कि वे उस समय न किए गए हों जबकि उनको करने वाला पक्षकार वैसी हैसियत धारण करता था, स्वीकृतियां नहीं हैं ;
(ii) ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं, जिनका कार्यवाही की विषय-वस्तु में कोई साम्पत्तिक या धन संबंधी हित है और जो इस प्रकार हितबद्ध व्यक्तियों की हैसियत में वह कथन करते हैं; या
(iii) ऐसे व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं, जिनसे वाद के पक्षकारों का वाद की विषय-वस्तु में अपना हित व्युत्पन्न हुआ है, यदि वे कथन उन्हें करने वाले व्यक्तियों के हित के चालू रहने के दौरान में किए गए हैं ।
खंड- 17. उन व्यक्तियों द्वारा स्वीकृतियां जिनकी स्थिति वाद के पक्षकारों के विरुद्ध साबित की जानी चाहिए।
वे कथन, जो उन व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं जिनकी वाद के किसी पक्षकार के विरुद्ध स्थिति या दायित्व साबित करना आवश्यक है, स्वीकृतियां हैं, यदि ऐसे कथन ऐसे व्यक्तियों द्वारा, या उन पर लाए गए वाद में ऐसी स्थिति या दायित्व के संबंध में ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध सुसंगत होते और यदि वे उस समय किए गए हों जबकि उन्हें करने वाला व्यक्ति ऐसी स्थिति ग्रहण किए हुए हैं या ऐसे दायित्व के अधीन हैं ।
दृष्टांत
ख के लिए भाटक-संग्रह का दायित्व क लेता है । ग द्वारा ख को शोध्य भाटक- संग्रह न करने के लिए क पर ख वाद लाता है। क इस बात का प्रत्याख्यान करता है कि ग से ख को भाटक देय था । ग द्वारा यह कथन कि उस पर ख को भाटक देय है स्वीकृति है, और यदि क इस बात से इन्कार करता है कि ग द्वारा ख को भाटक देय था तो वह क के विरुद्ध सुसंगत तथ्य है ।
खंड- 18. वाद के पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट व्यक्तियों द्वारा स्वीकृतियां।
वे कथन, जो उन व्यक्तियों द्वारा किए गए हैं जिनको वाद के किसी पक्षकार ने किसी विवादग्रस्त विषय के बारे में जानकारी के लिए अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट किया है, स्वीकृतियां हैं ।
दृष्टांत
यह प्रश्न है कि क्या क द्वारा ख को बेचा हुआ घोड़ा अच्छा है ।
ख से क कहता है कि जा कर ग से पूछ लो, ग इस बारे में सब कुछ जानता है । ग का कथन स्वीकृति है ।
खंड- 19. स्वीकृतियों का उन्हें करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध और उनके द्वारा या उनकी ओर से साबित किया जाना ।
स्वीकृतियां उन्हें करने वाले व्यक्ति के या उसके हित प्रतिनिधि के विरुद्ध सुसंगत हैं और साबित की जा सकेंगी, किन्तु उन्हें करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से या उसके हित प्रतिनिधि द्वारा निम्नलिखित अवस्थाओं में के सिवाय उन्हें साबित नहीं किया जा सकेगा, अर्थात् :-
(1) कोई स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से तब साबित की जा सकेगी, जबकि वह इस प्रकृति की है कि यदि उसे करने वाला व्यक्ति मर गया होता, तो वह अन्य व्यक्तियों के बीच धारा 26 के अधीन सुसंगत होती ।
(2) कोई स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से तब साबित की जा सकेगी, जबकि वह मन की या शरीर की सुसंगत या विवाद्य किसी दशा के अस्तित्व का ऐसा कथन है जो उस समय या उसके लगभग किया गया था जब मन की या शरीर की ऐसी दशा विद्यमान थी और ऐसे आचरण के साथ है जो उसकी असत्यता को अनधिसम्भाव्य कर देता है । (3) कोई स्वीकृति उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से साबित की जा सकेगी, यदि वह स्वीकृति के रूप में नहीं किन्तु अन्यथा सुसंगत है ।
दृष्टांत
(क) क और ख के बीच प्रश्न यह है कि अमुक विलेख कूटरचित है या नहीं । क प्रतिज्ञात करता है कि वह असली है, ख प्रतिज्ञात करता है कि वह कूटरचित है। ख का कोई कथन कि विलेख असली है, क साबित कर सकेगा तथा क का कोई कथन कि विलेख कूटरचित है, ख साबित कर सकेगा, किन्तु क अपना यह कथन कि विलेख असली है, साबित नहीं कर सकेगा और न ख ही अपना यह कथन कि विलेख कूटरचित है, साबित कर सकेगा ।
(ख) किसी पोत के कप्तान, क का विचारण उस पोत को संत्यक्त करने के लिए किया जाता है । यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य दिया जाता है कि पोत अपने उचित मार्ग से बाहर ले जाया गया था । क अपने कारबार के मामूली अनुक्रम में अपने द्वारा रखी जाने वाली वह पुस्तक पेश करता है जिसमें वे संप्रेक्षण दर्शित हैं, जिनके बारे में यह अभिकथित है कि वे दिन प्रतिदिन किए गए थे और जिनसे उपदर्शित है कि पोत अपने उचित मार्ग से बाहर नहीं ले जाया गया था । क इन कथनों को साबित कर सकेगा क्योंकि, यदि उसकी मृत्यु हो गई होती तो वे कथन अन्य व्यक्तियों के बीच धारा 26 के खंड (ख) के अधीन ग्राह्य होते ।
(ग) क अपने द्वारा कोलकाता में किए गए अपराध का अभियुक्त है । वह अपने द्वारा लिखित और उसी दिन चेन्नई में दिनांकित और उसी दिन का चेन्नई डाक चिह्न धारण करने वाला पत्र पेश करता है। पत्र की तारीख में का कथन ग्राह्य है क्योंकि, यदि क की मृत्यु हो गई होती, तो वह धारा 26 के खंड (ख) के अधीन ग्राह्य होता ।
(घ) क चुराए हुए माल को यह जानते हुए कि वह चुराया हुआ है प्राप्त करने का अभियुक्त है । वह यह साबित करने की प्रस्थापना करता है कि उसने उसे उसके मूल्य से कम में बेचने से इन्कार किया था । यद्यपि ये स्वीकृतियां हैं तथापि क इन कथनों को साबित कर सकेगा, क्योंकि ये विवाद्यक तथ्यों से प्रभावित उसके आचरण के स्पष्टीकारक हैं ।
(ङ) क अपने कब्जे में कूटकृत मुद्रा, जिसका कूटकृत होना वह जानता था, कपटपूर्वक रखने का अभियुक्त है । वह यह साबित करने की प्रस्थापना करता है कि उसने एक कुशल व्यक्ति से उस सिक्के की परीक्षा करने को कहा था, क्योंकि उसे शंका थी कि वह कूटकृत है या नहीं और उस व्यक्ति ने उसकी परीक्षा की थी और उससे कहा था कि वह असली है। क इन तथ्यों को साबित कर सकेगा ।
खंड- 20. दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु के बारे में मौखिक स्वीकृतियां कब सुसंगत होती हैं।
किसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु के बारे में मौखिक स्वीकृतियां तब तक सुसंगत नहीं होती, यदि और जब तक उन्हें साबित करने की प्रस्थापना करने वाला पक्षकार यह दर्शित न कर दे कि ऐसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तुओं का द्वितीयक साक्ष्य देने का वह एतस्मिन्पश्चात् दिए हुए नियमों के अधीन हकदार है या जब तक पेश की गई दस्तावेज का असली होना प्रश्नगत न हो ।
खंड- 21. सिविल मामलों में स्वीकृतियां कब सुसंगत होती हैं।
सिविल मामलों में कोई भी स्वीकृति सुसंगत नहीं है, यदि वह या तो इस अभिव्यक्त शर्त पर की गई हो कि उसका साक्ष्य नहीं दिया जाएगा, या ऐसी परिस्थितियों के अधीन दी गई हो जिनसे न्यायालय यह अनुमान कर सके कि पक्षकार इस बात पर परस्पर सहमत हो गए थे कि उसका साक्ष्य नहीं दिया जाना चाहिए ।
स्पष्टीकरण-इस धारा की कोई भी बात किसी अधिवक्ता को किसी ऐसी बात का साक्ष्य देने से छूट देने वाली नहीं मानी जाएगी जिसका साक्ष्य देने के लिए धारा 132 की उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन उसे विवश किया जा सकता है ।
खंड- 22. उत्प्रेरणा, धमकी, प्रपीड़न या वचन द्वारा कराई गई संस्वीकृति दाण्डिक कार्यवाही में कब विसंगत होती है ।
अभियुक्त व्यक्ति द्वारा की गई संस्वीकृति दाण्डिक कार्यवाही में विसंगत होती है, यदि उसके किए जाने के बारे में न्यायालय को प्रतीत होता हो कि अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध आरोप के बारे में वह ऐसी उत्प्रेरणा, धमकी, प्रपीड़न या वचन द्वारा कराई गई है जो प्राधिकारवान व्यक्ति की ओर से दिया गया है और जो न्यायालय की राय में इसके लिए पर्याप्त हो कि वह अभियुक्त व्यक्ति को यह अनुमान करने के लिए उसे युक्तियुक्त प्रतीत होने वाले आधार देती है कि उसके करने से वह अपने विरुद्ध कार्यवाहियों के बारे में ऐहिक रूप का कोई फायदा उठाएगा या ऐहिक रूप की किसी बुराई का परिवर्जन कर लेगा :
परंतु यदि संस्वीकृति ऐसी किसी उत्प्रेरणा, धमकी, प्रपीड़न या वचन से कारित हुआ है, पूर्णतः दूर हो जाने के परश्चात् की गई है, तो वह सुसंगत है :
परंतु यदि ऐसी संस्वीकृति अन्यथा सुसंगत है, तो वह केवल इसलिए कि वह गुप्त रखने के वचन के अधीन या उसे अभिप्राप्त करने के प्रयोजनार्थ अभियुक्त व्यक्ति से की गई प्रवंचना के परिणामस्वरूप, या उस समय जब कि वह मत्त था, की गई थी या इसलिए की वह ऐसे प्रश्नों के, चाहे उनका रूप कैसा ही क्यों न रहा हो, उत्तर में की गई थी जिनका उत्तर देना उसके लिए आवश्यक नहीं था, या केवल इसलिए की उसे यह चेतावनी नहीं दी गई थी कि वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं था और कि उसके विरुद्ध उसका साक्ष्य दिया जा सकेगा, विसंगत नहीं हो जाती ।
खंड- 23. पुलिस अधिकारी से की गई संस्वीकृति ।
(1) किसी पुलिस अधिकारी से की गई कोई भी संस्वीकृति किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध साबित न की जाएगी ।
(2) कोई भी संस्वीकृति, जो किसी व्यक्ति ने उस समय की हो जब वह पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में हो, उसके विरुद्ध साबित न की जाएगी जब तक, कि वह मजिस्ट्रेट की साक्षात उपस्थिति में न की गई हो :
परन्तु जब किसी तथ्य के बारे में यह अभिसाक्ष्य दिया जाता है कि किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से, जो पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में हो, प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप उसका पता चला है, तब ऐसी जानकारी में से, उतनी चाहे वह संस्वीकृति की कोटि में आती हो या नहीं, जितनी पता चले हुए तथ्य से स्पष्टतया संबंधित है, साबित की जा सकेगी ।
खंड- 24. साबित संस्वीकृति को, जो उसे करने वाले व्यक्ति और एक ही अपराध के लिए संयुक्त रूप से विचारित अन्य को प्रभावित करती है विचार में लेना।
जब कि एक से अधिक व्यक्ति एक ही अपराध के लिए संयुक्त रूप से विचारित हैं तथा ऐसे व्यक्तियों में से किसी एक के द्वारा, अपने को और ऐसे व्यक्तियों में से किसी अन्य को प्रभावित करने वाली की गई संस्वीकृति को साबित किया जाता है, तब न्यायालय ऐसी संस्वीकृति को ऐसे अन्य व्यक्ति के विरुद्ध तथा ऐसे संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध विचार में ले सकेगा ।
स्पष्टीकरण 1-इस धारा में प्रयुक्त अपराध शब्द के अन्तर्गत उस अपराध का दुष्प्रेरण या उसे करने का प्रयत्न आता है ।
स्पष्टीकरण 2-एक से अधिक व्यक्तियों का विचारण किसी ऐसे अभियुक्त की अनुपस्थिति में किया जाता है, जो भगौड़ा है या जो भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 की धारा 84 के अधीन जारी उद्घोषणा का अनुपालन करने में असफल रहता है, इस धारा के प्रयोजन के लिए संयुक्त विचारण समझा जाएगा ।
दृष्टांत
(क) क और ख को ग की हत्या के लिए संयुक्ततः विचारित किया जाता है । यह साबित किया जाता है कि क ने कहा, ख और मैंने ग की हत्या की है। ख के विरुद्ध इस संस्वीकृति के प्रभाव पर न्यायालय विचार कर सकेगा ।
(ख) ग की हत्या करने के लिए क का विचारण हो रहा है। यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य है कि ग की हत्या क और ख द्वारा की गई थी और यह कि ख ने कहा था कि क और मैंने ग की हत्या की है । न्यायालय इस कथन को क के विरुद्ध विचारार्थ नहीं ले सकेगा, क्योंकि ख संयुक्ततः विचारित नहीं हो रहा है ।
खंड- 25. स्वीकृतियां निश्चायक सबूत नहीं हैं किंतु विबंध कर सकती हैं।
उन व्यक्तियों के कथन, जिन्हें साक्ष्य में बुलाया नहीं जा सकता स्वीकृतियां, स्वीकृत विषयों का निश्चायक सबूत नहीं हैं, किन्तु एतस्मिन पश्चात् अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन विबंध के रूप में प्रवर्तित हो सकेंगी ।
उन व्यक्तियों के कथन, जिन्हें साक्ष्य में बुलाया नहीं जा सकता
खंड- 26. वे दशाएं जिनमें उस व्यक्ति द्वारा सुसंगत तथ्य का किया गया कथन सुसंगत है, जो मर गया है या मिल नहीं सकता, इत्यादि।
सुसंगत तथ्यों के लिखित या मौखिक कथन, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा किए गए थे, जो मर गया है या मिल नहीं सकता है या जो साक्ष्य देने के लिए असमर्थ हो गया है या जिसकी हाजिरी इतने विलम्ब या व्यय के बिना उपाप्त नहीं की जा सकती, जितना मामले की परिस्थितियों में न्यायालय को अयुक्तियुक्त प्रतीत होता है, निम्नलिखित दशाओं में स्वयमेव सुसंगत है, अर्थात् :-
(क) जबकि वह कथन किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या उस संव्यवहार की किसी परिस्थिति के बारे में किया गया है जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हुई, तब उन मामलों में, जिनमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत हो । ऐसे कथन सुसंगत हैं चाहे उस व्यक्ति को, जिसने उन्हें किया है, उस समय जब वे किए गए थे मृत्यु की प्रत्याशंका थी या नहीं और चाहे उस कार्यवाही की, जिसमें उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत होता है, प्रकृति कैसी ही क्यों न हो ।
(ख) जबकि वह कथन ऐसे व्यक्ति द्वारा कारबार के मामूली अनुक्रम में किया गया था तथा विशेषतः जबकि वह, उसके द्वारा कारबार के मामूली अनुक्रम में या वृत्तिक कर्तव्य के निर्वहन में रखी जाने वाली पुस्तकों में उसके द्वारा की गई किसी प्रविष्टि या किए गए ज्ञापन के रूप में है या उसके द्वारा धन, माल, प्रतिभूतियों या किसी भी किस्म की सम्पत्ति की प्राप्ति की लिखित या हस्ताक्षरित अभिस्वीकृत है या वाणिज्य में उपयोग में आने वाली उसके द्वारा लिखित या हस्ताक्षरित किसी दस्तावेज के रूप में है या किसी पत्र या अन्य दस्तावेज की तारीख के रूप में है, जो कि उसके द्वारा प्रायः दिनांकित, लिखित या हस्ताक्षरित की जाती थी ।
(ग) जबकि वह कथन उसे करने वाले व्यक्ति के धन सम्बन्धी या साम्पत्तिक हित के विरुद्ध है या जबकि, यदि वह सत्य हो, तो उसके कारण उस पर दाण्डिक अभियोजन या नुकसानी का वाद लाया जा सकता है या लाया जा सकता था ।
(घ) जबकि उस कथन में उपर्युक्त व्यक्ति की राय किसी ऐसे लोक अधिकार या रूढ़ि या लोक या साधारण हित के विषयों के अस्तित्व के बारे में है, जिसके अस्तित्व से, यदि वह अस्तित्व में होता तो उससे उस व्यक्ति का अवगत होना सम्भाव्य होता और जब कि ऐसा कथन ऐसे किसी अधिकार, रूढ़ि या बात के बारे में किसी संविवाद के उत्पन्न होने से पहले किया गया था ।
(ङ) जब कि वह कथन किन्हीं ऐसे व्यक्तियों के बीच रक्त, विवाह या दत्तकग्रहण पर आधारित किसी नातेदारी के अस्तित्व के सम्बन्ध में है, जिन व्यक्तियों की रक्त, विवाह या दत्तकग्रहण पर आधारित नातेदारी के बारे में उस व्यक्ति के पास, जिसने वह कथन किया है, ज्ञान के विशेष साधन थे और जब कि वह कथन विवादग्रस्त प्रश्न के उठाए जाने से पूर्व किया गया था ।
(च) जब कि वह कथन मृत व्यक्तियों के बीच रक्त, विवाह या दत्तकग्रहण पर आधारित किसी नातेदारी के अस्तित्व के सम्बन्ध में है और उस कुटुम्ब की बातों से, जिसका ऐसा मृत व्यक्ति अंग था, सम्बन्धित किसी विल या विलेख में या किसी कुटुम्ब वंशावली में या किसी समाधि प्रस्तर, कुटुम्ब-चित्र या अन्य चीजों पर जिन पर ऐसे कथन प्रायः किए जाते हैं, किया गया है, और जब कि ऐसा कथन विवादग्रस्त प्रश्न के उठाए जाने से पूर्व किया गया था ।
(छ) जब कि वह कथन किसी ऐसे विलेख, विल या अन्य दस्तावेज में अन्तर्विष्ट है, जो किसी ऐसे संव्यवहार से सम्बन्धित है जैसा धारा 11 के खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट है ।
(ज) जब कि वह कथन कई व्यक्तियों द्वारा किया गया था और प्रश्नगत बात से सुसंगत उनकी भावनाओं या धारणाओं को अभिव्यक्त करता है ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या क की हत्या ख द्वारा की गई थी; या क की मृत्यु किसी संव्यवहार में हुई क्षतियों से जाती है, जिसके अनुक्रम में उससे बलात्संग किया गया था प्रश्न यह है कि क्या उससे ख द्वारा बलात्संग किया गया था, या प्रश्न यह है कि क्या क, ख द्वारा ऐसी परिस्थितियों में मारा गया था कि क की विधवा द्वारा ख पर वाद लाया जा सकता है । अपनी मृत्यु के कारण के बारे में क द्वारा किए गए वे कथन, जो उसने क्रमशः विचाराधीन हत्या, बलात्संग और अनुयोज्य दोष को निर्देशित करते हुए किए है, सुसंगत तथ्य हैं ।
(ख) प्रश्न क के जन्म की तारीख के बारे में है । एक मृत शल्यचिकित्सक की अपने कारबार के मामूली अनुक्रम में नियमित रूप से रखी जाने वाली डायरी में इस कथन की प्रविष्टि कि अमुक दिन उसने क की माता की परिचर्या की और उसे पुत्र का प्रसव कराया, सुसंगत तथ्य है ।
(ग) प्रश्न यह है कि क्या क अमुक दिन नागपुर में था । कारबार के मामूली अनुक्रम में नियमित रूप से रखी गई एक मृत सालिसिटर की डायरी में यह कथन कि अमुक दिन वह सालिसिटर नागपुर में एक वर्णित स्थान पर विनिर्दिष्ट कारबार के बारे में विचार-विमर्श करने के प्रयोजनार्थ क के पास रहा, सुसंगत तथ्य है ।
(घ) प्रश्न यह है कि क्या कोई पोत मुम्बई बन्दरगाह से अमुक दिन रवाना हुआ । किसी वाणिज्यिक फर्म के, जिसके द्वारा वह पोत भाड़े पर लिया गया था, मृत भागीदार द्वारा चेन्नई स्थित अपने सम्पर्कियों को, जिन्हें वह स्थोरा परेषित किया गया था, यह कथन करने वाला पत्र कि पोत मुम्बई पत्तन से अमुक दिन चल दिया, सुसंगत तथ्य है । (ङ) प्रश्न यह कि क्या क को अमुक भूमि का भाटक दिया गया था। क के मृत अभिकर्ता का क के नाम पत्र जिसमें यह कथन है कि उसने क के निमित्त भाटक प्राप्त किया है और वह उसे क के आदेशाधीन रखे हुए है, सुसंगत तथ्य है ।
(च) प्रश्न यह है कि क्या क और ख का विवाह वैध रूप से हुआ था । एक मृत पादरी का यह कथन कि उसने उनका विवाह ऐसी परिस्थितियों में कराया था, जिनमें उसका कराना अपराध होता, सुसंगत है ।
(छ) प्रश्न यह है कि क्या एक व्यक्ति क ने, जो मिल नहीं सकता अमुक दिन एक पत्र लिखा था । यह तथ्य कि उसके द्वारा लिखित एक पत्र पर उस दिन की तारीख दिनांकित है, सुसंगत है ।
(ज) प्रश्न यह है कि किसी पोत के ध्वंस का कारण क्या है । कप्तान द्वारा, जिसकी हाजिरी उपाप्त नहीं की जा सकती, दिया गया प्रसाक्ष्य सुसंगत तथ्य है । (झ) प्रश्न यह है कि क्या अमुक सड़क लोक-मार्ग है। ग्राम के मृत प्रधान क द्वारा किया गया कथन कि वह सड़क लोक-मार्ग है, सुसंगत तथ्य है ।
(ञ) प्रश्न यह है कि विशिष्ट बाजार में अमुक दिन अनाज की क्या कीमत थी । एक मृत व्यवसायी द्वारा अपने कारबार के मामूली अनुक्रम में किया गया कीमत का कथन सुसंगत तथ्य है ।
(ट) प्रश्न यह है कि क्या क, जो मर चुका है ख का पिता था । क द्वारा किया गया यह कथन कि ख उसका पुत्र है, सुसंगत तथ्य है ।
(ठ) प्रश्न यह कि क के जन्म की तारीख क्या है । क के मृत पिता द्वारा किसी मित्र को लिखा हुआ पत्र, जिसमें यह बताया गया है कि क का जन्म अमुक दिन हुआ, सुसंगत तथ्य है ।
(ड) प्रश्न यह है कि क्या और कब क और ख का विवाह हुआ था । ख के मृत पिता ग द्वारा किसी याददाश्त-पुस्तिका में अपनी पुत्री का क के साथ अमुक तारीख को विवाह होने की प्रविष्टि सुसंगत तथ्य है ।
(ढ) दुकान की खिड़की में अभिदर्शित रंगित उपहासांकन में अभिव्यक्त अपमान-लेख के लिए ख पर क वाद लाता है। प्रश्न उपहासांकन की समरूपता तथा उसके अपमान- लेखीय प्रकृति के बारे में है । इन बातों पर दर्शकों की भीड़ की टिप्पणियां साबित की जा सकेंगी ।
खंड- 27. किसी साक्ष्य में कथित तथ्यों की सत्यता को पश्चातवर्ती कार्यवाही में साबित करने के लिए उस साक्ष्य की सुसंगति।
वह साक्ष्य, जो किसी साक्षी ने किसी न्यायिक कार्यवाही में, या विधि द्वारा उसे लेने के लिए प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष दिया है, उन तथ्यों की सत्यता को, जो उस साक्ष्य में कथित हैं, किसी पश्चातवर्ती न्यायिक कार्यवाही में या उसी न्यायिक कार्यवाही के आगामी प्रक्रम में साबित करने के प्रयोजन के लिए तब सुसंगत है, जब कि वह साक्षी मर गया है या मिल नहीं सकता है या वह साक्ष्य देने के लिए असमर्थ है या प्रतिपक्षी द्वारा उसे पहुंच के बाहर कर दिया गया है या यदि उसकी उपस्थिति इतने विलम्ब या व्यय के बिना, जितना कि मामले की परिस्थितियों में न्यायालय अयुक्तियुक्त समझता है, अभिप्राप्त नहीं की जा सकती :
परन्तु वह तब जब कि वह कार्यवाही उन्हीं पक्षकारों या उनके हित प्रतिनिधियों के बीच में थी, प्रथम कार्यवाही में प्रतिपक्षी को प्रतिपरीक्षा का अधिकार और अवसर था, और विवाद्य प्रश्न प्रथम कार्यवाही में सारतः वही थे जो द्वितीय कार्यवाही में हैं ।
स्पष्टीकरण दाण्डिक विचारण या जांच इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अभियोजक और अभियुक्त के बीच कार्यवाही समझी जाएगी ।
खंड- 28. लेखा-पुस्तकों की प्रविष्टियां कब सुसंगत हैं।
कारबार के अनुक्रम में नियमित रूप से रखी गई लेखा-पुस्तकों की प्रविष्टियां, जिनके अन्तर्गत वे भी हैं जो इलैक्ट्रानिक रूप में रखी गई हैं, जब कभी वे ऐसे विषय का निर्देश करती हैं जिसमें न्यायालय को जांच करनी है, सुसंगत हैं, किन्तु अकेले ऐसे कथन ही किसी व्यक्ति को दायित्व से भारित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं होंगे ।
दृष्टांत
ख पर क एक हजार रुपए के लिए वाद लाता है और अपनी लेखा बहियों की वे प्रवष्टियां दर्शित करता है, जिनमें ख को इस रकम के लिए उसका ऋणी दर्शित किया गया है । ये प्रविष्टियां सुसंगत हैं किन्तु ऋण साबित करने के लिए अन्य साक्ष्य के बिना पर्याप्त नहीं हैं ।
खंड- 29. कर्तव्य-पालन में की गई लोक अभिलेख या इलैक्ट्रानिकी अभिलेख की प्रविष्टियों की सुसंगति ।
किसी लोक या अन्य राजकीय पुस्तक, रजिस्टर या अभिलेख या इलैक्ट्रानिक अभिलेख में की गई प्रविष्टि, जो किसी विवाद्यक या सुसंगत तथ्य का कथन करती है और किसी लोक सेवक द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में या उस देश की, जिसमें ऐसी पुस्तक, रजिस्टर या अभिलेख या इलैक्ट्रानिक अभिलेख रखा जाता है, विधि द्वारा विशेष रूप से व्यादिष्ट कर्तव्य के पालन में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई है, स्वयं सुसंगत तथ्य है ।
खंड- 30. मानचित्रों, चार्टों और रेखांकों के कथनों की सुसंगति।
विवाद्रद्यक तथ्यों या सुसंगत तथ्यों के वे कथन, जो प्रकाशित मानचित्रों या चार्टों में, जो लोक विक्रय के लिए साधारणतः प्रस्थापित किए जाते हैं या केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के प्राधिकार के अधीन बनाए गए मानचित्रों या रेखांकों में किए गए हैं, उन विषयों के बारे में जो ऐसे मानचित्रों, चार्टों या रेखांकों में प्रायः रूपित या कथित होते हैं, स्वयं सुसंगत तथ्य हैं ।
खंड- 31. किन्हीं अधिनियमों या अधिसूचनाओं में अन्तर्विष्ट लोक प्रकृति के तथ्य के बारे में कथन की सुसंगति ।
जब कि न्यायालय को किसी लोक प्रकृति के तथ्य के अस्तित्व के बारे में राय बनानी है तब किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम में या संबंधित शासकीय राजपत्र में प्रकाशित केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा की गई अधिसूचना में तात्पर्यित होने वाले किसी मुद्रित पत्र या इलैक्ट्रानिक या डिजिटल प्ररूप में अन्तर्विष्ट परिवर्णन में किया गया, उसका कोई कथन सुसंगत तथ्य है ।
खंड- 32. विधि की पुस्तकों में अन्तर्विष्ट किसी विधि के कथनों की सुसंगति, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक या डिजिटल प्ररूप भी हैं ।
जब कि न्यायालय को किसी देश की विधि के बारे में राय बनानी है, तब ऐसी विधि का कोई भी कथन, जो ऐसी किसी पुस्तक में अन्तर्विष्ट है जो ऐसे देश की सरकार के प्राधिकार के अधीन मुद्रित या प्रकाशित है, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक या डिजिटल प्ररूप भी है और ऐसी किसी विधि को अन्तर्विष्ट करने वाली तात्पर्यित है, और ऐसे देश के न्यायालयों के किसी विनिर्णय की कोई रिपोर्ट, जो ऐसी व्यवस्थाओं की रिपोर्ट से तात्पर्यित होने वाली किसी पुस्तक, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक या डिजिटल प्ररूप भी है, में अन्तर्विष्ट है, सुसंगत है ।
खंड- 33. कथन किसी बातचीत, दस्तावेज, इलैक्ट्रानिक अभिलेख, पुस्तक या पत्रों या कागज-पत्रों की आवली का भाग हो, तब क्या साक्ष्य दिया जाए।
जबकि कोई कथन, जिसका साक्ष्य दिया जाता है, किसी बृहत्तर कथन का या किसी बातचीत का भाग है या किसी एकल दस्तावेज का भाग है या किसी ऐसी दस्तावेज में अन्तर्विष्ट है जो किसी पुस्तक का या पत्रों या कागज-पत्रों की संसक्त आवली का भाग है या इलैक्ट्रानिक अभिलेख के भाग में अंतर्विष्ट है तब उस कथन, बातचीत, दस्तावेज, इलैक्ट्रानिक अभिलेख, पुस्तक या पत्रों या कागज-पत्रों की आवली के उतने का ही, न कि उतने से अधिक का साक्ष्य दिया जाएगा, जितना न्यायालय उस कथन की प्रकृति और प्रभाव को तथा उन परिस्थितियों को, जिनके अधीन वह किया गया था, पूर्णतः समझने के लिए उस विशिष्ट मामले में आवश्यक विचार करता है ।
खंड- 34. द्वितीय वाद या विचारण के वारणार्थ पूर्व निर्णय सुसंगत हैं।
किसी ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री का अस्तित्व, जो किसी न्यायालय को किसी वाद के संज्ञान से या कोई विचारण करने से विधि द्वारा निवारित करता है, सुसंगत तथ्य है जब कि प्रश्न यह हो कि क्या ऐसे न्यायालय को ऐसे वाद का संज्ञान या ऐसा विचारण करना चाहिए ।
खंड- 35. प्रोबेट इत्यादि विषयक अधिकारिता के किन्हीं निर्णयों की सुसंगति।
(1) किसी सक्षम न्यायालय के प्रोबेट-विषयक, विवाह-विषयक, नावधिकरण- विषयक या दिवाला-विषयक अधिकारिता के प्रयोग में दिया हुआ अन्तिम निर्णय, आदेश या डिक्री, जो किसी व्यक्ति को, या से, कोई विधिक हैसियत प्रदान करती या ले लेती है या जो सर्वतः न कि किसी विनिर्दिष्ट व्यक्ति के विरुद्ध किसी व्यक्ति को ऐसी किसी हैसियत का हकदार या किसी विनिर्दिष्ट चीज का हकदार घोषित करती है, तब सुसंगत हैं जब कि किसी ऐसी विधिक हैसियत, या किसी ऐसी चीज पर किसी ऐसे व्यक्ति के हक का अस्तित्व सुसंगत है ।
(2) ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री इस बात का निश्चायक सबूत है कि- (i) कोई विधिक हैसियत, जो वह प्रदत्त करती है, उस समय प्रोद्भूत हुई जब ऐसा निर्णय, आदेश या डिक्री परिवर्तन में आई ;
(ii) कोई विधिक हैसियत, जिसके लिए वह किसी व्यक्ति को हकदार घोषित करती है, उस व्यक्ति को उस समय प्रोद्भूत हुई जो समय ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री द्वारा घोषित है कि उस समय यह उस व्यक्ति को प्रोद्भूत हुई ;
(iii) कोई विधिक हैसियत, जिसे वह किसी ऐसे व्यक्ति से ले लेती है उस समय खत्म हुई जो समय ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री द्वारा घोषित है कि उस समय से वह हैसियत खत्म हो गई थी या खत्म हो जानी चाहिए; और
(iv) कोई चीज जिसके लिए वह किसी व्यक्ति को ऐसा हकदार घोषित करती है उस व्यक्ति की उस समय सम्पत्ति थी जो उस समय ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री द्वारा घोषित है कि उस समय से वह चीज उसकी सम्पत्ति थी या होनी चाहिए ।
खंड- 36. धारा 35 में वर्णित से भिन्न निर्णयों, आदेशों या डिक्रियों की सुसंगति और प्रभाव।
वे निर्णय, आदेश या डिक्रियां जो धारा 35 में वर्णित से भिन्न हैं, यदि वे जांच में सुसंगत लोक प्रकृति की बातों से सम्बन्धित हैं, तो वे सुसंगत हैं, किन्तु ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्रियां उन बातों का निश्चायक सबूत नहीं हैं जिनका वे कथन करती हैं ।
दृष्टांत
क अपनी भूमि पर अतिचार के लिए ख पर वाद लाता है । ख उस भूमि पर मार्ग के लोक अधिकार का अस्तित्व अभिकथित करता है जिसका क प्रत्याख्यान करता है । क द्वारा ग के विरुद्ध उसी भूमि पर अतिचार के लिए वाद में, जिसमें ग ने उसी मार्गाधिकार का अस्तित्व अभिकथित किया था, प्रतिवादी के पक्ष में डिक्री का अस्तित्व सुसंगत है, किन्तु वह इस बात का निश्चायक सबूत नहीं है कि वह मार्गाधिकार अस्तित्व में है।
खंड- 37. धारा 34, धारा 35 और धारा 36 में वर्णित से भिन्न निर्णय आदि कब सुसंगत हैं ।
धारा 34, धारा 35 और धारा 36 में वर्णित से भिन्न निर्णय, आदेश या डिक्रियां विसंगत हैं जब तक कि ऐसे निर्णय, आदेश या डिक्री का अस्तित्व विवाद्यक तथ्य न हो या वह इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के अन्तर्गत सुसंगत न हो ।
दृष्टांत
(क) क और ख किसी अपमान-लेख के लिए, जो उनमें से हर एक पर लांछन लगाता है, ग पर पृथक् पृथक् वाद लाते हैं । हर एक मामले में ग कहता है कि वह बात, जिसका अपमान-लेखीय होना अभिकथित है, सत्य है और परिस्थितियां ऐसी हैं कि वह अधिसम्भाव्यतः या तो हर एक मामले में सत्य है या किसी में नहीं । ग के विरुद्ध क इस आधार पर कि ग अपना न्यायोचित साबित करने में असफल रहा, नुकसानी की डिक्री अभिप्राप्त करता है। यह तथ्य ख और ग के बीच विसंगत है ।
(ख) ख का अभियोजन क इसलिए करता है कि उसने क की गाय चुराई है । ख दोषसिद्ध किया जाता है । तत्पश्चात् क उस गाय के लिए, जिसे ख ने दोषसिद्धि होने से पूर्व ग को बेच दिया था, ग पर वाद लाता है । ख के विरुद्ध वह निर्णय क और ग के बीच विसंगत है ।
(ग) क ने ख के विरुद्ध भूमि के कब्जे की डिक्री अभिप्राप्त की है। ख का पुत्र ग परिणास्वरूप क की हत्या करता है । उस निर्णय का अस्तित्व अपराध का हेतु दर्शित करने के नाते सुसंगत है ।
(घ) क पर चोरी और चोरी के लिए पूर्व दोषसिद्धि का आरोप है । पूर्व दोषसिद्धि विवाद्द्यक तथ्य होने के नाते सुसंगत है।
(ङ) ख की हत्या के लिए क विचारित किया जाता है । यह तथ्य कि ख ने क पर अपमान-लेख के लिए अभियोजन चलाया था और क दोषसिद्ध और दण्डित किया गया था, धारा 6 के अधीन विवाद्यक तथ्य का हेतु दर्शित करने के नाते सुसंगत है ।
खंड- 38. निर्णय अभिप्राप्त करने में कपट या दुस्संधि या न्यायालय की अक्षमता साबित की जा सकेगी।
वाद या अन्य कार्यवाही का कोई भी पक्षकार यह दर्शित कर सकेगा कि कोई निर्णय, आदेश या डिक्री, जो धारा 34, धारा 35 या धारा 36 के अधीन सुसंगत है और जो प्रतिपक्षी द्वारा साबित की जा चुकी है, ऐसे न्यायालय द्वारा दी गई थी जो उसे देने के लिए अक्षम था या कपट या दुस्संधि द्वारा अभिप्राप्त की गई थी ।
खंड- 39. विशेषज्ञों की रायें ।
(1) जब कि न्यायालय की विदेशी विधि की या विज्ञान की या कला या किसी अन्य क्षेत्र की किसी बात पर या हस्तलेख या अंगुली-चिह्नों की अनन्यता के बारे में राय बनानी हो तब उस बात पर ऐसी विदेशी विधि, विज्ञान या कला या किसी अन्य क्षेत्र में या हस्तलेख या अंगुली-चिह्नों की अनन्यता विषयक प्रश्नों में, विशेष कुशल व्यक्तियों की रायें सुसंगत तथ्य हैं और ऐसे व्यक्ति विशेषज्ञ कहलाते हैं ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या क की मृत्यु विष द्वारा कारित हुई । जिस विष के बारे में अनुमान है कि उससे क की मृत्यु हुई है, उस विष से पैदा हुए लक्षणों के बारे में विशेषज्ञों की रायें सुसंगत हैं ।
(ख) प्रश्न यह है कि क्या क अमुक कार्य करने के समय चित्त-विकृत के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ था । इस प्रश्न पर विशेषज्ञों की रायें सुसंगत हैं कि क्या क द्वारा प्रदर्शित लक्षणों से चित्त-विकृत सामान्यतः दर्शित होती है तथा क्या ऐसी चित्त-विकृत लोगों को उन कार्यों की प्रकृति, जिन्हें वे करते हैं, या वह कि जो कुछ वे कर रहे हैं वह या तो दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल हैं, जानने में प्रायः असमर्थ बना देती है ।
(ग) प्रश्न यह है कि क्या अमुक दस्तावेज क द्वारा लिखी गई थी । एक अन्य दस्तावेज पेश की जाती है जिसका क द्वारा लिखा जाना साबित या स्वीकृत है । इस प्रश्न पर विशेषज्ञों की रायें सुसंगत हैं कि क्या दोनों दस्तावेज एक ही व्यक्ति द्वारा या विभिन्न व्यक्तियों द्वारा लिखी गई थीं ।
(2) जब न्यायालय को किसी कार्यवाही में किसी कंप्यूटर संसाधन या किसी अन्य इलैक्ट्रानिक या डिजिटल प्ररूप में पारेषित या भंडारित किसी सूचना के संबंध में कोई राय बनानी हो तब सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79क में निर्दिष्ट इलैक्ट्रानिकी साक्ष्य परीक्षक की राय एक सुसंगत तथ्य है ।
स्पष्टीकरण इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए इलैक्ट्रानिकी साक्ष्य परीक्षक एक विशेषज्ञ होगा ।
खंड- 40. विशेषज्ञों की रायों से संबंधित तथ्य।
वे तथ्य, जो अन्यथा सुसंगत नहीं हैं, सुंसगत होते हैं यदि वे विशेषज्ञों की रायों का समर्थन करते हों या उनसे असंगत हों जब कि ऐसी रायें सुसंगत हों ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या क को अमुक विष दिया गया था । यह तथ्य सुसंगत है कि अन्य व्यक्तियों में भी, जिन्हें वह विष दिया गया था, अमुक लक्षण प्रकट हुए थे, जिनका उस विष के लक्षण होना विशेषज्ञ प्रतिज्ञात या प्रत्याख्यात करते हैं ।
(ख) प्रश्न यह है कि क्या किसी बन्दरगाह में कोई बाधा अमुक समुद्र-भित्ति से कारित हुई है । यह तथ्य सुसंगत है कि अन्य बन्दरगाह, जो अन्य दृष्टियों से वैसे ही स्थित थे, किन्तु जहां ऐसी समुद्र-भित्तियां नहीं थी, लगभग उसी समय बाधित होने लगे थे ।
खंड- 41. हस्तलेख और हस्ताक्षर के बारे में राय कब सुसंगत है।
(1) जबकि न्यायालय को राय बनानी हो कि कोई दस्तावेज किस व्यक्ति ने लिखी या हस्ताक्षरित की थी, तब उस व्यक्ति के हस्तलेख से, जिसके द्वारा वह लिखी या हस्ताक्षरित की गई अनुमानित की जाती है, परिचित किसी व्यक्ति की यह राय कि वह उस व्यक्ति द्वारा लिखी या हस्ताक्षरित की गई थी अथवा लिखी या हस्ताक्षरित नहीं की गई थी सुसंगत तथ्य है ।
स्पष्टीकरण कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के हस्तलेख से परिचित तब कहा जाता है, जब कि उसने उस व्यक्ति को लिखते देखा है या जब कि स्वयं अपने द्वारा या अपने प्राधिकार के अधीन लिखित और उस व्यक्ति को संबोधित दस्तावेज के उत्तर में उस व्यक्ति द्वारा लिखी हुई तात्पर्यित होने वाली दस्तावेजें प्राप्त की हैं, या जबकि कारबार के मामूली अनुक्रम में उस व्यक्ति द्वारा लिखी हुई तात्पर्यित होने वाली दस्तावेजें उसके समक्ष बराबर रखी जाती रही हैं ।
दृष्टांत
प्रश्न यह है कि क्या अमुक पत्र ईटानगर के एक व्यापारी क के हस्तलेख में है । ख बंगलूरु में एक व्यापारी है जिसने क को पत्र संबोधित किए हैं तथा उसके द्वारा लिखे हुए तात्पर्यत होने वाले पत्र प्राप्त किए हैं। ग, ख का लिपिक है, जिसका कर्तव्य ख के पत्र-व्यवहार को देखना और फाइल करना था । ख का दलाल घ है जिसके समक्ष क द्वारा लिखे गए तात्पर्यित होने वाले पत्रों को उनके बारे में उससे सलाह करने के लिए ख बराबर रखा करता था । ख, ग और घ की इस प्रश्न पर रायें कि क्या वह पत्र क के हस्तलेख में है, सुसंगत हैं, यद्यपि न तो खने, न ग ने, न घ ने क को लिखते हुए कभी देखा था ।
(2) जब न्यायालय को किसी व्यक्ति के इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर के बारे में राय बनानी हो तो प्रमाणकर्ता प्राधिकारी की राय में, जिसने इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र जारी किया है, सुसंगत तथ्य है ।
खंड- 42. साधारण रूढ़ि या अधिकार के अस्तित्व के बारे में रायें कब सुसंगत हैं ।
जबकि न्यायालय को किसी साधारण रूढ़ि या अधिकार के अस्तित्व के बारे में राय बनानी हो, तब ऐसी रूढ़ि या अधिकार के अस्तित्व के बारे में उन व्यक्तियों की रायें सुसंगत हैं, जो यदि उसका अस्तित्व होता तो संभाव्यतः उसे जानते होते ।
स्पष्टीकरण साधारण रूढ़ि या अधिकार के अन्तर्गत ऐसी रूढ़ियां या अधिकार आते हैं जो व्यक्तियों के किसी काफी बड़े वर्ग के लिए सामान्य हैं ।
दृष्टांत
किसी विशिष्ट ग्राम के निवासियों का अमुक कूप के पानी का उपयोग करने का अधिकार इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत साधारण अधिकार है ।
खंड- 43. प्रथाओं, सिद्धान्तों आदि के बारे में रायें कब सुसंगत हैं।
जबकि न्यायालय को-
(i) मनुष्यों के किसी निकाय या कुटुम्ब की प्रथाओं या सिद्धांतों के ; (ii) किसी धार्मिक या खैराती प्रतिष्ठान के संविधान और शासन के ;
(iii) विशिष्ट जिले या विशिष्ट वर्गों के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले शब्दों या पदों के अर्थों के बारे में राय बनानी हो, तब उनके संबंध में, ज्ञान के विशेष साधन रखने वाले व्यक्तियों की राय, सुसंगत तथ्य हैं।
खंड- 44. नातेदारी के बारे में राय कब सुसंगत है।
जबकि न्यायालय को एक व्यक्ति की किसी अन्य के साथ नातेदारी के बारे में राय बनानी हो, तब ऐसी नातेदारी के अस्तित्व के बारे में ऐसे किसी व्यक्ति के आचरण द्वारा अभिव्यक्त राय, जिसके पास कुटुम्ब के सदस्य के रूप में या अन्यथा उस विषय के संबंध में ज्ञान के विशेष साधन हैं, सुसंगत तथ्य है :
परन्तु भारतीय विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1869 के अधीन कार्यवाहियों में या भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 82 और धारा 84 के अधीन अभियोजनों में ऐसी राय विवाह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी ।
दृष्टांत
(क) प्रश्न यह है कि क्या क और ख विवाहित थे। यह तथ्य कि वे अपने मित्रों द्वारा पति और पत्नी के रूप में प्रायः स्वीकृत किए जाते थे और उनसे वैसा बर्ताव किया जाता था सुसंगत है ।
(ख) प्रश्न यह है कि क्या क, ख का धर्मज पुत्र है। यह तथ्य कि कुटुम्ब के सदस्यों द्वारा क से सदा उस रूप में बर्ताव किया जाता था, सुसंगत है ।
खंड- 45. राय के आधार कब सुसंगत हैं।
जब कभी किसी जीवित व्यक्ति की राय सुसंगत है, तब वे आधार भी, जिन पर वह आधारित है, सुसंगत हैं।
दृष्टांत
कोई विशेषज्ञ अपनी राय बनाने के प्रयोजनार्थ किए हुए प्रयोगों का विवरण दे सकता है ।
खंड- 46. सिविल मामलों में अध्यारोपित आचरण साबित करने के लिए शील विसंगत है।
सिविल मामलों में यह तथ्य कि किसी सम्पृक्त व्यक्ति का शील ऐसा है कि जो उस पर अध्यारोपित किसी आचरण को अधिसंभाव्य या अनधिसंभाव्य बना देता है, विसंगत है वहां तक के सिवाय जहां तक कि ऐसा शील अन्यथा सुसंगत तथ्यों से प्रकट होता है ।
खंड- 47. दाण्डिक मामलों में पूर्वतन अच्छा शील सुसंगत है।
दाण्डिक कार्यवाहियों में यह तथ्य सुसंगत है कि अभियुक्त व्यक्ति अच्छे शील का है।
खंड- 48. कतिपय मामलों में शील या पूर्व लैंगिक अनुभव के साक्ष्य का सुसंगत न होना।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा 67, धारा 68, धारा 69, धारा 70, धारा 71, धारा 74, धारा 75, धारा 76, धारा 77 या धारा 78 के अधीन किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के किए जाने का प्रयत्न करने के लिए, किसी अभियोजन में जहां सम्मति का प्रश्न विवाद्य है वहां पीड़ित के शील या ऐसे व्यक्ति का किसी व्यक्ति के साथ पूर्व लैंगिक अनुभव का साक्ष्य ऐसी सम्मति या सम्मति की गुणता के मुद्दे पर सुसंगत नहीं होगा ।
खंड- 49. उत्तर में होने के सिवाय पूर्वतन बुरा शील सुसंगत नहीं है।
दाण्डिक कार्यवाहियों में यह तथ्य कि अभियुक्त बुरे शील का है, विसंगत है, जब तक कि इस बात का साक्ष्य न दिया गया हो कि वह अच्छे शील का है, जिसके दिए जाने की दशा में वह सुसंगत हो जाता है।
स्पष्टीकरण 1-यह धारा उन मामलों को लागू नहीं है जिनमें किसी व्यक्ति का बुरा शील स्वयं विवाद्यक तथ्य है ।
स्पष्टीकरण 2-पूर्व दोषसिद्ध बुरे शील के साक्ष्य के रूप में सुसंगत है ।
खंड- 50. नुकसानी पर प्रभाव डालने वाला शील।
सिविल मामलों में, यह तथ्य कि किसी व्यक्ति का शील ऐसा है जिससे नुकसानी की रकम पर, जो उसे मिलनी चाहिए, प्रभाव पड़ता है, सुसंगत है ।
स्पष्टीकरण इस धारा में और धारा 46, धारा 47 और धारा 49 में शील शब्द के अन्तर्गत ख्याति और स्वभाव दोनों आते हैं, किन्तु धारा 49 में यथा उपबंधित के सिवाय केवल साधारण ख्याति व साधारण स्वभाव का ही न कि ऐसे विशिष्ट कार्यों का, जिनके द्वारा, ख्याति या स्वभाव दर्शित हुए थे, साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
अध्याय 3- तथ्य, जिनका साबित किया जाना आवश्यक नहीं है
खंड- 51. न्यायिक रूप से अवेक्षणीय तथ्य साबित करना आवश्यक नहीं है ।
जिस तथ्य की न्यायालय न्यायिक अवेक्षा करेगा, उसे साबित करना आवश्यक नहीं है ।
खंड- 52. वे तथ्य, जिनकी न्यायिक अवेक्षा न्यायालय करेगा ।
(1) न्यायालय निम्नलिखित तथ्यों की न्यायिक अवेक्षा करेगा, अर्थात्ः-
(क) भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त समस्त विधियां, जिसके अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र से बाहर प्रचालित विधियां सम्मिलित हैं ;
(ख) भारत द्वारा किसी देश या देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय संधि, करार या अभिसमय या अंतर्राष्ट्रीय संगमों या अन्य निकायों में भारत द्वारा किए गए विनिश्चय ;
(ग) भारत की संविधान सभा, भारत की संसद् और राज्य विधानमंडलों की
कार्यवाही का अनुक्रम ;
(घ) सभी न्यायालयों और अधिकरणों की मुद्राएं ;
(ङ) नावधिकरण और समुद्रीय अधिकारिता वाले न्यायालयों की और नोटरीज पब्लिक की मुद्राएं और वे सब मुद्राएं, जिनका कोई व्यक्ति संविधान या संसद् या राज्य विधानमंडल के किसी अधिनियम या भारत में विधि का बल रखने वाले विनियम द्वारा उपयोग करने के लिए प्राधिकृत है ;
(च) किसी राज्य में किसी लोक पद पर तत्समय आरूढ़ व्यक्तियों के कोई पदारोहण, नाम, उपाधियां, कृत्य और हस्ताक्षर, यदि ऐसे पद पर उनकी नियुक्ति का तथ्य किसी शासकीय राजपत्र में अधिसूचित किया गया हो;
(छ) भारत सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त हर देश या संप्रभु का अस्तित्व, उपाधि और राष्ट्रीय ध्वज ;
(ज) समय के प्रभाग, पृथ्वी के भौगोलिक प्रभाग तथा शासकीय राजपत्र में अधिसूचित लोक उत्सव, उपवास और अवकाश दिन ;
(झ) भारत का राज्यक्षेत्र ;
(ञ) भारत सरकार और अन्य किसी देश या व्यक्तियों के निकाय के बीच संघर्ष का प्रारम्भ, चालू रहना और पर्यवसान ;
(ट) न्यायालय के सदस्यों और आफिसरों के तथा उनके उप-पदियों और अधीनस्थ आफिसरों और सहायकों के और उसकी आदेशिकाओं के निष्पादन में कार्य करने वाले सब आफिसरों के भी, तथा सब अधिवक्ताओं और उनके समक्ष उपसंजात होने या कार्य करने के लिए किसी विधि द्वारा प्राधिकृत अन्य व्यक्तियों के नाम ;
(ठ) भूमि या समुद्र पर मार्ग का नियम ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट मामलों में, और लोक इतिहास, साहित्य, विज्ञान या कला के सब विषयों में भी न्यायालय समुपयुक्त निर्देश पुस्तकों या दस्तावेजों की सहायता ले सकेगा और यदि न्यायालय से किसी तथ्य की न्यायिक अवेक्षा करने की किसी व्यक्ति द्वारा प्रार्थना की जाती है, तो यदि और जब तक वह व्यक्ति कोई ऐसी पुस्तक या दस्तावेज पेश न कर दे, जिसे ऐसा न्यायालय अपने को ऐसा करने को समर्थ बनाने के लिए आवश्यक समझता है, न्यायालय ऐसा करने से इन्कार कर सकेगा ।
खंड- 53. स्वीकृत तथ्यों को साबित करना आवश्यक नहीं है ।
किसी ऐसे तथ्य को किसी कार्यवाही में साबित करना आवश्यक नहीं है, जिसे उस कार्यवाही के पक्षकार या उनके अभिकर्ता सुनवाई पर स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाते हैं, या जिसे वे सुनवाई के पूर्व किसी स्वहस्ताक्षरित लेख द्वारा स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाते हैं या जिसके बारे में अभिवचन संबंधी किसी तत्समय प्रवृत्त नियम के अधीन यह समझ लिया जाता है कि उन्होंने उसे अपने अभिवचनों द्वारा स्वीकार कर लिया है :
परन्तु न्यायालय स्वीकृत तथ्यों का ऐसी स्वीकृतियों द्वारा साबित किए जाने से अन्यथा साबित किया जाना अपने विवेकानुसार अपेक्षित कर सकेगा ।
अध्याय 4- मौखिक साक्ष्य के विषय में
खंड- 54. मौखिक साक्ष्य द्वारा तथ्यों का साबित किया जाना ।
दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु के सिवाय सभी तथ्य मौखिक साक्ष्य द्वारा साबित किए जा सकेंगे ।
खंड- 55. मौखिक साक्ष्य का प्रत्यक्ष होना ।
मौखिक साक्ष्य, समस्त अवस्थाओं में चाहे वे कैसी ही हों, प्रत्यक्ष ही होगा, यदि यह-
(i) किसी देखे जा सकने वाले तथ्य के बारे में है, तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसे देखा;
(ii) किसी सुने जा सकने वाले तथ्य के बारे में है, तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसे सुना;
(iii) किसी ऐसे तथ्य के बारे में है जिसका किसी अन्य इंद्रिय द्वारा या किसी अन्य रीति से बोध हो सकता था, तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसका बोध उस इंद्रिय द्वारा या उस रीति से किया;
(iv) किसी राय के, या उन आधारों के, जिन पर वह राय धारित है, बारे में है, तो वह उस व्यक्ति का ही साक्ष्य होगा जो वह राय उन आधारों पर धारण करता है :
परन्तु विशेषज्ञों की रायें, जो सामान्यतः विक्रय के लिए प्रस्थापित की जाने वाली किसी पुस्तक में अभिव्यक्त हैं, और वे आधार, जिन पर ऐसी रायें धारित हैं, यदि रचयिता मर गया है, या वह मिल नहीं सकता है या वह साक्ष्य देने के लिए असमर्थ हो गया है या उसे इतने विलम्ब या व्यय के बिना जितना न्यायालय अयुक्तियुक्त समझता है, साक्षी के रूप में बुलाया नहीं जा सकता हो, ऐसी पुस्तकों को पेश करके साबित किए जा सकेंगे :
परन्तु यह भी कि यदि मौखिक साक्ष्य दस्तावेज से भिन्न किसी भौतिक चीज के अस्तित्व या दशा के बारे में है, तो न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, ऐसी भौतिक चीज का अपने निरीक्षणार्थ पेश किया जाना अपेक्षित कर सकेगा ।
अध्याय 5- दस्तावेजी साक्ष्य के विषय में
खंड- 56. दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु का सबूत ।
दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु या तो प्राथमिक या द्वितीयक साक्ष्य द्वारा साबित की जा सकेगी ।
खंड- 57. प्राथमिक साक्ष्य ।
प्राथमिक साक्ष्य से न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई दस्तावेज स्वयं अभिप्रेत है ।
स्पष्टीकरण 1 जहां कि कोई दस्तावेज कई मूल प्रतियों में निष्पादित है वहां हर एक मूल प्रति उस दस्तावेज का प्राथमिक साक्ष्य है ।
स्पष्टीकरण 2 जहां कि कोई दस्तावेज प्रतिलेख में निष्पादित है और हर एक प्रतिलेख पक्षकारों में से केवल एक पक्षकार या कुछ पक्षकारों द्वारा निष्पादित किया गया है, वहां हर एक प्रतिलेख उन पक्षकारों के विरुद्ध, जिन्होंने उसका निष्पादन किया है, प्राथमिक साक्ष्य है।
स्पष्टीकरण 3-जहां कि अनेक दस्तावेजें एकरूपात्मक प्रक्रिया द्वारा बनाई गई हैं जैसा कि मुद्रण, शिला मुद्रण या फोटो चित्रण में होता है, वहां उनमें से हर एक शेष सबकी अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है, किन्तु जहां कि वे सब किसी सामान्य मूल की प्रतियां हैं वहां वे मूल की अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य नहीं है ।
स्पष्टीकरण 4 जहां कोई इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख सृजित या भंडारित किया जाता है और ऐसा भंडारण एकसाथ या पश्चातवर्ती रूप से अनेक फाइलों में किया जाता है, उनमें से हर एक फाइल प्राथमिक साक्ष्य है ।
स्पष्टीकरण 5 जहां कोई इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख समुचित अभिरक्षा से प्रस्तुत किया जाता है, ऐसा इलैक्ट्रानिक और डिजिटल अभिलेख प्राथमिक साक्ष्य है, जब तक कि वह विवादग्रस्त नहीं है ।
स्पष्टीकरण 6 जहां किसी वीडियो रिकार्डिंग को इलैक्ट्रानिक प्ररूप में एक साथ भंडारित किया जाता है और किसी अन्य व्यक्ति को पारेषित या प्रसारित या अंतरित किया जाता है तो हर एक भंडारित रिकार्डिंग प्राथमिक साक्ष्य है ।
स्पष्टीकरण 7-जहां किसी इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख को किसी कंप्यूटर संसाधन में एक से अधिक भंडारण स्थान में भंडारित किया जाता है, ऐसा प्रत्येक स्वचालित भंडारण, जिसके अंतर्गत अस्थायी फाइलें हैं, प्राथमिक साक्ष्य हैं ।
दृष्टांत
यह दर्शित किया जाता है कि एक ही समय एक ही मूल से मुद्रित अनेक प्लेकार्ड किसी व्यक्ति के कब्जे में रखे हैं। इन प्लेकार्डों में से कोई भी एक अन्य किसी की भी अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है किन्तु उनमें से कोई भी मूल की अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य नहीं है ।
खंड- 58. द्वितीयक साक्ष्य ।
द्वितीयक साक्ष्य के अन्तर्गत आते हैं-
(i) एतस्मिन्पश्चात् अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन दी हुई प्रमाणित प्रतियां;
(ii) मूल से ऐसी यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा, जो प्रक्रियाएं स्वयं ही प्रति की शुद्धता सुनिश्चित करती हैं, बनाई गई प्रतियां तथा ऐसी प्रतियों से तुलना की हुई प्रतिलिपियां;
(iii) मूल से बनाई गई या तुलना की गई प्रतियां;
(iv) उन पक्षकारों के विरुद्ध, जिन्होंने उन्हें निष्पादित नहीं किया है, दस्तावेजों के प्रतिलेख;
(v) किसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु का उस व्यक्ति द्वारा, जिसने स्वयं उसे देखा है, दिया हुआ मौखिक वृत्तांत ;
(vi) मौखिक स्वीकृतियां ;
(vii) लिखित स्वीकृतियां ;
(viii) किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य, जिसने किसी दस्तावेज की जांच की है, जिसके मूल में अनेक लेखे या अन्य दस्तावेज अंतर्विष्ट हैं, जिनकी सुविधाजनक रूप से न्यायालय में जांच नहीं की जा सकती है और जो ऐसे दस्तावेजों की जांच करने में कुशल है ।
दृष्टांत
(क) किसी मूल का फोटोचित्र, यद्यपि दोनों की तुलना न की गई हो तथापि यदि यह साबित किया जाता है कि फोटोचित्रित वस्तु मूल थी, उस मूल की अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य है ।
(ख) किसी पत्र की वह प्रति, जिसकी तुलना उस पत्र की, उस प्रति से कर ली गई है जो प्रतिलपि यंत्र द्वारा तैयार की गई है, उस पत्र की अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य है, यदि यह दर्शित कर दिया जाता है कि प्रतिलिपि यंत्र द्वारा तैयार की गई प्रति मूल से बनाई गई थी ।
(ग) प्रति की नकल करके तैयार की गई किन्तु तत्पश्चात् मूल से तुलना की हुई प्रतिलिपि द्वितीयक साक्ष्य है किन्तु इस प्रकार तुलना नहीं की हुई प्रति मूल का द्वितीयक साक्ष्य नहीं है, यद्यपि उस प्रति की, जिससे वह नकल की गई है, मूल से तुलना की गई थी ।
(घ) न तो मूल से तुलनाकृत प्रति का मौखिक वृत्तान्त और न मूल के किसी फोटोचित्र या यंत्रकृत प्रति का मौखिक वृत्तान्त मूल का द्वितीयक साक्ष्य है ।
खंड- 59. दस्तावेजों का प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना ।
दस्तावेज एतस्मिन्पश्चात् वर्णित अवस्थाओं के सिवाय, प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित करनी होंगी ।
खंड- 60. अवस्थाएं जिनमें दस्तावेजों के सम्बन्ध में द्वितीयक साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
किसी दस्तावेज के अस्तित्व, दशा या अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य निम्नलिखित अवस्थाओं में दिया जा सकेगा-
(क) जबकि यह दर्शित कर दिया जाए या प्रतीत होता हो कि मूल ऐसे व्यक्ति के कब्जे में या शक्त्यधीन है-
(i) जिसके विरुद्ध उस दस्तावेज का साबित किया जाना ईप्सित है ;या
(ii) जो न्यायालय की आदेशिका की पहुंच से बाहर है, या ऐसी आदेशिका के अध्यधीन नहीं है; या
(iii) जो उसे पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध है, और जब कि ऐसा व्यक्ति धारा 64 में वर्णित सूचना के पश्चात् उसे पेश नहीं करता है ;
(ख) जब कि मूल के अस्तित्व, दशा या अन्तर्वस्तु को उस व्यक्ति द्वारा, जिसके विरुद्ध उसे साबित किया जाना है या उसके हित प्रतिनिधि द्वारा लिखित रूप में स्वीकृत किया जाना साबित कर दिया गया है ;
(ग) जबकि मूल नष्ट हो गया है, या खो गया है या जबकि उसकी अन्तर्वस्तु का साक्ष्य देने की प्रस्थापना करने वाला पक्षकार अपने स्वयं के व्यतिक्रम या उपेक्षा से अनुभूत अन्य किसी कारण से उसे युक्तियुक्त समय में पेश नहीं कर सकता ;
(घ) जबकि मूल इस प्रकृति का है कि उसे आसानी से स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता ;
(ङ) जबकि मूल धारा 74 के अर्थ के अन्तर्गत एक लोक दस्तावेज है ;
(च) जबकि मूल ऐसी दस्तावेज है जिसकी प्रमाणित प्रति का साक्ष्य में दिया जाना इस अधिनियम द्वारा या भारत में प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अनुज्ञात है ;
(छ) जबकि मूल ऐसे अनेक लेखाओं या अन्य दस्तावेजों से गठित है जिनकी न्यायालय में सुविधापूर्वक परीक्षा नहीं की जा सकती और वह तथ्य जिसे साबित किया जाना है सम्पूर्ण संग्रह का साधारण परिणाम है ।
स्पष्टीकरण (i) खंड (क), खंड (ग) और खंड (घ) के प्रयोजनों के लिए दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु का कोई भी द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य है ।
(ii) खंड (ख) में वह लिखित स्वीकृति ग्राह्य है ।
(iii) खंड (ङ) या खंड (च) में दस्तावेज की प्रमाणित प्रति ग्राह्य है, किन्तु अन्य किसी भी प्रकार का द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य नहीं है ।
(iv) खंड (छ) में दस्तावेजों के साधारण परिणाम का साक्ष्य ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा दिया जा सकेगा जिसने उनकी परीक्षा की है और जो ऐसे दस्तावेज की परीक्षा करने में कुशल है ।
खंड- 61. इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख ।
इस अधिनियम की कोई बात इस आधार पर साक्ष्य में किसी इलैक्ट्रानिक या डिजिटल साक्ष्य की ग्राह्यता से इंकार नहीं करेगी कि यह कोई इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख है और ऐसे अभिलेख का, धारा 63 के अधीन रहते हुए वही विधिक प्रभाव, विधिमान्यता और प्रवर्तनशीलता होगी, जो किसी अन्य अभिलेख की होती है ।
खंड- 62. इलैक्ट्रानिक अभिलेख से संबंधित साक्ष्य के बारे में विशेष उपबंध ।
इलैक्ट्रानिक अभिलेख की अंतर्वस्तु धारा 63 के उपबंधों के अनुसार साबित की जा सकेगी ।
खंड- 63. इलैक्ट्रानिक अभिलेखों की ग्राह्यता ।
(1) इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, किसी इलैक्ट्रानिक अभिलेख में अंतर्विष्ट किसी सूचना को भी, जो कंप्यूटर या किसी संचार-युक्ति या अन्यथा द्वारा भंडारित, अभिलिखित या किसी इलैक्ट्रानिकी प्ररूप द्वारा उत्पादित और किसी कागज पर मुद्रित, प्रकाशीय या चुंबकीय मीडिया या अर्ध-चालक मेमोरी में भंडारित, अभिलिखित या नकल की गई हो (जिसे इसमें इसके पश्चात् कंप्यूटर निर्गम कहा गया है), तब एक दस्तावेज समझा जाएगा, यदि प्रश्नगत सूचना और कंप्यूटर के संबंध में, इस धारा में उल्लिखित शर्तें पूरी कर दी जाती हैं और वह मूल की किसी अंतर्वस्तु या उसमें कथित किसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में, जिसका प्रत्यक्ष साक्ष्य ग्राह्य होता, अतिरिक्त सबूत या मूल को पेश किए बिना ही किन्हीं कार्यवाहियों में ग्राह्य होगा ।
(2) कंप्यूटर निर्गम की बाबत उपधारा (1) में वर्णित शर्तें निम्नलिखित होंगी,अर्थात् :-
(क) सूचना से युक्त कंप्यूटर निर्गम, कंप्यूटर या संसूचना युक्ति द्वारा उस अवधि के दौरान उत्पादित किया गया था जिसमें उस व्यक्ति द्वारा, जिसका कंप्यूटर के उपयोग पर विधिपूर्ण नियंत्रण था, उस अवधि में नियमित रूप से किए गए किसी क्रियाकलाप के प्रयोजन के लिए सृजन, सूचना भंडारित करने या प्रसंस्करण करने के लिए नियमित रूप से कंप्यूटर या संसूचना युक्ति का उपयोग किया गया था ;
(ख) उक्त अवधि के दौरान, इलैक्ट्रानिक अभिलेख में अन्तर्विष्ट किस्म की सूचना या उस किस्म की जिससे इस प्रकार अन्तर्विष्ट सूचना व्युत्पन्न की जाती है, उक्त क्रियाकलापों के सामान्य अनुक्रम में कंप्यूटर में नियमित रूप से भरी गई थी;
(ग) उक्त अवधि के महत्वपूर्ण भाग में आद्योपांत, कंप्यूटर या संचार-युक्ति समुचित रूप से कार्य कर रही थी या यदि नहीं तो, उस अवधि के उस भाग की बाबत, जिसमें कंप्यूटर समुचित रूप से कार्य नहीं कर रहा था या वह उस अवधि में प्रचालन में नहीं था, ऐसी अवधि नहीं थी जिससे इलैक्ट्रानिक अभिलेख या उसकी अंतर्वस्तु की शुद्धता प्रभावित होती हो; और
(घ) इलैक्ट्रानिक अभिलेख में अन्तर्विष्ट सूचना ऐसी सूचना से पुनः उत्पादित या व्युत्पन्न की जाती है, जिसे उक्त क्रियाकलापों के सामान्य अनुक्रम में कंप्यूटर में भरा गया था ।
(3) जहां किसी अवधि में, उपधारा (2) के खंड (क) में यथा उल्लिखित, उस अवधि के दौरान नियमित रूप से किए गए किन्हीं क्रियाकलापों के प्रयोजनों के लिए सूचना के सृजन, भंडारण या प्रसंस्करण का कार्य नियमित रूप से एक या अधिक कंप्यूटरों या संचार-युक्ति द्वारा नियमित रूप से निष्पादित किया गया था, चाहे यह-
(क) एकल ढंग में; या
(ख) किसी कंप्यूटर प्रणाली पर ; या
(ग) किसी कंप्यूटर नेटवर्क पर ; या
(घ) सूचना को समर्थ बनाने, सूचना का सृजन या उपलब्ध कराने वाले, प्रक्रमण और भंडारण करने वाले कंप्यूटर साधन पर; और
(ङ) किसी मध्यवर्ती द्वारा, उस अवधि के दौरान उस प्रयोजन के लिए उपयोग किए गए सभी कंप्यूटरों या संचार- युक्तियों को इस धारा के प्रयोजनों के लिए एक कंप्यूटर या संचार-युक्ति समझा जाएगा ; और इस धारा में किसी कंप्यूटर या संचार-युक्ति के प्रति निर्देशों का तद्नुसार अर्थान्वयन किया जाएगा ।
(4) किन्हीं कार्यवाहियों में, जहां इस धारा के आधार पर साक्ष्य में विवरण दिया जाना वांछित है, निम्नलिखित बातों में से किसी बात को पूरा करते हुए प्रमाणपत्र को प्रत्येक बार इलैक्ट्रानिकी अभिलेख के साथ वहां प्रस्तुत किया जाएगा जहां इसे स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया गया है, अर्थात् :-
(क) विवरण से युक्त इलैक्ट्रानिक अभिलेख की पहचान करना और उस रीति का वर्णन करना जिससे इसका उत्पादन किया गया था ;
(ख) उस इलैक्ट्रानिक अभिलेख के उत्पादन में अन्तर्वलित किसी युक्ति को ऐसी विशिष्टियां देना, जो यह दर्शित करने के प्रयोजन के लिए समुचित हों कि इलैक्ट्रानिक अभिलेख का कंप्यूटर या उपधारा (3) के खंड (क) से खंड (ङ) में निर्दिष्ट किसी संचार-युक्ति द्वारा उत्पादन किया गया था ;
(ग) ऐसे विषयों में से किसी पर कार्रवाई करना, जिससे उपधारा (2) में उल्लिखित शर्तें संबंधित हैं, और किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के लिए तात्पर्यित होना, जो कंप्यूटर या संचार-युक्ति या सुसंगत क्रियाकलाप के प्रबंध (जो भी समुचित हों) का भारसाधक हो और कोई विशेषज्ञ हो, अनुसूची में विनिर्दिष्ट प्रमाणपत्र में कथित किसी विषय का साक्ष्य होगा; और इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए किसी ऐसे विषय के लिए यह कथन पर्याप्त होगा कि यह कथन करने वाले व्यक्ति के सर्वोत्तम ज्ञान और विश्वास के आधार पर कहा गया है ।
(5) इस धारा के प्रयोजनों के लिए, -
(क) सूचना किसी कंप्यूटर या संचार-युक्ति को प्रदाय की गई समझी जाएगी यदि यह किसी समुचित रूप में प्रदाय की गई है, चाहे इस प्रकार किया गया प्रदाय सीधे (मानव मध्यक्षेप सहित या रहित) या किसी समुचित उपस्कर के माध्यम द्वारा किया गया हो ;
(ख) कंप्यूटर उत्पाद को कंप्यूटर या संचार-युक्ति द्वारा उत्पादित समझा जाएगा, चाहे यह इसके द्वारा सीधे उत्पादित हो (मानव मध्यक्षेप सहित या रहित) या उपधारा (3) के खंड (क) से खंड (ङ) में यथानिर्दिष्ट किसी समुचित उपस्कर या अन्य इलैक्ट्रानिक साधन के माध्यम से हो ।
खंड- 64. पेश करने की सूचना के बारे में नियम ।
धारा 60 के खंड (क) में निर्दिष्ट दस्तावेजों की अन्र्तवस्तु का द्वितीयक साक्ष्य तब तक न दिया जा सकेगा, जब तक ऐसे द्वितीयक साक्ष्य देने की प्रस्थापना करने वाले पक्षकार ने उस पक्षकार को, जिसके कब्जे में या शक्त्यधीन वह दस्तावेज है या उसके अधिवक्ता या प्रतिनिधि को, उसे पेश करने के लिए ऐसी सूचना, जैसी विधि द्वारा विहित है, और यदि विधि द्वारा कोई सूचना विहित नहीं हो तो ऐसी सूचना, जैसी न्यायालय मामले की परिस्थितियों के अधीन युक्तियुक्त समझता है, न दे दी हो :
परन्तु ऐसी सूचना निम्नलिखित अवस्थाओं में से किसी में या किसी भी अन्य अवस्था में, जिसमें न्यायालय उसके दिए जाने से अभिमुक्ति प्रदान कर दे, द्वितीयक साक्ष्य को ग्राह्य बनाने के लिए अपेक्षित नहीं की जाएगी, -
(क) जब कि साबित की जाने वाली दस्तावेज स्वयं एक सूचना है ;
(ख) जब कि प्रतिपक्षी को मामले की प्रकृति से यह जानना ही होगा कि उसे पेश करने की उससे अपेक्षा की जाएगी ;
(ग) जब कि यह प्रतीत होता है या साबित किया जाता है कि प्रतिपक्षी ने मूल पर कब्जा कपट या बल द्वारा अभिप्राप्त कर लिया है ;
(घ) जब कि मूल प्रतिपक्षी या उसके अभिकर्ता के पास न्यायालय में है ;
(ङ) जब कि प्रतिपक्षी या उसके अभिकर्ता ने उसका खो जाना स्वीकार कर लिया है ;
(च) जबकि दस्तावेज पर कब्जा रखने वाला व्यक्ति न्यायालय की आदेशिका की पहुंच के बाहर है या ऐसी आदेशिका के अध्यधीन नहीं है ।
खंड- 65. जिस व्यक्ति के बारे में अभिकथित है कि उसने पेश की गई दस्तावेज को हस्ताक्षरित किया था या लिखा था उस व्यक्ति के हस्ताक्षर या हस्तलेख का साबित किया जाना ।
यदि कोई दस्तावेज किसी व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित या पूर्णतः या भागतः लिखी गई अभिकथित है, तो यह साबित करना होगा कि वह हस्ताक्षर या उस दस्तावेज के उतने का हस्तलेख, जितने के बारे में यह अभिकथित है कि वह उस व्यक्ति के हस्तलेख में है, उसके हस्तलेख में है।
खंड- 66. इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर के बारे में सबूत ।
सुरक्षित इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर के मामले में के सिवाय, यदि यह अभिकथित है कि किसी हस्ताक्षरकर्ता का इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर इलैक्ट्रानिक अभिलेख में नियत किया गया है तो यह तथ्य साबित किया जाना चाहिए कि ऐसा इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर हस्ताक्षरकर्ता का इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर है ।
खंड- 67. ऐसे दस्तावेज के निष्पादन का साबित किया जाना, जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित है ।
यदि किसी दस्तावेज का अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित है, तो उसे साक्ष्य के रूप में उपयोग में न लाया जाएगा, जब तक कम से कम एक अनुप्रमाणक साक्षी, यदि कोई अनुप्रमाणक साक्षी जीवित और न्यायालय की आदेशिका के अध्यधीन हो तथा साक्ष्य देने के योग्य हो, उसका निष्पादन साबित करने के प्रयोजन से न बुलाया गया हो :
परन्तु ऐसे किसी दस्तावेज के निष्पादन को साबित करने के लिए, जो विल नहीं है, और जो भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 के उपबन्धों के अनुसार रजिस्ट्रीकृत है, किसी अनुप्रमाणक साक्षी को बुलाना आवश्यक न होगा, जब तक कि उसके निष्पादन का प्रत्याख्यान उस व्यक्ति द्वारा जिसके द्वारा उसका निष्पादित होना तात्पर्यित है विनिर्दिष्टतः न किया गया हो ।
खंड- 68. जब किसी भी अनुप्रमाणक साक्षी का पता न चले, तब सबूत ।
यदि ऐसे किसी अनुप्रमाणक साक्षी का पता न चल सके तो यह साबित करना होगा कि कम से कम एक अनुप्रमाणक साक्षी का अनुप्रमाण उसी के हस्तलेख में है, तथा यह कि दस्तावेज का निष्पादन करने वाले व्यक्ति का हस्ताक्षर उसी व्यक्ति के हस्तालेख में है।
खंड- 69. अनुप्रमाणित दस्तावेज के पक्षकार द्वारा निष्पादन की स्वीकृति ।
अनुप्रमाणित दस्तावेज के किसी पक्षकार की अपने द्वारा उसका निष्पादन करने की स्वीकृति उस दस्तावेज के निष्पादन का उसके विरुद्ध पर्याप्त सबूत होगा, यद्यपि वह ऐसी दस्तावेज हो जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित है ।
खंड- 70. जबकि अनुप्रमाणक साक्षी निष्पादन का प्रत्याख्यान करता है, तब सबूत ।
यदि अनुप्रमाणक साक्षी दस्तावेज के निष्पादन का प्रत्याख्यान करे या उसे उसके निष्पादन का स्मरण न हो, तो उसका निष्पादन अन्य साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकेगा ।
खंड- 71. उस दस्तावेज का साबित किया जाना जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित नहीं है ।
कोई अनुप्रमाणित दस्तावेज, जिसका अनुप्रमाणित होना विधि द्वारा अपेक्षित नहीं है, ऐसे साबित की जा सकेगी, मानो वह अनुप्रमाणित नहीं हो ।
खंड- 72. हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा की तुलना अन्यों से जो स्वीकृत या साबित हैं ।
(1) यह अभिनिश्चित करने के लिए कि क्या कोई हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा उस व्यक्ति की है, जिसके द्वारा उसका लिखा या किया जाना तात्पर्यित है किसी हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा की, जिसके बारे में यह स्वीकृत है या न्यायालय को समाधानप्रद रूप में साबित कर दिया गया है कि वह उस व्यक्ति द्वारा लिखा या किया गया था, उससे, जिसे साबित किया जाना है, तुलना की जा सकेगी, यद्यपि वह हस्ताक्षर, लेख या मुद्रा किसी अन्य प्रयोजन के लिए पेश या साबित न की गई हो ।
(2) न्यायालय में उपस्थित किसी व्यक्ति को किन्हीं शब्दों या अंकों के लिखने का निदेश न्यायालय इस प्रयोजन से दे सकेगा कि ऐसे लिखे गए शब्दों या अंकों की किन्हीं ऐसे शब्दों या अंकों से तुलना करने के लिए न्यायालय समर्थ हो सके जिनके बारे में अभिकथित है कि वे उस व्यक्ति द्वारा लिखे गए थे ।
(3) यह धारा किन्हीं आवश्यक उपान्तरों के साथ अंगुली छापों को भी लागू होती है ।
खंड- 73. डिजिटल हस्ताक्षर के सत्यापन के बारे में सबूत ।
यह अभिनिश्चित करने के लिए कि क्या कोई डिजिटल हस्ताक्षर उस व्यक्ति का है जिसके द्वारा उसका लगाया जाना तात्पर्यित है, न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि, -
(क) वह व्यक्ति या नियंत्रक या प्रमाणकर्ता प्राधिकारी डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र पेश करे ;
(ख) कोई अन्य व्यक्ति डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाणपत्र में सूचीबद्ध लोक कुंजी के लिए आवेदन करे और उस डिजिटल हस्ताक्षर को, जिसका उस व्यक्ति द्वारा लगाया जाना तात्पर्यित है, सत्यापित करे ।
खंड- 74. लोक और प्राइवेट दस्तावेज ।
(1) निम्नलिखित दस्तावेज, लोक दस्तावेज हैं- (क) वे दस्तावेज, जो-
(i) प्रभुतासम्पन्न प्राधिकारी के ; (ii) शासकीय निकायों और अधिकरणों के; और(iii) भारत के या किसी विदेश के विधायी, न्यायिक तथा कार्यपालक लोक अधिकारियों के, कार्यों के रूप में या कार्यों के अभिलेख के रूप में हैं;
(ख) किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में रखे गए प्राइवेट दस्तावेजों के लोक अभिलेख ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट दस्तावेजों के सिवाय, अन्य सभी दस्तावेज प्राइवेट हैं ।
खंड- 75. लोक दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां ।
हर लोक अधिकारी, जिसकी अभिरक्षा में कोई ऐसी लोक दस्तावेज है, जिसके निरीक्षण करने का किसी भी व्यक्ति को अधिकार है, मांग किए जाने पर उस व्यक्ति को उसकी प्रति उसके लिए विधिक फीस चुकाए जाने पर प्रति के नीचे इस लिखित प्रमाणपत्र के सहित देगा कि वह यथास्थिति ऐसी दस्तावेज की या उसके भाग की शुद्ध प्रति है तथा ऐसा प्रमाणपत्र ऐसे अधिकारी द्वारा दिनांकित किया जाएगा और उसके नाम और पदाभिधान से हस्ताक्षरित किया जाएगा तथा जब कभी ऐसा अधिकारी विधि द्वारा किसी मुद्रा का उपयोग करने के लिए प्राधिकृत है तब मुद्रायुक्त किया जाएगा, तथा इस प्रकार प्रमाणित ऐसी प्रतियां प्रमाणित प्रतियां कहलाएंगी ।
स्पष्टीकरण जो कोई अधिकारी पदीय कर्तव्य के मामूली अनुक्रम में ऐसी प्रतियां परिदान करने के लिए प्राधिकृत है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसी दस्तावेजों की अभिरक्षा रखता है, यह समझा जाएगा ।
खंड- 76. प्रमाणित प्रतियों के पेश करने द्वारा दस्तावेजों का सबूत ।
ऐसी प्रमाणित प्रतियां उन लोक दस्तावेजों की या उन लोक दस्तावेज के भागों की अन्तर्वस्तु के सबूत में पेश की जा सकेंगी जिनकी वे प्रतियां होना तात्पर्थित हैं ।
खंड- 77. अन्य शासकीय दस्तावेजों का सबूत ।
निम्नलिखित लोक दस्तावेज, निम्नलिखित रूप से साबित किए जा सकेंगे, -
(क) केन्द्रीय सरकार के किसी मंत्रालय और विभाग के, या किसी राज्य सरकार के, या किसी राज्य सरकार या संघ राज्यक्षेत्र प्रशासन के किसी विभाग के
अधिनियम, आदेश या अधिसूचनाएं, -
(i) उन विभागों के अभिलेखों द्वारा, जो क्रमशः उन विभागों के मुख्य पदाधिकारियों द्वारा प्रमाणित हैं ; या
(ii) किसी दस्तावेज द्वारा, जिसका ऐसी किसी सरकार के आदेश द्वारा
मुद्रित होना तात्पर्यत है ;
(ख) संसद् या किसी राज्य विधान मंडल की कार्यवाहियां, क्रमशः इन निकायों के जर्नलों द्वारा या प्रकाशित अधिनियमों या संक्षिप्तियों द्वारा, या सम्पृक्त सरकार के आदेश द्वारा मुद्रित होना तात्पर्यित होने वाली प्रतियों द्वारा ;
(ग) भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक या उपराज्यपाल द्वारा निकाली गई उद्घोषणाएं, आदेश या विनियम, राजपत्र में अंतर्विष्ट प्रतियों या उद्धरणों द्वारा ;
(घ) किसी विदेश की कार्यपालिका के कार्य या विधान मंडल की कार्यवाहियां, उनके प्राधिकार से प्रकाशित, या उस देश में सामान्यतः इस रूप में गृहीत, जर्नलों द्वारा, या उस देश या प्रभु की मुद्रा के अधीन प्रमाणित प्रति द्वारा, या किसी केन्द्रीय अधिनियम में उनकी मान्यता द्वारा ;
(ङ) किसी राज्य के नगरपालिका या स्थानीय निकाय की कार्यवाहियां, ऐसी कार्यवाहियों की ऐसी प्रति द्वारा, जो उनके विधिक पालक द्वारा प्रमाणित है, या ऐसे निकाय के प्राधिकार से प्रकाशित हुई तात्पर्यित होने वाली किसी मुद्रित पुस्तक द्वारा ;
(च) किसी विदेश की किसी अन्य प्रकार की लोक दस्तावेज, मूल द्वारा या उसके विधिक पालक द्वारा प्रमाणित किसी प्रति द्वारा, जिस प्रति के साथ किसी नोटरी पब्लिक की, या भारतीय कौंसल या राजनयिक अभिकर्ता की मुद्रा के अधीन यह प्रमाणपत्र है कि वह प्रति मूल की विधिक अभिरक्षा रखने वाले अधिकारी द्वारा सम्यक् रूप से प्रमाणित है, तथा उस दस्तावेज की प्रकृति उस विदेश की विधि के अनुसार साबित किए जाने के द्वारा ।
खंड- 78. प्रमाणित प्रतियों के असली होने के बारे में उपधारणा ।
(1) न्यायालय प्रत्येक ऐसी दस्तावेज का असली होना उपधारित करेगा, जो ऐसा प्रमाणपत्र, प्रमाणित प्रति या अन्य दस्तावेज होनी तात्पर्यित है, जिसका किसी विशिष्ट तथ्य के साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होना विधि द्वारा घोषित है और जिसका केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के किसी अधिकारी द्वारा, सम्यक् रूप से प्रमाणित होना तात्पर्यित है :
परन्तु यह तब जबकि ऐसा दस्तावेज सारतः उस प्ररूप में हो तथा ऐसी रीति से निष्पादित हुआ तात्पर्यत हो जो विधि द्वारा उस निमित्त निदेशित है ।
(2) न्यायालय यह भी उपधारित करेगा कि कोई अधिकारी, जिसके द्वारा ऐसी दस्तावेज का हस्ताक्षरित या प्रमाणित होना तात्पर्यित है, वह पदीय हैसियत, जिसका वह ऐसे कागज में दावा करता है, उस समय रखता था, जब उसने उसे हस्ताक्षरित किया था ।
खंड- 79. साक्ष्य, आदि के अभिलेख के तौर पर पेश की गई दस्तावेजों के बारे में उपधारणा ।
जब कभी किसी न्यायालय के समक्ष कोई ऐसा दस्तावेज पेश किया जाता है, जिसका किसी न्यायिक कार्यवाही में, या विधि द्वारा ऐसा साक्ष्य लेने के लिए प्राधिकृत किसी अधिकारी के समक्ष, किसी साक्षी द्वारा दिए गए साक्ष्य या साक्ष्य के किसी भाग का अभिलेख या ज्ञापन होना या किसी कैदी या अभियुक्त का विधि के अनुसार लिया गया कथन या संस्वीकृति होना तात्पर्यित हो और जिसका किसी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा या उपर्युक्त जैसे किसी अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यत हो, तब न्यायालय यह उपधारित करेगा कि, -
(i) वह दस्तावेज असली है ;
(ii) उन परिस्थितियों के बारे में, जिनके अधीन वह लिया गया था, कोई भी कथन, जिनका उसको हस्ताक्षरित करने वाले व्यक्ति द्वारा किया जाना तात्पर्यित है, सत्य हैं; और
(iii) ऐसा साक्ष्य, कथन या संस्वीकृति सम्यक् रूप से ली गई थी ।
खंड- 80. राजपत्रों, समाचारपत्रों, और अन्य दस्तावेजों के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय प्रत्येक ऐसे दस्तावेज का असली होना उपधारित करेगा, जिसका राजपत्र होना, या समाचारपत्र या जर्नल होना तात्पर्यित है तथा प्रत्येक ऐसे दस्तावेज का, जिसका ऐसा दस्तावेज होना तात्पर्यत है, जिसका किसी व्यक्ति द्वारा रखा जाना किसी विधि द्वारा निदेशित है, यदि ऐसा दस्तावेज सारतः उस प्ररूप में रखा गया हो, जो विधि द्वारा अपेक्षित है, और उचित अभिरक्षा में से पेश किया गया हो, असली होना उपधारित करेगा ।
स्पष्टीकरण इस धारा और धारा 92 के प्रयोजन के लिए, कोई दस्तावेज उचित अभिरक्षा में रखा गया कहा जाता है, यदि वह उस स्थान में रखा है, जिसमें उस व्यक्ति द्वारा उसका ध्यान रखा जाता है, जिसके पास ऐसा दस्तावेज रखा जाना अपेक्षित है ; किंतु कोई अभिरक्षा अनुचित नहीं है, यदि इसका वैध उत्पन्न होना साबित होता हो, या किसी मामले विशेष की परिस्थितियां ऐसी है, जो उस उत्पत्ति को प्रायिक बनाती है ।
खंड- 81. इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख में राजपत्र के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय, ऐसे प्रत्येक इलैक्ट्रानिक अभिलेख का असली होना उपधारित करेगा, जिसका शासकीय राजपत्र होना तात्पर्यित है, या जिसका ऐसा इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख होना तात्पर्यित है, जिसका किसी व्यक्ति द्वारा रखा जाना किसी विधि द्वारा निर्दिष्ट है, यदि ऐसा इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख सारतः उस रूप में रखा गया हो, जो विधि द्वारा अपेक्षित है और उचित अभिरक्षा से पेश किया गया हो ।
स्पष्टीकरण इस धारा और धारा 93 के प्रयोजन के लिए, कोई इलैक्ट्रानिक अभिलेख उचित अभिरक्षा में रखा गया कहा जाता है, यदि वह उस स्थान में रखा है, जिसमें उस व्यक्ति द्वारा उसका ध्यान रखा जाता है, जिसके पास ऐसा दस्तावेज रखा जाना अपेक्षित है; किंतु कोई अभिरक्षा अनुचित नहीं है, यदि इसका वैध उत्पन्न होना साबित होता हो, या किसी मामले विशेष की परिस्थितियां ऐसी है, जो ऐसी उत्पत्ति को प्रायिक बनाती है।
खंड- 82. सरकार के प्राधिकार द्वारा बनाए गए मानचित्रों या रेखांकों के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय यह उपधारित करेगा कि वे मानचित्र या रेखांक, जो केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार के प्राधिकार द्वारा बनाए गए तात्पर्थित हैं, वैसे ही बताए गए थे और वे शुद्ध हैं, किन्तु किसी मामले के प्रयोजनों के लिए बनाए गए मानचित्रों या रेखांकों के बारे में यह साबित करना होगा कि वे सही हैं ।
खंड- 83. विधियों के संग्रह और विनिश्चयों की रिपोर्टों के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय, प्रत्येक ऐसी पुस्तक का, जिसका किसी देश की सरकार के प्राधिकार के अधीन मुद्रित या प्रकाशित होना और जिसमें उस देश की कोई विधियां अन्तर्विष्ट होना तात्पर्यत है, तथा प्रत्येक ऐसी पुस्तक का, जिसमें उस देश के न्यायालय के विनिश्चयों की रिपोर्ट अन्तर्विष्ट होना तात्पर्यत है, असली होना उपधारित करेगा ।
खंड- 84. मुख्तारनामों के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय यह उपधारित करेगा कि प्रत्येक ऐसी दस्तावेज जिसका मुख्तारनामा होना और नोटरी पब्लिक या किसी न्यायालय, न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट, भारतीय कौंसल या उपकौंसल या केन्द्रीय सरकार के प्रतिनिधि के समक्ष निष्पादित और उस द्वारा अधिप्रमाणीकृत होना तात्पर्यित है, ऐसे निष्पादित और अधिप्रमाणीकृत की गई थी ।
खंड- 85. इलैक्ट्रानिक करारों के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि प्रत्येक इलैक्ट्रानिक अभिलेख जो पक्षकारों के इलैक्ट्रानिक या डिजिटल हस्ताक्षर को अन्तर्विष्ट करने वाला ऐसा करार होना तात्पर्यित है, इस प्रकार पक्षकारों के इलैक्ट्रानिक या डिजिटल हस्ताक्षर के साथ दिया गया था ।
खंड- 86. इलैक्ट्रानिक अभिलेखों और इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर के बारे में उपधारणा ।
(1) किन्हीं ऐसी कार्यवाहियों में, जिनमें सुरक्षित इलैक्ट्रानिक अभिलेख अंतर्वलित है, जब तक इसके प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता, न्यायालय यह उपधारित करेगा कि सुरक्षित इलैक्ट्रानिक अभिलेख किसी ऐसे विनिर्दिष्ट समय से, जिससे सुरक्षित प्रास्थिति संबंधित है, परिवर्तित नहीं किया गया है ।
(2) किन्हीं ऐसी कार्यवाहियों में, जिनमें सुरक्षित इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर अन्तर्वलित है, जब तक इसके प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता, न्यायालय यह उपधारित करेगा कि, -
(क) उपयोगकर्ता द्वारा सुरक्षित इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर इलैक्ट्रानिक अभिलेख को चिह्नित या अनुमोदित करने के आशय से लगाया गया है;
(ख) सुरक्षित इलैक्ट्रानिक अभिलेख या सुरक्षित इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर की दशा में के सिवाय, इस धारा की कोई बात इलैक्ट्रानिक अभिलेख या इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर की अधिप्रमाणिकता और समग्रता से संबंधित किसी उपधारणा का सृजन नहीं करेगी ।
खंड- 87. इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्रों के बारे में उपधारणा ।
जब तक इसके प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता, न्यायालय, यह उपधारित करेगा कि यदि उपयोगकर्ता द्वारा प्रमाणपत्र को स्वीकार किया गया था तो इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र में सूचीबद्ध सूचना सही है, सिवाय उस सूचना के जो उपयोगकर्ता की सूचना के रूप में विनिर्दिष्ट है जिसे सत्यापित नहीं किया गया है ।
खंड- 88. विदेशी न्यायिक अभिलेखों की प्रमाणित प्रतियों के बारे में उपधारणा ।
(1) न्यायालय यह उपधारित कर सकेगा कि भारत के बाहर ऐसे किसी देश के न्यायिक अभिलेख की प्रमाणित प्रति तात्पर्यित होने वाली कोई दस्तावेज असली और शुद्ध है, यदि वह दस्तावेज किसी ऐसी रीति से प्रमाणित हुई तात्पर्यित हो जिसका न्यायिक अभिलेखों की प्रतियों के प्रमाणन के लिए उस देश में साधारणतः काम में लाई जाने वाली रीति होना ऐसे देश में या के लिए केन्द्रीय सरकार के किसी प्रतिनिधि द्वारा प्रमाणित है ।
(2) ऐसे अधिकारी, जो भारत के बाहर ऐसे किसी राज्यक्षेत्र या स्थान के लिए, साधारण खण्ड अधिनियम, 1897 की धारा 3 के खण्ड (43) में यथा परिभाषित राजनैतिक अभिकर्ता है, वह इस धारा के प्रयोजनों के लिए केन्द्रीय सरकार का उस देश में, और उस देश के लिए प्रतिनिधि समझा जाएगा, जिसमें वह राज्यक्षेत्र या स्थान समाविष्ट है ।
खंड- 89. पुस्तकों, मानचित्रों और चार्टों के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय यह उपधारित कर सकेगा कि कोई पुस्तक, जिसे वह लोक या साधारण हित सम्बन्धी शर्तों की जानकारी के लिए देखे और कोई प्रकाशित मानचित्र या चार्ट, जिसके कथन सुसंगत तथ्य हैं, और जो उसके निरीक्षणार्थ पेश किया गया है, उस व्यक्ति द्वारा तथा उस समय और उस स्थान पर लिखा गया और प्रकाशित किया गया था जिसके द्वारा या जिस समय या स्थान पर उसका लिखा जाना या प्रकाशित होना तात्पर्यित है ।
खंड- 90. इलैक्ट्रानिक संदेशों के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय, यह उपधारित कर सकेगा कि प्रवर्तक द्वारा ऐसे प्रेषिती को किसी इलैक्ट्रानिक मेल सर्वर के माध्यम से अग्रेषित कोई इलैक्ट्रानिक संदेश, जिसे ऐसे संदेश का संबोधित किया जाना तात्पर्यित है, उस संदेश के समरूप है, जो पारेषण के लिए उसके कंप्यूटर में भरा गया था; किंतु न्यायालय, उस व्यक्ति के बारे में, जिसके द्वारा ऐसा संदेश भेजा गया था, कोई उपधारणा नहीं करेगा ।
खंड- 91. पेश न किए गए दस्तावेजों के सम्यक् निष्पादन आदि के बारे में उपधारणा ।
न्यायालय उपधारित करेगा कि प्रत्येक दस्तावेज, जिसे पेश करने की अपेक्षा की गई थी और जो पेश करने की सूचना के पश्चात् पेश नहीं किया गया है, विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से अनुप्रमाणित, स्टाम्पित और निष्पादित की गई थी ।
खंड- 92. तीस वर्ष पुराने दस्तावेजों के बारे में उपधारणा ।
जहां कोई दस्तावेज, जिसका तीस वर्ष पुराना होना तात्पर्यित है या साबित किया गया है, ऐसी किसी अभिरक्षा में से, जिसे न्यायालय उस विशिष्ट मामले में उचित समझता है, पेश किया गया है, वहां न्यायालय यह उपधारित कर सकेगा कि ऐसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर और उसका हर अन्य भाग, जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति के हस्तलेख में होना तात्पर्यित है, उस व्यक्ति के हस्तलेख में है, और निष्पादित या अनुप्रमाणित दस्तावेज होने की दशा में यह उपधारित कर सकेगा कि वह उन व्यक्तियों द्वारा सम्यक् रूप में निष्पादित और अनुप्रमाणित किया गया था, जिनके द्वारा उसका निष्पादित और अनुप्रमाणित होना तात्पर्यित है ।
स्पष्टीकरण-धारा 80 का स्पष्टीकरण इस धारा को भी लागू होगा ।
दृष्टांत
(क) क भू-सम्पत्ति पर दीर्घकाल से कब्जा रखता आया है । यह उस भूमि सम्बन्धी विलेख, जिनसे उस भूमि पर उसका हक दर्शित है, अपनी अभिरक्षा में से पेश करता है । यह अभिरक्षा उचित होगी ।
(ख) क उस भूसम्पत्ति से सम्बद्ध विलेख, जिनका वह बन्धकदार है, पेश करता है । बंधककर्ता सम्पत्ति पर कब्जा रखता है। यह अभिरक्षा उचित होगी ।
(ग) ख का संसर्गी क, ख के कब्जे वाली भूमि से सम्बन्धित विलेख पेश करता है, जिन्हें ख ने उसके पास सुरक्षित अभिरक्षा के लिए निक्षिप्त किया था । यह अभिरक्षा उचित होगी ।
खंड- 93. पांच वर्ष पुराने इलैक्ट्रानिक अभिलेखों के बारे में उपधारणा ।
जहां कोई इलैक्ट्रानिक अभिलेख, जिसका पांच वर्ष पुराना होना तात्पर्यित है या साबित किया गया है, ऐसी किसी अभिरक्षा से जिसे न्यायालय उस विशिष्ट मामले में उचित समझता है, पेश किया गया है, वहां न्यायालय, यह उपधारित कर सकेगा कि ऐसा इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर, जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति का इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर होना तात्पर्यत है, उसके द्वारा या उसकी ओर से इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा लगाया गया था ।
स्पष्टीकरण धारा 81 का स्पष्टीकरण इस धारा को भी लागू होगा ।
अध्याय 6- दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा मौखिक साक्ष्य के अपवर्जन के विषय में
खंड- 94. दस्तावेजों के रूप में लेखबद्ध संविदाओं, अनुदानों और संपत्ति के अन्य व्ययनों के निबन्धनों का साक्ष्य ।
जबकि किसी संविदा के या अनुदान के या सम्पत्ति के किसी अन्य व्ययन के निबन्धन दस्तावेज के रूप में लेखबद्ध कर लिए गए हों, तब, तथा उन सब दशाओं में, जिनमें विधि द्वारा अपेक्षित है कि कोई बात दस्तावेज के रूप में लेखबद्ध की जाए, ऐसी संविदा, अनुदान या सम्पत्ति के अन्य व्ययन के निबन्धनों के या ऐसी बात के साबित किए जाने के लिए स्वयं उस दस्तावेज के सिवाय, या उन दशाओं में, जिनमें एतस्मिन्पूर्व अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन द्वितीयक साक्ष्य ग्राह्य है, उसकी अन्तर्वस्तु के द्वितीयक साक्ष्य के सिवाय, कोई भी साक्ष्य नहीं दिया जाएगा ।
अपवाद 1 जबकि विधि द्वारा यह अपेक्षित है कि किसी लोक अधिकारी की नियुक्ति लिखित रूप में हो और जब यह दर्शित किया गया है कि किसी विशिष्ट व्यक्ति ने ऐसे अधिकारी के नाते कार्य किया है, तब उस लेख का, जिसके द्वारा वह नियुक्त किया गया था, साबित किया जाना आवश्यक नहीं है ।
अपवाद 2- जिन विलों का प्रोबेट मिला है, वे प्रोबेट द्वारा साबित की जा सकेंगी ।
स्पष्टीकरण 1- यह धारा उन दशाओं को, जिनमें निर्दिष्ट संविदाएं, अनुदान या सम्पत्ति के व्ययन एक ही दस्तावेज में अन्तर्विष्ट हैं तथा उन दशाओं को, जिनमें वे एक से अधिक दस्तावेजों में अन्तर्विष्ट हैं, समान रूप से लागू हैं ।
स्पष्टीकरण 2 जहां एक से अधिक मूल हैं, वहां केवल एक मूल साबित करना आवश्यक है ।
स्पष्टीकरण 3 इस धारा में निर्दिष्ट तथ्यों से भिन्न किसी तथ्य का किसी भी दस्तावेज में कथन, उसी तथ्य के बारे में मौखिक साक्ष्य की ग्राह्यता का प्रवारण नहीं करेगा ।
दृष्टांत
(क) यदि कोई संविदा कई पत्रों में अन्तर्विष्ट है, तो वे सभी पत्र, जिनमें वह अन्तर्विष्ट है, साबित करने होंगे ।
(ख) यदि कोई संविदा किसी विनिमयपत्र में अन्तर्विष्ट है, तो वह विनिमयपत्र साबित करना होगा ।
(ग) यदि विनिमयपत्र तीन परतों में लिखित है, तो केवल एक को साबित करना आवश्यक है ।
(घ) ख से कतिपय निबन्धनों पर क नील के परिदान के लिए लिखित संविदा करता है । संविदा इस तथ्य का वर्णन करती है कि ख ने क को किसी अन्य अवसर पर मौखिक रूप से संविदाकृत अन्य नील का मूल्य चुकाया था । मौखिक साक्ष्य पेश किया जाता है कि अन्य नील के लिए कोई संदाय नहीं किया गया। यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
(ङ) ख द्वारा दिए गए धन की रसीद ख को क देता है। संदाय करने का मौखिक साक्ष्य पेश किया जाता है। यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
खंड- 95. मौखिक करार के साक्ष्य का अपवर्जन ।
जबकि किसी ऐसी संविदा, अनुदान या सम्पत्ति के अन्य व्ययन के निबन्धनों को, या किसी बात को, जिसके बारे में विधि द्वारा अपेक्षित है कि वह दस्तावेज के रूप में लेखबद्ध की जाए, धारा 94 के अनुसार साबित किया जा चुका हो, तब किसी ऐसी लिखत के पक्षकारों या उनके हित प्रतिनिधियों के बीच के किसी मौखिक करार या कथन का कोई भी साक्ष्य उसके निबन्धनों का खण्डन करने के या उनमें फेरफार करने के या जोड़ने के या उनमें से घटाने के प्रयोजन के लिए ग्रहण न किया जाएगा :
परन्तु ऐसा कोई तथ्य साबित किया जा सकेगा, जो किसी दस्तावेज को अविधिमान्य बना दे या जो किसी व्यक्ति को तत्सम्बन्धी किसी डिक्री या आदेश का हकदार बना दे, यथा कपट, अभित्रास, अवैधता, सम्यक् निष्पादन का अभाव, किसी संविदाकारी पक्षकार में सामर्थ्य का अभाव, प्रतिफल का अभाव या निष्फलता या विधि की या तथ्य की भूल :
परन्तु यह और कि किसी विषय के बारे में, जिसके बारे में दस्तावेज मौन है और जो उसके निबन्धनों से असंगत नहीं है, किसी पृथक् मौखिक करार या अस्तित्व साबित किया जा सकेगा । इस पर विचार करते समय कि यह परन्तुक लागू होता है या नहीं न्यायालय दस्तावेज की प्ररूपिता की मात्रा को ध्यान में रखेगा :
परन्तु यह भी कि ऐसी किसी संविदा, अनुदान या सम्पत्ति के व्ययन के अधीन कोई बाध्यता संलग्न होने की पुरोभाव्य शर्त गठित करने वाले किसी पृथक् मौखिक करार का अस्तित्व साबित किया जा सकेगा :
परन्तु यह भी कि ऐसी किसी संविदा, अनुदान या सम्पत्ति के व्ययन को विखंडित या उपांतरित करने के लिए किसी सुभिन्न पाश्चिक मौखिक करार का अस्तित्व उन अवस्थाओं के सिवाय साबित किया जा सकेगा, जिनमें विधि द्वारा अपेक्षित है कि ऐसी संविदा, अनुदान या सम्पत्ति का व्ययन लिखित हो या जिनमें दस्तावेज के रजिस्ट्रीकरण के बारे में तत्समय प्रवृत्त विधि के अनुसार उसका रजिस्ट्रीकरण किया जा चुका है :
परन्तु यह भी कि कोई प्रथा या रूढ़ि, जिसके द्वारा किसी संविदा में अभिव्यक्त रूप से वर्णित न होने वाली प्रसंगतियां उस प्रकार की संविदाओं से प्रायः उपाबद्ध रहती हैं, साबित की जा सकेगी :
परन्तु यह भी कि ऐसी प्रसंगतियों का उपाबन्धन संविदा के अभिव्यक्त निबन्धनों के विरुद्ध या उनसे असंगत न हो :
परन्तु यह भी कि कोई तथ्य, जो यह दर्शित करता है कि किसी दस्तावेज की भाषा वर्तमान तथ्यों से किस प्रकार सम्बन्धित है, साबित किया जा सकेगा ।
दृष्टांत
(क) बीमा की एक पालिसी इस माल के लिए की गई है जो कोलकाता से विशाखापट्टनम जाने वाले पोतों में है। माल किसी विशिष्ट पोत से भेजा जाता है, जो पोत नष्ट हो जाता है। यह तथ्य कि वह विशिष्ट पोत उस पालिसी से मौखिक रूप से अपवादित था, साबित नहीं किया जा सकता ।
(ख) ख को 1 मार्च, 2023 को एक हजार रुपए देने का पक्का लिखित करार क करता है । यह तथ्य कि उसी समय एक मौखिक करार हुआ था कि यह धन 31 मार्च, 2023 तक न दिया जाएगा, साबित नहीं किया जा सकता ।
(ग) रामपुर चाय सम्पदा नामक एक सम्पदा किसी विलेख द्वारा बेची जाती है, जिसमें विक्रीत सम्पत्ति का मानचित्र अन्तर्विष्ट है। यह तथ्य कि मानचित्र में न दिखाई गई भूमि सदैव सम्पदा का भागरूप मानी जाती रही थी और उस विलेख द्वारा उसका अन्तरित होना अभिप्रेत था, साबित नहीं किया जा सकता ।
(घ) क किन्हीं खानों को, जो ख की सम्पत्ति हैं, किन्हीं निबन्धनों पर काम में लाने का ख से लिखित करार करता है । उनके मूल्य के बारे में ख के दुर्व्यपदेशन द्वारा क ऐसा करने के लिए उत्प्रेरित हुआ था । यह तथ्य साबित किया जा सकेगा ।
(ङ) ख पर क किसी संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिए वाद संस्थित करता है और यह प्रार्थना भी करता है कि संविदा का सुधार उसके एक उपबन्ध के बारे में किया जाए क्योंकि वह उपबन्ध उसमें भूल से अन्तःस्थापित किया गया था । क साबित कर सकेगा कि ऐसी भूल की गई थी जिससे संविदा के सुधार करने का हक उसे विधि द्वारा मिलता है ।
(च) क पत्र द्वारा ख का माल आदिष्ट करता है जिसमें संदाय करने के समय के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है और परिदान पर माल को प्रतिगृहीत करता है । ख मूल्य के लिए क पर वाद लाता है । क दर्शित कर सकेगा कि माल ऐसी अवधि के लिए उधार पर दिया गया था जो अभी अनवसित नहीं हुई है । (छ) ख को क एक घोडा बेचता है और मौखिक वारण्टी देता है कि वह अच्छा है । ख को क इन शब्दों को लिख कर एक कागज देता है। क से तीस हजार रुपए रुपए में एक घोड़ा खरीदा । ख मौखिक गारन्टी साबित कर सकेगा ।
(ज) ख का वासा क भाड़े पर लेता है और एक कार्ड देता है जिसमें लिखा है, कमरे, दस हजार रुपए प्रतिमास । क यह मौखिक करार साबित कर सकेगा कि इन निबन्धनों के अन्तर्गत भागतः भोजन भी था । ख का वासा क एक वर्ष के लिए भाड़े पर लेता है और उनके बीच अधिवक्ता द्वारा तैयार किया हुआ एक स्टाम्पित करार किया जाता है । वह करार भोजन देने के विषय में मौन है। क साबित नहीं कर सकेगा कि मौखिक तौर पर उस निबन्धन के अन्तर्गत भोजन देना भी था ।
(झ) ख से शोध्य ऋण के लिए धन की रसीद भेज कर ऋण चुकाने का क आवेदन करता है । ख रसीद रख लेता है और धन नहीं भेजता । उस रकम के लिए वाद में क इसे साबित कर सकेगा ।
(ञ) क और ख लिखित संविदा करते हैं जो अमुक अनिश्चित घटना के घटित होने पर प्रभावशील होनी है। वह लेख ख के पास छोड़ दिया जाता है जो उसके आधार पर क पर वाद लाता है। क उन परिस्थितियों को दर्शित कर सकेगा जिनके अधीन वह परिदत्त किया गया था ।
खंड- 96. संदिग्धार्थ दस्तावेज को स्पष्ट करने या उसका संशोधन करने के साक्ष्य का अपवर्जन ।
जबकि किसी दस्तावेज में प्रयुक्त भाषा देखते ही संदिग्धार्थ या त्रुटिपूर्ण है, तब उन तथ्यों का साक्ष्य नहीं दिया जा सकेगा, जो उनका अर्थ दर्शित या उसकी त्रुटियों की पूर्ति कर दे ।
दृष्टांत
(क) ख को क एक लाख रुपए या एक लाख पचास हजार रुपए में एक घोड़ा बेचने का लिखित करार करता है । यह दर्शित करने के लिए कि कौन सा मूल्य दिया जाना था साक्ष्य नहीं दिया जा सकता ।
(ख) किसी विलेख में रिक्त स्थान है। उन तथ्यों का साक्ष्य नहीं दिया जा सकता जो यह दर्शित करते हों कि उनकी किस प्रकार पूर्ति अभिप्रेत थी ।
खंड- 97. विद्यमान तथ्यों को दस्तावेज के लागू होने के विरुद्ध साक्ष्य का अपवर्जन ।
जबकि दस्तावेज में प्रयुक्त भाषा स्वयं स्पष्ट हो और जब वह विद्यमान तथ्यों को ठीक-ठीक लागू होती हो, तब यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य नहीं दिया जा सकेगा कि वह ऐसे तथ्यों को लागू होने के लिए अभिप्रेत नहीं थी ।
दृष्टांत
ख को क रामपुर में एक सौ बीघे वाली मेरी सम्पदा विलेख द्वारा बेचता है । क के पास रामपुर में एक सौ बीघे वाली एक सम्पदा है । इस तथ्य का साक्ष्य नहीं दिया जा सकेगा कि विक्रयार्थ अभिप्रेत सम्पदा किसी भिन्न स्थान पर स्थित और भिन्न माप की थी ।
खंड- 98. विद्यमान तथ्यों के सदंर्भ में अर्थहीन दस्तावेज के बारे में साक्ष्य ।
जबकि दस्तावेज में प्रयुक्त भाषा स्वयं स्पष्ट हो, किंतु विद्यमान तथ्यों के सदंर्भ में अर्थहीन हो, तो यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य दिया जा सकेगा कि वह एक विशिष्ट भाव में प्रयुक्त की गई थी ।
दृष्टांत
ख को क मेरा कोलकाता का गृह विलेख द्वारा बेचता है । क का कोलकाता में कोई गृह नहीं था किन्तु यह प्रतीत होता है कि उसका हावड़ा में एक गृह था जो विलेख के निष्पादन के समय से ख के कब्जे में था । इन तथ्यों को यह दर्शित करने के लिए साबित किया जा सकेगा कि विलेख का सम्बन्ध हावड़ा के गृह से था ।
खंड- 99. उस भाषा के लागू होने के बारे में साक्ष्य जो कई व्यक्तियों में से केवल एक को लागू हो सकती है ।
जबकि तथ्य ऐसे हैं कि प्रयुक्त भाषा कई व्यक्तियों या चीजों में से किसी एक को लागू होने के लिए अभिप्रेत हो सकती थी तथा एक से अधिक को लागू होने के लिए अभिप्रेत नहीं हो सकती थी, तब उन तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा, जो यह दर्शित करते हैं कि उन व्यक्तियों या चीजों में से किस को लागू होने के लिए वह आशयित थी ।
दृष्टांत
(क) क एक हजार रुपए में मेरा सफेद घोड़ा ख को बेचने का करार करता है । क के पास दो सफेद घोड़े हैं। उन तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा जो यह दर्शित करते हों कि उनमें से कौन सा घोड़ा अभिप्रेत था ।
(ख) ख के साथ क रामगढ़ जाने के लिए करार करता है। यह दर्शित करने वाले तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा कि राजस्थान का रामगढ़ अभिप्रेत था या उत्तराखंड का रामगढ़ ।
खंड- 100. तथ्यों के दो संवर्गों में से जिनमें से किसी एक को भी वह भाषा पूरी की पूरी ठीक-ठीक लागू नहीं होती, उसमें से एक को भाषा के लागू होने के बारे में साक्ष्य ।
जबकि प्रयुक्त भाषा भागतः विद्यमान तथ्यों के एक संवर्ग को और भागतः विद्यमान तथ्यों के अन्य संवर्ग को लागू होती है, किन्तु वह पूरी की पूरी दोनों में से किसी एक को भी ठीक-ठीक लागू नहीं होती, तब यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य दिया जा सकेगा कि वह दोनों में से किस को लागू होने के लिए अभिप्रेत थी ।
दृष्टांत
ख को मेरी भ में स्थित म के अधिभोग में भूमि बेचने का क करार करता है । क के पास भ में स्थित भूमि है, किन्तु वह म के कब्जे में नहीं है तथा उसके पास म के कब्जे वाली भूमि है, किन्तु वह भ में स्थित नहीं है । यह दर्शित करने वाले तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा कि उसका अभिप्राय कौन सी भूमि बेचने का था ।
खंड- 101. न पढ़ी जा सकने वाली लिपि आदि के अर्थ के बारे में साक्ष्य ।
ऐसी लिपि का, जो पढ़ी न जा सके या सामान्यतः समझी न जाती हो, विदेशी, अप्रचलित, तकनीकी, स्थानिक और क्षेत्रीय शब्द प्रयोगों का, संक्षेपाक्षरों का और विशिष्ट भाव में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ दर्शित करने के लिए साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
दृष्टांत
एक मूर्तिकार, क मेरी सभी प्रतिमाएं ख को बेचने का करार करता है। क के पास प्रतिमान और प्रतिमा बनाने के औजार भी हैं। यह दर्शित कराने के लिए कि वह किसे बेचने का अभिप्रायः रखता था साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
खंड- 102. दस्तावेज के निबन्धनों में फेर-फार करने वाले करार का साक्ष्य कौन दे सकेगा ।
वे व्यक्ति, जो किसी दस्तावेज के पक्षकार या उनके हित प्रतिनिधि नहीं हैं, ऐसे किन्हीं भी तथ्यों का साक्ष्य दे सकेंगे, जो दस्तावेज के निबन्धनों में फेर-फार करने वाले किसी समकालीन करार को दर्शित करने की प्रवृत्ति रखते हों ।
दृष्टांत
क और ख लिखित संविदा करते हैं कि क को कुछ कपास ख बेचेगा जिसके लिए संदाय कपास के परिदान किए जाने पर किया जाएगा। उसी समय वे एक मौखिक करार करते हैं कि क को तीन मास का प्रत्यय दिया जाएगा। क और ख के बीच यह तथ्य दर्शित नहीं किया जा सकता था किन्तु यदि यह ग के हित पर प्रभाव डालता है, तो यह ग द्वारा दर्शित किया जा सकेगा ।
खंड- 103. भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के विल सम्बन्धी उपबन्धों की व्यावृत्ति ।
इस अध्याय की कोई भी बात, विल का अर्थ लगाने के बारे में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के किन्हीं भी उपबन्धों पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी ।
अध्याय 7- सबूत के भार के विषय में
खंड- 104. सबूत का भार ।
जो कोई न्यायालय से यह चाहता है कि वह ऐसे किसी विधिक अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय दे, जो उन तथ्यों के अस्तित्व पर निर्भर है, जिन्हें वह प्राख्यान करता है, उसे साबित करना होगा कि उन तथ्यों का अस्तित्व है और जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य का अस्तित्व साबित करने के लिए आबद्ध है, तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है ।
दृष्टांत
(क) क न्यायालय से चाहता है कि वह ख को उस अपराध के लिए दण्डित करने का निर्णय दे जिसके बारे में क कहता है कि वह ख ने किया है। क को यह साबित करना होगा कि ख ने वह अपराध किया है ।
(ख) क न्यायालय से चाहता है कि न्यायालय उन तथ्यों के कारण जिनके सत्य होने का वह प्रख्यान और ख प्रात्याख्यान करता है, यह निर्णय दे कि वह ख के कब्जे में की अमुक भूमि का हकदार है । क को उन तथ्यों का अस्तित्व साबित करना होगा ।
खंड- 105. सबूत का भार किस पर होता है ।
किसी वाद या कार्यवाही में सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो असफल हो जाएगा, यदि दोनों में से किसी भी ओर से कोई भी साक्ष्य न दिया जाए ।
दृष्टांत
(क) ख पर उस भूमि के लिए क वाद लाता है जो ख के कब्जे में है और जिसके बारे में क प्रख्यान करता है कि वह ख के पिता ग को विल द्वारा क के लिए दी गई थी । यदि किसी भी ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया जाए, तो ख इसका हकदार होगा कि वह अपना कब्जा रखे रहे । अतः सबूत का भार क पर है ।
(ख) ख पर एक बन्धपत्र मद्दे शोध्य धन के लिए क वाद लाता है । उस बन्धपत्र का निष्पादन स्वीकृत है किन्तु ख कहता है कि वह कपट द्वारा अभिप्राप्त किया गया था, जिस बात का क प्रत्याख्यान करता है। यदि दोनों में से किसी भी ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया जाए, तो क सफल होगा क्योंकि बन्धपत्र विवादग्रस्त नहीं है और कपट साबित नहीं किया गया । अतः सबूत का भार ख पर है ।
खंड- 106. विशिष्ट तथ्य के बारे में सबूत का भार ।
किसी विशिष्ट तथ्य के सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो न्यायालय से यह कहता है कि उसके अस्तित्व में विश्वास करे, जब तक कि किसी विधि द्वारा यह उपबन्धित न हो कि उस तथ्य के सबूत का भार किसी विशिष्ट व्यक्ति पर होगा ।
दृष्टांत
ख को क चोरी के लिए अभियोजन करता है और न्यायालय से चाहता है कि न्यायालय यह विश्वास करे कि ख ने चोरी की स्वीकृति ग से की। क को यह स्वीकृति साबित करनी होगी । ख न्यायालय से चाहता है कि वह यह विश्वास करे कि प्रश्नगत समय पर वह अन्यत्र था । उसे यह बात साबित करनी होगी ।
खंड- 107. साक्ष्य को ग्राह्य बनाने के लिए जो तथ्य साबित किया जाना हो, उसे साबित करने का भार ।
ऐसे तथ्य को साबित करने का भार जिसका साबित किया जाना किसी व्यक्ति को किसी अन्य तथ्य का साक्ष्य देने को समर्थ करने के लिए आवश्यक है, उस व्यक्ति पर है जो ऐसा साक्ष्य देना चाहता है ।
दृष्टांत
(क) ख द्वारा किए गए मृत्युकालिक कथन को क साबित करना चाहता है । क को ख की मृत्यु साबित करनी होगी ।
(ख) क किसी खोई हुई दस्तावेज की अन्तर्वस्तु को द्वितीयक साक्ष्य द्वारा साबित करना चाहता है । क को यह साबित करना होगा कि दस्तावेज खो गई है।
खंड- 108. यह साबित करने का भार कि अभियुक्त का मामला अपवादों के अन्तर्गत आता है ।
जबकि कोई व्यक्ति किसी अपराध का अभियुक्त है, तब उन परिस्थितियों के अस्तित्व को साबित करने का भार, जो उस मामले को भारतीय न्याय संहिता, 2023 के साधारण अपवादों में से किसी के अन्तर्गत या उक्त संहिता के किसी अन्य भाग में, या उस अपराध की परिभाषा करने वाली किसी विधि में, अन्तर्विष्ट किसी विशेष अपवाद या परन्तुक के अन्तर्गत कर देती है, उस व्यक्ति पर है और न्यायालय ऐसी परिस्थितियों के अभाव की उपधारणा करेगा ।
दृष्टांत
(क) हत्या का अभियुक्त, क अभिकथित करता है कि वह विकृतचित्त के कारण उस कार्य की प्रकृति नहीं जानता था । सबूत का भार क पर है ।
(ख) हत्या का अभियुक्त, क, अभिकथित करता है कि वह गम्भीर और अचानक प्रकोपन के कारण आत्मनियंत्रण की शक्ति से वंचित हो गया था । सबूत का भार क पर है ।
(ग) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 117 उपबन्ध करती है कि जो कोई, उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 122 की उपधारा (2) में उपबंध है, स्वेच्छया घोर उपहति करेगा, वह अमुक दण्डों से दण्डनीय होगा । क पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने का, धारा 117 के अधीन आरोप है । इस मामले को उक्त धारा 122 की उपधारा (2) के अधीन लाने वाली परिस्थितियों को साबित करने का भार क पर है ।
खंड- 109. विशेषतः ज्ञात तथ्य को साबित करने का भार ।
जब कोई तथ्य विशेषतः किसी व्यक्ति को ज्ञात है, तब उस तथ्य को साबित करने का भार उस पर है ।
दृष्टांत
(क) जबकि कोई व्यक्ति किसी कार्य को उस आशय से भिन्न किसी आशय से करता है, जिसे उस कार्य का स्वरूप और परिस्थितियां इंगित करती हैं, तब उस आशय को साबित करने का भार उस पर है ।
(ख) ख पर रेल से बिना टिकट यात्रा करने का आरोप है । यह साबित करने का भार कि उसके पास टिकट था उस पर है ।
खंड- 110. उस व्यक्ति की मृत्यु साबित करने का भार जिसका तीस वर्ष के भीतर जीवित होना ज्ञात है।
जब प्रश्न यह है कि कोई मनुष्य जीवित है या मर गया है और यह दर्शित किया गया है कि वह तीस वर्ष के भीतर जीवित था, तब यह साबित करने का भार कि वह मर गया है उस व्यक्ति पर है, जो उसे प्रतिज्ञात करता है ।
खंड- 111. यह साबित करने का भार कि वह व्यक्ति, जिसके बारे में सात वर्ष से कुछ सुना नहीं गया है, जीवित है ।
जबकि प्रश्न यह है कि कोई मनुष्य जीवित है या मर गया है और यह साबित किया गया है कि उसके बारे में सात वर्ष से उन्होंने कुछ नहीं सुना है, जिन्होंने उसके बारे में यदि वह जीवित होता तो स्वभाविकतयः सुना होता, तब यह साबित करने का भार कि वह जीवित है उस व्यक्ति पर चला जाता है, जो उसे प्रतिज्ञात करता है ।
खंड- 112. भागीदारों, भू-स्वामी और अभिधारी, मालिक और अभिकर्ता के मामलों में सबूत का भार ।
जबकि प्रश्न यह है कि क्या कोई व्यक्ति भागीदार, भूस्वामी और अभिधारी, या मालिक और अभिकर्ता है, और यह दर्शित कर दिया गया है कि वे इस रूप में कार्य करते रहे हैं, तब यह साबित करने का भार कि क्रमशः इन सम्बन्धों में वे परस्पर अवस्थित नहीं हैं या अवस्थित होने से परिविरत हो चुके हैं, उस व्यक्ति पर है, जो उसे प्रतिज्ञात करता है ।
खंड- 113. स्वामित्व के बारे में सबूत का भार ।
जबकि प्रश्न यह है कि क्या कोई व्यक्ति ऐसी किसी चीज का स्वामी है जिस पर उसका कब्जा होना दर्शित किया गया है, तब यह साबित करने का भार कि वह स्वामी नहीं है, उस व्यक्ति पर है, जो प्रतिज्ञात करता है कि वह स्वामी नहीं है ।
खंड- 114. उन संव्यवहारों में सद्भाव का साबित किया जाना जिनमें एक पक्षकार का सम्बन्ध सक्रिय विश्वास का है ।
जहां कि उन पक्षकारों के बीच के संव्यवहार के सद्भाव के बारे में प्रश्न है, जिनमें से एक दूसरे के प्रति सक्रिय विश्वास की स्थिति में हैं, वहां उस संव्यवहार के सद्भाव को साबित करने का भार उस पक्षकार पर है जो सक्रिय विश्वास की स्थिति में है।
दृष्टांत
(क) कक्षीकार द्वारा अधिवक्ता के पक्ष में लिए गए विक्रय का सद्भाव कक्षीकार द्वारा लाए गए वाद में प्रश्नगत है । संव्यवहार का सद्भाव साबित करने का भार अधिवक्ता पर है।
(ख) पुत्र द्वारा, जो कि हाल ही में प्राप्त वय हुआ है, पिता को किए गए किसी विक्रय का सद्भाव पुत्र द्वारा लाए गए वाद में प्रश्नगत है । संव्यवहार के सद्भाव को साबित करने का भार पिता पर है।
खंड- 115. कतिपय अपराधों के बारे में उपधारणा ।
(1) जहां कोई व्यक्ति उपधारा
(2) में विनिर्दिष्ट ऐसे किसी अपराध के,-
(क) ऐसे किसी क्षेत्र में, जिसे उपद्रव को दबाने के लिए और लोक व्यवस्था की बहाली और उसे बनाए रखने के लिए उपबंध करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के अधीन विक्षुब्ध क्षेत्र घोषित किया गया है; या
(ख) ऐसे किसी क्षेत्र में, जिसमें एक मास से अधिक की अवधि के लिए लोक शांति में व्यापक विघ्न रहा है, किए जाने का अभियुक्त है और यह दर्शित किया जाता है कि ऐसा व्यक्ति ऐसे क्षेत्र में किसी स्थान पर ऐसे समय पर था जब ऐसे किसी सशस्त्र बल या बलों के, जिन्हें लोक व्यवस्था बनाए रखने का भार सौंपा गया है, ऐसे सदस्यों पर जो अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं, आक्रमण करने के लिए या उनका प्रतिरोध करने के लिए उस स्थान पर या उस स्थान से अग्न्यायुधों या विस्फोटक का प्रयोग किया गया था, वहां जब तक तत्प्रतिकूल दर्शित नहीं किया जाता यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसे व्यक्ति ने ऐसा अपराध किया है ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपराध निम्नलिखित हैं, अर्थात् :-
(क) भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 147, धारा 148, धारा 149 या धारा 150 के अधीन कोई अपराध ;
(ख) आपराधिक षड्यंत्र या भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 149 या धारा 150 के अधीन कोई अपराध करने का प्रयत्न या उसका दुष्प्रेरण ।
खंड- 116. विवाहित स्थिति के दौरान जन्म होना धर्मजत्व का निश्चायक सबूत है ।
यह तथ्य कि किसी व्यक्ति का जन्म उसकी माता और किसी पुरुष के बीच विधिमान्य विवाह के कायम रहते हुए, या उसका विघटन होने के उपरान्त माता के अविवाहित रहते हुए दो सौ अस्सी दिन के भीतर हुआ था, इस बात का निश्चायक सबूत होगा कि वह उस पुरुष का धर्मज बालक हैं, जब तक यह दर्शित न किया जा सके कि विवाह के पक्षकारों की परस्पर पहुंच ऐसे किसी समय नहीं थी कि जब उसका गर्भाधान किया जा सकता था ।
खंड- 117. किसी विवाहित स्त्री द्वारा आत्महत्या के दुष्प्रेरण के बारे में उपधारणा ।
जब प्रश्न यह है कि किसी स्त्री द्वारा आत्महत्या का करना उसके पति या उसके पति के किसी नातेदार द्वारा दुष्प्रेरित किया गया है और यह दर्शित किया गया है कि उसने अपने विवाह की तारीख से सात वर्ष की अवधि के भीतर आत्महत्या की थी और यह कि उसके पति या उसके पति के ऐसे नातेदार ने उसके प्रति कूरता की थी, तो न्यायालय मामले की सभी अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह उपधारणा कर सकेगा कि ऐसी आत्महत्या उसके पति या उसके पति के ऐसे नातेदार द्वारा दुष्प्रेरित की गई थी ।
स्पष्टीकरण इस धारा के प्रयोजनों के लिए क्रूरता का वही अर्थ है, जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 86 में है ।
खंड- 118. दहेज मृत्यु के बारे में उपधारणा ।
जब प्रश्न यह है कि किसी व्यक्ति ने किसी स्त्री की दहेज मृत्यु की है और यह दर्शित किया जाता है कि मृत्यु के कुछ पूर्व ऐसे व्यक्ति ने दहेज की किसी मांग के लिए, या उसके संबंध में उस स्त्री के साथ क्रूरता की थी या उसको तंग किया था तो न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज मृत्यु कारित की थी ।
स्पष्टीकरण इस धारा के प्रयोजनों के लिए, दहेज मृत्यु का वही अर्थ है जो भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 80 में है ।
खंड- 119. न्यायालय किन्हीं तथ्यों का अस्तित्व उपधारित कर सकेगा ।
(1) न्यायालय ऐसे किसी तथ्य का अस्तित्व उपधारित कर सकेगा जिसका घटित होना उस विशिष्ट मामले के तथ्यों के सम्बन्ध में प्राकृतिक घटनाओं, मानवीय आचरण तथा लोक और प्राइवेट कारबार के सामान्य अनुक्रम को ध्यान में रखते हुए वह सम्भाव्य समझता है ।
दृष्टांत
न्यायालय उपधारित कर सकेगा कि, -
(क) चुराए हुए माल पर जिस मनुष्य का चोरी के शीघ्र उपरान्त कब्जा है, जब तक कि वह अपने कब्जे का कारण न बता सके, या तो वह चोर है या उसने माल को चुराया हुआ जानते हुए प्राप्त किया है;
(ख) सहअपराधी विश्वसनीयता के अयोग्य है, जब तक तात्त्विक विशिष्टियों में उसकी सम्पुष्टि नहीं होती;
(ग) कोई प्रतिगृहीत या पृष्ठांकित विनिमयपत्र समुचित प्रतिफल के लिए प्रतिगृहीत या पृष्ठांकित किया गया था;
(घ) ऐसी कोई चीज या चीजों की दशा अब भी अस्तित्व में है, जिसका उतनी कालावधि से जितनी में ऐसी चीजें या चीजों की दशाएं प्रायः अस्तित्वशून्य हो जाती हैं, लघुतर कालावधि में अस्तित्व में होना दर्शित किया गया है;
(ङ) न्यायिक और पदीय कार्य नियमित रूप से संपादित किए गए हैं;
(च) विशिष्ट मामलों में कारबार के सामान्य अनुक्रम का अनुसरण किया गया है; (छ) यदि वह साक्ष्य जो पेश किया जा सकता था और पेश नहीं किया गया है, पेश किया जाता, तो उस व्यक्ति के अननुकूल होता, जो उसका विधारण किए हुए है;
(ज) यदि कोई मनुष्य ऐसे किसी प्रश्न का उत्तर देने से इन्कार करता है, जिसका उत्तर देने के लिए वह विधि द्वारा विवश नहीं है, तो उत्तर, यदि वह दिया जाता, उसके अननुकूल होता;
(झ) जब किसी बाध्यता का सृजन करने वाला दस्तावेज बाध्यताधारी के हाथ में है, तब उस बाध्यता का उन्मोचन हो चुका है।
(2) न्यायालय यह विचार करने में कि ऐसे सूत्र उसके समक्ष के विशिष्ट मामले को लागू होते हैं या नहीं, निम्नलिखित प्रकार के तथ्यों का भी ध्यान रखेगा, -
(i) दृष्टांत (क) - के बारे में किसी दुकानदार के पास उसके गल्ले में कोई चिह्नित रुपया उसके चुराए जाने के शीघ्र पश्चात् है, और वह उसके कब्जे का कारण विनिर्दिष्टतः नहीं बता सकता किन्तु अपने कारबार के अनुक्रम में वह रुपया लगातार प्राप्त कर रहा है;
(ii) दृष्टांत (ख) के बारे में एक अत्यन्त ऊंचे शील का व्यक्ति, क किसी मशीनरी को ठीक-ठीक लगाने में किसी उपेक्षापूर्वक कार्य द्वारा किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के लिए विचारित है । वैसा ही अच्छे शील का व्यक्ति, ख, जिसने मशीनरी लगाने के उस काम में भाग लिया था, ब्यौरेवार वर्णन करता है कि क्या-क्या किया गया था, और क की और स्वयं अपनी असावधानी स्वीकृत और स्पष्ट करता है;
(iii) दृष्टांत (ख) - के बारे में कोई अपराध कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है । अपराधियों में से तीन क, ख और ग घटनास्थल पर पकड़े जाते हैं और एक दूसरे से अलग रखे जाते है । अपराध का विवरण उनमें से हर एक ऐसा देता है जो घ को आलिप्त करता है और ये विवरण एक दूसरे को किसी ऐसी रीति में सम्पुष्ट करते हैं, जिससे उनमें यह अति अधिसम्भाव्य हो जाता है कि उन्होंने इसके पूर्व मिलकर कोई योजना बनाई थी;
(iv) दृष्टांत (ग) के बारे में किसी विनिमयपत्र का लेखीवाल, क व्यापारी था । प्रतिगृहीता ख पूर्णतः क के असर के अधीन एक युवक और नासमझ व्यक्ति था;
(v) दृष्टांत (घ) - के बारे में यह साबित किया गया है कि कोई नदी अमुक मार्ग में पांच वर्ष पूर्व बहती थी, किन्तु यह ज्ञात है कि उस समय से ऐसी बाढ़ें आई हैं जो उसके मार्ग को परिवर्तित कर सकती थीं;
(vi) दृष्टांत (ङ) के बारे में कोई न्यायिक कार्य, जिसकी नियमितता प्रश्नगत है, असाधारण परिस्थितियों में किया गया था;
(vii) दृष्टांत (च) - के बारे में प्रश्न यह है कि क्या कोई प्रत्र प्राप्त हुआ था । उसका डाक में डाला जाना दर्शित किया गया है, किन्तु डाक के सामान्य अनुक्रम में उपद्रवों के कारण विघ्न पड़ा था;
(viii) दृष्टांत (छ) - के बारे में कोई मनुष्य किसी ऐसी दस्तावेज को पेश करने से इन्कार करता है जिसका असर किसी अल्प महत्व की ऐसी संविदा पर पड़ता है, जिसके आधार पर उसके विरुद्ध वाद लाया गया है, किन्तु जो उसके कुटुम्ब की भावनाओं और ख्याति को भी क्षति पहुंचा सकती है;
(ix) दृष्टांत (ज) - के बारे में कोई मनुष्य किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करता है जिसका उत्तर देने के लिए वह विधि द्वारा विवश नहीं है, किन्तु उसका उत्तर उसे उस विषय से असंसक्त विषयों में हानि पहुंचा सकता है, जिसके सम्बन्ध में वह पूछा गया है;
(x) दृष्टांत (झ) - के बारे में कोई बन्धपत्र बाध्यताधारी के कब्जे में है किन्तु मामले की परिस्थितियां ऐसी हैं कि हो सकता है कि उसने उसे चुराया हो ।
खंड- 120. बलात्संग के लिए कतिपय अभियोजन में सम्मति के न होने की उपधारणा ।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64 की उपधारा (2) के अधीन बलात्संग के लिए किसी अभियोजन में, जहां अभियुक्त द्वारा मैथुन किया जाना साबित हो जाता है और प्रश्न यह है कि क्या वह उस स्त्री की, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उससे बलात्संग किया गया है, सम्मति के बिना किया गया था और ऐसी स्त्री न्यायालय के समक्ष अपने साक्ष्य में यह कथन करती है कि उसने सम्मति नहीं दी थी, वहां न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि उसने सम्मति नहीं दी थी ।
स्पष्टीकरण इस धारा में मैथुन से भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 63 में वर्णित कोई कार्य अभिप्रेत होगा ।
अध्याय 8- विबन्ध
खंड- 121. विबंध ।
जबकि एक व्यक्ति ने अपनी घोषणा, कार्य या लोप द्वारा अन्य व्यक्ति को विश्वास साशय कराया है या कर लेने दिया है कि कोई बात सत्य है और ऐसे विश्वास पर कार्य कराया या करने दिया है, तब न तो उसे और न उसके प्रतिनिधि को अपने और ऐसे व्यक्ति के, या उसके प्रतिनिधि के, बीच किसी वाद या कार्यवाही में उस वाद की सत्यता का प्रत्याख्यान करने दिया जाएगा ।
दृष्टांत
क साशय और मिथ्या रूप से ख को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है कि अमुक भूमि क की है, और एतद्वारा ख को उसे क्रय करने और उसका मूल्य चुकाने के लिए उत्प्रेरित करता है । तत्पश्चात् भूमि क की सम्पत्ति हो जाती है और क इस आधार पर कि विक्रय के समय उसका उसमें हक नहीं था विक्रय अपास्त करने की ईप्सा करता है । उसे अपने हक का अभाव साबित नहीं करने दिया जाएगा ।
खंड- 122. अभिधारी का और कब्जाधारी व्यक्ति के अनुज्ञप्तिधारी का विबन्ध ।
स्थावर सम्पत्ति के किसी भी अभिधारी को या ऐसे अभिधारी से व्युत्पन्न अधिकार से दावा करने वाले व्यक्ति को, ऐसी अभिधृति के चालू रहते हुए या उसके पश्चात् किसी भी समय, इसका प्रत्याख्यान न करने दिया जाएगा कि ऐसे अभिधारी के भूस्वामी का ऐसी स्थावर सम्पत्ति पर, उस अभिधृति के आरम्भ पर हक था तथा किसी भी व्यक्ति को, जो किसी स्थावर सम्पत्ति पर उस पर कब्जाधारी व्यक्ति की अनुज्ञप्ति द्वारा आया है, इसका प्रत्याख्यान न करने दिया जाएगा कि ऐसे व्यक्ति को उस समय, जब ऐसी अनुज्ञप्ति दी गई थी, ऐसे कब्जे का हक था ।
खंड- 123. विनिमयपत्र के प्रतिगृहीता का, उपनिहिती का या अनुज्ञप्तिधारी का विबन्ध ।
किसी विनिमय-पत्र के प्रतिगृहीता को इसका प्रत्याख्यान करने की अनुज्ञा न दी जाएगी कि लेखीवाल को ऐसा विनिमयपत्र लिखने या उसे पृष्ठांकित करने का प्राधिकार था, और न किसी उपनिहिती या अनुज्ञप्तिधारी को इसका प्रत्याख्यान करने दिया जाएगा कि उपनिधाता या अनुज्ञापक को उस समय, जब ऐसा उपनिधान या अनुज्ञप्ति आरम्भ हुई, ऐसे उपनिधान करने या अनुज्ञप्ति अनुदान करने का प्राधिकार था ।
स्पष्टीकरण 1-किसी विनिमयपत्र का प्रतिगृहीता इसका प्रत्याख्यान कर सकता है कि विनिमयपत्र वास्तव में उस व्यक्ति द्वारा लिखा गया था जिसके द्वारा लिखा गया वह तात्पर्यत है ।
स्पष्टीकरण 2 यदि कोई उपनिहिती, उपनिहित माल उपनिधाता से अन्य किसी व्यक्ति को परिदत्त करता है, तो वह साबित कर सकेगा कि ऐसे व्यक्ति का उस पर उपनिधाता के विरुद्ध अधिकार था ।
अध्याय 9- साक्षियों के विषय में
खंड- 124. कौन साक्ष्य दे सकेगा ।
सभी व्यक्ति साक्ष्य देने के लिए सक्षम होंगे, जब तक कि न्यायालय का यह विचार न हो कि कोमल वयस, अतिवार्धक्य, शरीर के या मन के रोग या इसी प्रकार के किसी अन्य कारण से वे उनसे किए गए प्रश्नों को समझने से या उन प्रश्नों के युक्तिसंगत उत्तर देने से निवारित हैं ।
स्पष्टीकरण कोई विकृत चित्त व्यक्ति साक्ष्य देने के लिए अक्षम नहीं है, जब तक वह अपनी चित्त-विकृति के कारण उससे किए गए प्रश्नों को समझने से या उनके युक्तिसंगत उत्तर देने से निवारित न हो ।
खंड- 125. साक्षी का मौखिक रूप से संसूचित करने में असमर्थ होना ।
ऐसा कोई साक्षी, जो बोलने में असमर्थ है, ऐसी किसी अन्य रीति में, जिसमें वह उसे बोधगम्य बना सकता है जैसे कि लिखकर या संकेत चिह्नों द्वारा, अपना साक्ष्य दे सकेगा; किंतु ऐसा लेखन और संकेत चिह्न खुले न्यायालय में लिखे और किए जाने चाहिए तथा इस प्रकार दिया गया साक्ष्य मौखिक साक्ष्य माना जाएगा :
परंतु यदि साक्षी मौखिक रूप से संसूचित करने में असमर्थ है तो न्यायालय कथन अभिलिखित करने में किसी द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता लेगा और ऐसे कथन की वीडियो फिल्म तैयार की जा सकेगी ।
खंड- 126. कतिपय मामलों में पति और पत्नी की साक्षी के रूप में सक्षमता ।
(1) सभी सिविल कार्यवाहियों में वाद के पक्षकार और वाद के किसी पक्षकार का पति या पत्नी सक्षम साक्षी होंगे ।
(2) किसी व्यक्ति के विरुद्ध दांडिक कार्यवाहियों में, ऐसे व्यक्ति का क्रमशः पति या पत्नी सक्षम साक्षी होगा ।
खंड- 127. न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट ।
कोई भी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट न्यायालय में ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के नाते अपने स्वयं के आचरण के बारे में, या ऐसी किसी बात के बारे में, जिसका ज्ञान उसे ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के नाते न्यायालय में हुआ, किन्हीं प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ऐसे किसी भी न्यायालय के विशेष आदेश के सिवाय, जिसके वह अधीनस्थ है, विवश नहीं किया जाएगा किन्तु अन्य बातों के बारे में जो उसकी उपस्थिति में उस समय घटित हुई थीं, जब वह ऐसे कार्य कर रहा था उसकी परीक्षा की जा सकेगी ।
दृष्टांत
(क) सेशंस न्यायालय के समक्ष अपने विचार में क कहता है कि अभिसाक्ष्य मजिस्ट्रेट ख द्वारा अनुचित रूप से लिया गया था । तद्विषयक प्रश्नों का उत्तर देने के लिए क को किसी वरिष्ठ न्यायालय के विशेष आदेश के सिवाय विवश नहीं किया जा सकता ।
(ख) मजिस्ट्रेट ख के समक्ष मिथ्या साक्ष्य देने का क सेशंस न्यायालय के समक्ष अभियुक्त है । वरिष्ठ न्यायालय के विशेष आदेश के सिवाय ख से यह नहीं पूछा जा सकता कि क ने क्या कहा था । (ग) क सेशंस न्यायालय के समक्ष इसलिए अभियुक्त है कि उसने सेशंस न्यायाधीश ख के समक्ष विचारित होते समय किसी पुलिस अधिकारी की हत्या करने का प्रयत्न किया । ख की यह परीक्षा की जा सकेगी कि क्या घटित हुआ था ।
खंड- 128. विवाहित स्थिति के दौरान में की गई संसूचनाएं ।
कोई भी व्यक्ति, जो विवाहित है या जो विवाहित रह चुका है, किसी संसूचना को, जो किसी व्यक्ति द्वारा, जिससे वह विवाहित है या रह चुका है, विवाहित स्थिति के दौरान में उसे दी गई थी, प्रकट करने के लिए विवश न किया जाएगा, और न वह किसी ऐसी संसूचना को प्रकट करने के लिए अनुज्ञात किया जाएगा, जब तक वह व्यक्ति, जिसने वह संसूचना दी है या उसका हितप्रतिनिधि सम्मत न हो, सिवाय उन वादों में, जो विवाहित व्यक्तियों के बीच हों, या उन कार्यवाहियों में, जिनमें एक विवाहित व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध किए गए किसी अपराध के लिए अभियोजित है ।
खंड- 129. राज्य के कार्यकलापों के बारे में साक्ष्य ।
कोई भी व्यक्ति राज्य के किसी भी कार्यकलापों से सम्बन्धित अप्रकाशित शासकीय अभिलेखों से व्युत्पन्न कोई भी साक्ष्य देने के लिए अनुज्ञात न किया जाएगा, सिवाय सम्पृक्त विभाग के प्रमुख अधिकारी की अनुज्ञा के जो ऐसी अनुज्ञा देगा या उसे विधारित करेगा, जैसा करना वह ठीक समझे ।
खंड- 130. शासकीय संसूचनाएं ।
कोई भी लोक अधिकारी उसे शासकीय विश्वास में दी हुई संसूचनाओं को प्रकट करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा, जब कि वह समझता है कि उस प्रकटन से लोक हित की हानि होगी ।
खंड- 131. अपराधों के करने के बारे में जानकारी ।
कोई भी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी यह कहने के लिए विवश नहीं किया जाएगा कि किसी अपराध के किए जाने के बारे में उसे कोई जानकारी कब मिली और किसी भी राजस्व अधिकारी को यह कहने के लिए विवश नहीं किया जाएगा कि उसे लोक राजस्व के विरुद्ध किसी अपराध के किए जाने के बारे में कोई जानकारी कब मिली ।
स्पष्टीकरण इस धारा में राजस्व अधिकारी से लोक राजस्व की किसी शाखा के कारबार में या के बारे में नियोजित अधिकारी अभिप्रेत है ।
खंड- 132. वृत्तिक संसूचनाएं ।
(1) कोई भी अधिवक्ता अपने कक्षीकार की अभिव्यक्त सम्मति के सिवाय ऐसी किसी संसूचना को प्रकट करने के लिए, जो उसके ऐसे अधिवक्ता की हैसियत में सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ उसके कक्षीकार द्वारा, या की ओर से उसे दी गई हो या किसी दस्तावेज की, जिससे वह अपनी वृत्तिक सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ परिचित हो गया है, अर्न्तवस्तु या दशा कथित करने को या किसी सलाह को, जो ऐसी सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ उसने अपने कक्षीकार को दी है, प्रकट करने के लिए किसी भी समय अनुज्ञात नहीं किया जाएगा :
परन्तु इस धारा की कोई भी बात निम्नलिखित बात को प्रकटीकरण से संरक्षण न देगी, -
(क) किसी भी अवैध प्रयोजन को अग्रसर करने में दी गई कोई भी ऐसी संसूचना ;
(ख) ऐसा कोई भी तथ्य जो किसी अधिवक्ता ने अपनी ऐसी हैसियत में सेवा के अनुक्रम में संप्रेषित किया हो, और जिससे दर्शित हो कि उसके सेवा के प्रारम्भ के पश्चात् कोई अपराध या कपट किया गया है ।
(2) यह तत्त्वहीन है कि उपधारा (1) के परंतुक में निर्दिष्ट ऐसे अधिवक्ता का ध्यान ऐसे तथ्य के प्रति उसके कक्षीकार के द्वारा या की ओर से आकर्षित किया गया था या नहीं ।
स्पष्टीकरण इस धारा में कथित बाध्यता वृत्तिक सेवा के अवसित हो जाने के उपरान्त भी बनी रहती है ।
दृष्टांत
(क) कक्षीकार क, अधिवक्ता ख से कहता है, मैंने कूटरचना की है और मैं चाहता हूं कि आप मेरी प्रतिरक्षा करें । यह संसूचना प्रकटन से संरक्षित है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति की प्रतिरक्षा आपराधिक प्रयोजन नहीं है, जिसका दोषी होना ज्ञात हो ।
(ख) कक्षीकार क, अधिवक्ता ख से कहता है, मैं सम्पत्ति पर कब्जा कूटरचित विलेख के उपयोग द्वारा अभिप्राप्त करना चाहता हूं और इस आधार पर वाद लाने की मैं आपसे प्रार्थना करता हूं । यह संसूचना आपराधिक प्रयोजन के अग्रसर करने में की गई होने से प्रकटन से संरक्षित नहीं है ।
(ग) क पर गबन का आरोप लगाए जाने पर वह अपनी प्रतिरक्षा करने के लिए अधिवक्ता ख को प्रतिधारित करता है । कार्यवाहियों के अनुक्रम में ख देखता है कि क की लेखाबही में यह प्रविष्टि की गई है कि क द्वारा उतनी रकम देनी है, जितनी के बारे में अभिकथित है कि उसका गबन किया गया है, जो प्रविष्टि उसकी वृत्तिक सेवा के आरम्भ के समय उस बही में नहीं थी । यह ख द्वारा अपनी सेवा के अनुक्रम में सम्प्रेक्षित ऐसा तथ्य होने से, जिससे दर्शित होता है कि कपट उस कार्यवाही के प्रारम्भ होने के पश्चात् किया गया है, प्रकटन से संरक्षित नहीं है ।
(3) इस धारा के उपबंध अधिवक्ताओं के निर्वचनकर्ताओं और लिपिकों या कर्मचारियों को लागू होंगे ।
खंड- 133. साक्ष्य देने के लिए स्वयंमेव उद्द्यत होने से विशेषाधिकार अभित्यक्त नहीं हो जाता ।
यदि किसी वाद का कोई साक्ष्य स्वप्रेरणा से ही या अन्यथा उसमें साक्ष्य देता है तो यह न समझा जाएगा कि एतद्वारा उसने ऐसे प्रकटन के लिए, जैसा धारा 132 में वर्णित है, सम्मति दे दी है, तथा यदि किसी वाद या कार्यवाही का कोई पक्षकार ऐसे किसी अधिवक्ता को साक्षी के रूप में बुलाता है, तो यह कि उसने ऐसे प्रकटन के लिए अपनी सम्मति दे दी है केवल तभी समझा जाएगा, जबकि वह ऐसे अधिवक्ता से उन बातों के बारे में प्रश्न करे, जिनके प्रकटन के लिए वह ऐसे प्रश्नों के अभाव में स्वाधीन न होता ।
खंड- 134. विधि सलाहकारों से गोपनीय संसूचनाएं ।
कोई भी व्यक्ति किसी गोपनीय संसूचना को, जो उसके और उसके विधि सलाहकार के बीच हुई है, न्यायालय को प्रकट करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा, जब तक कि वह अपने को साक्षी के तौर पर पेश न कर दे; ऐसे पेश करने की दशा में किन्हीं भी ऐसी संसूचनाओं को, जिन्हें उस किसी साक्ष्य को स्पष्ट करने के लिए जानना, जो उसने दिया है, न्यायालय को आवश्यक प्रतीत हो, प्रकट करने के लिए विवश किया जा सकेगा किन्तु किन्हीं भी अन्य संसूचनाओं को नहीं ।
खंड- 135. जो साक्षी पक्षकार नहीं है उसके हक विलेखों का पेश किया जाना ।
कोई भी साक्षी, जो वाद का पक्षकार नहीं है, किसी सम्पत्ति सम्बन्धी अपने हक विलेखों को, या किसी ऐसी दस्तावेज को, जिसके बल पर वह गिरवीदार या बन्धकदार के रूप में कोई सम्पत्ति धारण करता है, या किसी दस्तावेज को, जिसका पेशकरण उसे अपराध में फंसाने की प्रवृत्ति रखता है, पेश करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसे विलेखों के पेशकरण की ईप्सा रखने वाले व्यक्ति के साथ, या ऐसे किसी व्यक्ति के साथ जिससे व्युत्पन्न अधिकार से वह व्यक्ति दावा करता है, उन्हें पेश करने का लिखित करार न कर लिया हो ।
खंड- 136. ऐसे दस्तावेजों या इलैक्ट्रानिक अभिलेखों का पेश किया जाना, जिन्हें कोई दूसरा व्यक्ति, जिसका उन पर कब्जा है, पेश करने से इंकार कर सकता था ।
कोई भी व्यक्ति, अपने कब्जे में की ऐसे दस्तावेजों या अपने नियंत्रण वाले इलैक्ट्रानिक अभिलेखों को पेश करने के लिए जिनको पेश करने के लिए कोई अन्य व्यक्ति, यदि वे उसके कब्जे या नियंत्रण में होते, पेश करने से इंकार करने का हकदार होता, विवश नहीं किया जाएगा, जब तक कि ऐसा अन्तिम वर्णित व्यक्ति उन्हें पेश करने के लिए सहमति नहीं देता ।
खंड- 137. इस आधार पर कि उत्तर उसे अपराध में फंसाएगा, साक्षी उत्तर देने से क्षम्य न होगा ।
कोई साक्षी किसी वाद या किसी सिविल या दाण्डिक कार्यवाही में विवाद्यक विषय से सुसंगत किसी विषय के बारे में किए गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इस आधार पर क्षम्य नहीं होगा कि ऐसे प्रश्न का उत्तर ऐसे साक्षी को अपराध में फंसाएगा या उसकी प्रवृत्ति प्रत्यक्षतः या परोक्षतः अपराध में फंसाने की होगी या वह ऐसे साक्षी को किसी किस्म की शास्ति या समपहरण के लिए उच्छन्न करेगा या इसकी प्रवृत्ति प्रत्यक्षतः या परोक्षतः उच्छन्न करने की होगी :
परन्तु ऐसा कोई भी उत्तर, जिसे देने के लिए कोई साक्षी विवश किया जाएगा उसे गिरफ्तारी या अभियोजन के अध्यधीन नहीं करेगा और न ऐसे उत्तर द्वारा मिथ्या साक्ष्य देने के लिए अभियोजन में के सिवाय वह उसके विरुद्ध किसी दाण्डिक कार्यवाही में साबित किया जाएगा ।
खंड- 138. सह अपराधी ।
सह अपराधी, अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध सक्षम साक्षी होगा, और कोई दोषसिद्धि इसलिए अवैध नहीं है यदि वह किसी सह अपराधी के सम्पुष्ट परिसाक्ष्य के आधार पर की गई है ।
खंड- 139. साक्षियों की संख्या ।
किसी मामले में किसी तथ्य को साबित करने के लिए साक्षियों की कोई विशिष्ट संख्या अपेक्षित नहीं होगी ।
अध्याय 10- साक्षियों की परीक्षा के विषय में
खंड- 140. साक्षियों के पेशकरण और उनकी परीक्षा का क्रम ।
साक्षियों के पेशकरण और उनकी परीक्षा का क्रम, क्रमशः सिविल और दण्ड प्रक्रिया से तत्समय सम्बन्धित विधि और पद्धति द्वारा, तथा ऐसी किसी विधि के अभाव में न्यायालय के विवेक द्वारा, विनियमित होगा ।
खंड- 141. न्यायाधीश साक्ष्य की ग्राह्यता के बारे में निश्चय करेगा ।
(1) जबकि दोनों में से कोई पक्षकार किसी तथ्य का साक्ष्य देने की प्रस्थापना करता है, तब न्यायाधीश साक्ष्य देने की प्रस्थापना करने वाले पक्षकार से पूछ सकेगा कि अभिकथित तथ्य, यदि वह साबित हो जाए, किस प्रकार सुसंगत होगा और यदि न्यायाधीश यह समझता है कि वह तथ्य यदि साबित हो गया तो सुसंगत होगा, तो वह उस साक्ष्य को ग्रहण करेगा, अन्यथा नहीं ।
(2) यदि वह तथ्य, जिसका साबित करना प्रस्थापित है, ऐसा है जिसका साक्ष्य किसी अन्य तथ्य के साबित होने पर ही ग्राह्य होता है, तो ऐसा अन्तिम वर्णित तथ्य प्रथम वर्णित तथ्य का साक्ष्य दिए जाने के पूर्व साबित करना होगा, जब तक कि पक्षकार ऐसे तथ्य को साबित करने का वचन न दे और न्यायालय ऐसे वचन से संतुष्ट न हो जाए ।
(3) यदि एक अभिकथित तथ्य की सुसंगति अन्य अभिकथित तथ्य के प्रथम साबित होने पर निर्भर हो, तो न्यायाधीश अपने विवेकानुसार या तो दूसरे तथ्य के साबित होने के पूर्व प्रथम तथ्य का साक्ष्य दिया जाना अनुज्ञात कर सकेगा, या प्रथम तथ्य का साक्ष्य दिए जाने के पूर्व द्वितीय तथ्य का साक्ष्य दिए जाने की अपेक्षा कर सकेगा ।
दृष्टांत
(क) यह प्रस्थापना की गई है कि एक व्यक्ति के, जिसका मृत होना अभिकथित है, सुसंगत तथ्य के बारे में एक कथन को, जो कि धारा 26 के अधीन सुसंगत है, साबित किया जाए । इससे पूर्व कि उस कथन का साक्ष्य दिया जाए उस कथन को साबित करने की प्रस्थापना करने वाले व्यक्ति को यह तथ्य साबित करना होगा कि वह व्यक्ति मर गया है ।
(ख) यह प्रस्थापना की गई है कि एक ऐसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु को, जिसका खोई हुई होना कथित है, प्रतिलिपि द्वारा साबित किया जाए । यह तथ्य कि मूल खो गया है प्रतिलिपि पेश करने की प्रस्थापना करने वाले व्यक्ति को वह प्रतिलिपि पेश करने से पूर्व साबित करना होगा ।
(ग) क चुराई हुई सम्पत्ति को यह जानते हुए कि वह चुराई हुई है, प्राप्त करने का अभियुक्त है । यह साबित करने की प्रस्थापना की गई है कि उसने उस सम्पत्ति के कब्जे का प्रत्याख्यान किया । इस प्रत्याख्यान की सुसंगति सम्पत्ति की अनन्यतया पर निर्भर है । न्यायालय अपने विवेकानुसार या तो कब्जे के प्रत्याख्यान के साबित होने से पूर्व सम्पत्ति की पहचान की जानी अपेक्षित कर सकेगा, या सम्पत्ति की पहचान किए जाने के पूर्व कब्जे का प्रत्याख्यान साबित किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगा ।
(घ) किसी तथ्य क के, जिसका किसी विवाद्यक तथ्य का हेतुक या परिणाम होना कथित है, साबित करने की प्रस्थापना की गई है। कई मध्यान्तरिक तथ्य ख, ग और घ हैं, जिनका, इससे पूर्व कि तथ्य क उस विवाद्यक तथ्य का हेतुक या परिणाम माना जा सके, अस्तित्व में होना दर्शित किया जाना आवश्यक है। न्यायालय या तो ख, ग या घ के साबित किए जाने के पूर्व क के साबित किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगा, या क का साबित किया जाना अनुज्ञात करने के पूर्व ख, ग और घ का साबित किया जाना अपेक्षित कर सकेगा ।
खंड- 142. साक्षियों की परीक्षा ।
(1) किसी साक्षी की उस पक्षकार द्वारा, जो उसे बुलाता है, परीक्षा उसकी मुख्य परीक्षा कहलाएगी ।
(2) किसी साक्षी की प्रतिपक्षी द्वारा दी गई परीक्षा उसकी प्रतिपरीक्षा कहलाएगी ।
(3) किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा के पश्चात् उसकी उस पक्षकार द्वारा, जिसने उसे बुलाया था, परीक्षा उसकी पुनः परीक्षा कहलाएगी ।
खंड- 143. परीक्षाओं का क्रम ।
(1) साक्षियों से प्रथमतः मुख्यपरीक्षा होगी, तत्पश्चात् (यदि प्रतिपक्षी ऐसा चाहे तो) प्रतिपरीक्षा होगी, तत्पश्चात् (यदि उसे बुलाने वाला पक्षकार ऐसा चाहे तो) पुनःपरीक्षा होगी ।
(2) मुख्यपरीक्षा और प्रतिपरीक्षा को सुसंगत तथ्यों से सम्बन्धित होगी, किन्तु प्रतिपरीक्षा का उन तथ्यों तक सीमित रहना आवश्यक नहीं है, जिनकी साक्षी ने अपनी मुख्यपरीक्षा में परिसाक्ष्य दिया है ।
(3) पुनः परीक्षा उन बातों के स्पष्टीकरण के प्रति उद्दिष्ट होगी, जो प्रतिपरीक्षा में निर्दिष्ट हुए हों, तथा यदि पुनःपरीक्षा में न्यायालय की अनुज्ञा से कोई नई बात प्रविष्ट की गई हो, तो प्रतिपक्षी उस बात के बारे में अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा कर सकेगा ।
खंड- 144. किसी दस्तावेज को पेश करने के लिए बुलाए गए व्यक्ति की प्रतिपरीक्षा ।
किसी दस्तावेज को पेश करने के लिए समनित व्यक्ति केवल इस तथ्य के कारण कि वह उसे पेश करता है साक्षी नहीं हो जाता तथा यदि और जब तक वह साक्षी के तौर पर बुलाया नहीं जाता, उसकी प्रतिपरीक्षा नहीं की जा सकती ।
खंड- 145. शील का साक्ष्य देने वाले साक्षी ।
शील का साक्ष्य देने वाले साक्षियों की प्रतिपरीक्षा और पुनःपरीक्षा की जा सकेगी ।
खंड- 146. सूचक प्रश्न ।
(1) कोई प्रश्न, जो उस उत्तर को सुझाता है, जिसे पूछने वाला व्यक्ति पाना चाहता है या पाने की आशा करता है, सूचक प्रश्न कहा जाता है ।
(2) सूचक प्रश्न मुख्यपरीक्षा में या पुनःपरीक्षा में, यदि विरोधी पक्षकार द्वारा आक्षेप किया जाता है, न्यायालय की अनुज्ञा के बिना नहीं पूछे जाने चाहिएं ।
(3) न्यायालय उन बातों के बारे में, जो पुनःस्थापना के रूप में या निर्विवाद है या जो उसकी राय में पहले से ही पर्याप्त रूप से साबित हो चुकी हैं, सूचक प्रश्नों के लिए अनुज्ञा देगा ।
(4) सूचक प्रश्न प्रतिपरीक्षा में पूछे जा सकेंगे ।
खंड- 147. लेखबद्ध विषयों के बारे में साक्ष्य ।
किसी साक्षी से, जबकि वह परीक्षाधीन है, यह पूछा जा सकेगा कि क्या कोई संविदा, अनुदान या सम्पत्ति का अन्य व्ययन, जिसके बारे में वह साक्ष्य दे रहा है, किसी दस्तावेज में अन्तर्विष्ट नहीं था, और यदि वह कहता है कि वह था, या यदि वह किसी ऐसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तु के बारे में कोई कथन करने ही वाला है, जिसे न्यायालय की राय में, पेश किया जाना चाहिए, तो प्रतिपक्षी आक्षेप कर सकेगा कि ऐसा साक्ष्य तब तक नहीं दिया जाए जब तक ऐसा दस्तावेज पेश नहीं कर दिया जाता, या जब तक वे तथ्य साबित नहीं कर दिए जाते, जो उस पक्षकार को, जिसने साक्षी को बुलाया है, उसका द्वितीयक साक्ष्य देने का हक देते हैं ।
स्पष्टीकरण कोई साक्षी उन कथनों का, जो दस्तावेजों की अन्तर्वस्तु के बारे में अन्य व्यक्तियों द्वारा किए गए थे, मौखिक साक्ष्य दे सकेगा, यदि ऐसे कथन स्वयमेव सुसंगत तथ्य हैं ।
दृष्टांत
प्रश्न यह है कि क्या क ने ख पर हमला किया। ग अभिसाक्ष्य देता है कि उसने क को घ से यह कहते सुना है कि ख ने मुझे एक पत्र लिखा था जिसमें मुझ पर चोरी का अभियोग लगाया था और मैं उससे बदला लूंगा । यह कथन हमले के लिए क का आशय दर्शित करने वाला होने के नाते सुसंगत है और उसका साक्ष्य दिया जा सकेगा, चाहे पत्र के बारे में कोई अन्य साक्ष्य न भी दिया गया हो ।
खंड- 148. पूर्वतन लेखबद्ध कथनों के बारे में प्रतिपरीक्षा ।
किसी साक्षी की उन पूर्वतन कथनों के बारे में, जो उसने लिखित रूप में किए हैं या जो लेखबद्ध किए गए हैं और जो प्रश्नगत बातों से सुसंगत हैं, ऐसा लेख उसे दिखाए बिना, या ऐसे लेख साबित हुए बिना, प्रतिपरीक्षा की जा सकेगी, किन्तु यदि उस लेख द्वारा उसका खण्डन करने का आशय है तो उस लेख को साबित किए जा सकने के पूर्व उसका ध्यान उस लेख के उन भागों की ओर आकर्षित करना होगा जिनका उपयोग उसका खण्डन करने के प्रयोजन से किया जाना है।
खंड- 149. प्रतिपरीक्षा में विधिपूर्ण प्रश्न ।
जब कि किसी साक्षी से प्रतिपरीक्षा की जाती है, तब उससे एतस्मिन्पूर्व निर्दिष्ट प्रश्नों के अतिरिक्त ऐसे कोई भी प्रश्न पूछे जा सकेंगे जिनकी प्रवृत्ति, -
(क) उसकी सत्यवादिता परखने की है; या
(ख) यह पता चलाने की है कि वह कौन है और जीवन में उसकी स्थिति क्या है; या
(ग) उसके शील को दोष लगाकर उसकी विश्वसनीयता को धक्का पहुंचाने की है, चाहे ऐसे प्रश्नों का उत्तर उसे प्रत्यक्षतः या परोक्षतः अपराध में फंसाने की प्रवृत्ति रखता हो, या उसे किसी शास्ति या समपहरण के लिए उच्छन्न करता हो या प्रत्यक्षतः या परोक्षतः उच्छन्न करने की प्रवृत्ति रखता हो :
परन्तु भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64, धारा 65, धारा 66, धारा 67, धारा 68, धारा 69, धारा 70 या धारा 71 के अधीन किसी अपराध के लिए या ऐसे किसी अपराध के किए जाने का प्रयत्न करने के लिए किसी अभियोजन में, जहां सम्मति का प्रश्न विवाद्य है वहां पीड़िता की प्रतिपरीक्षा में उसके साधारण व्यभिचार या ऐसी पीड़िता के किसी व्यक्ति के साथ पूर्व लैंगिक अनुभव के बारे में ऐसी सम्मति या सम्मति की प्रकृति के लिए साक्ष्य देना या प्रश्नों को पूछना अनुज्ञेय नहीं होगा ।
खंड- 150. साक्षी को उत्तर देने के लिए कब विवश किया जाए ।
यदि ऐसा कोई प्रश्न उस वाद या कार्यवाही से सुसंगत किसी बात से संबंधित है, तो धारा 137 के उपबन्ध उसको लागू होंगे ।
खंड- 151. न्यायालय विनिश्चित करेगा कि कब प्रश्न पूछा जाएगा और साक्षी को उत्तर देने के लिए कब विवश किया जाएगा ।
(1) यदि ऐसा कोई प्रश्न ऐसी बात से संबंधित है, जो उस बात या कार्यवाही से वहां तक के सिवाय, जहां तक कि वह साक्षी के शील को दोष लगाकर उसकी विश्वसनीयता पर प्रभाव डालती है, सुसंगत नहीं है, तो न्यायालय विनिश्चित करेगा कि साक्षी को उत्तर देने के लिए विवश किया जाए या नहीं और यदि वह ठीक समझे, तो साक्षी को सचेत कर सकेगा कि वह उसका उत्तर देने के लिए आबद्ध नहीं है ।
(2) अपने विवेक का प्रयोग करने में, न्यायालय निम्नलिखित विचारों को ध्यान में रखेगा, अर्थात् :-
(क) ऐसे प्रश्न उचित हैं, यदि वे ऐसी प्रकृति के हैं कि उनके द्वारा प्रवहण किए गए लांछन की सत्यता उस विषय में, जिसका वह साक्षी परिसाक्ष्य देता है, साक्षी की विश्वसनीयता के बारे में न्यायालय की राय पर गम्भीर प्रभाव डालेगी;
(ख) ऐसे प्रश्न अनुचित हैं, यदि उनके द्वारा प्रवहण किया गया लांछन ऐसी बातों के संबंध में है जो समय में उतनी अतीत हैं या जो इस प्रकार की है कि लांछन की सत्यता उस विषय में, जिसका वह साक्षी परिसाक्ष्य देता है, साक्षी की विश्वसनीयता के बारे में न्यायालय की राय पर प्रभाव नहीं डालेगी या बहुत थोड़ी मात्रा में प्रभाव डालेगी;
(ग) ऐसे प्रश्न अनुचित हैं, यदि साक्षी के शील के विरुद्ध किए गए लांछन के महत्व और उसके साक्ष्य के महत्व के बीच भारी अननुपात है;
(घ) न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, साक्षी के उत्तर देने से इंकार करने पर यह अनुमान लगा सकेगा कि उत्तर यदि दिया जाता तो, प्रतिकूल होता ।
खंड- 152. युक्तियुक्त आधारों के बिना प्रश्न न पूछा जाएगा ।
कोई भी ऐसा प्रश्न, जैसा धारा 151 में निर्दिष्ट है, नहीं पूछा जाना चाहिए, जब तक कि पूछने वाले व्यक्ति के पास यह सोचने के लिए युक्तियुक्त आधार न हो कि यह लांछन, जिसका उससे प्रवहण होता है, सुआधारित है ।
दृष्टांत
(क) किसी अधिवक्ता को किसी दूसरे अधिवक्ता द्वारा अनुदेश दिया गया है कि एक महत्वपूर्ण साक्षी डकैत है । उस साक्षी से यह पूछने के लिए कि क्या वह डकैत है, यह युक्तियुक्त आधार है ।
(ख) किसी अधिवक्ता को न्यायालय में किसी व्यक्ति द्वारा जानकारी दी जाती है कि एक महत्वपूर्ण साक्षी डकैत है । जानकारी देने वाला अधिवक्ता द्वारा प्रश्न किए जाने पर अपने कथन के लिए समाधानप्रद कारण बताता है । उस साक्षी से यह पूछने के लिए कि क्या वह डकैत है, यह युक्तियुक्त आधार है ।
(ग) किसी साक्षी से, जिसके बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है, यादृच्छिक यह पूछा जाता है कि क्या वह डकैत है । यहां इस प्रश्न के लिए कोई युक्तियुक्त आधार नहीं है ।
(घ) कोई साक्षी, जिसके बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है, अपने जीवन के ढंग और जीविका के साधनों के बारे में पूछे जाने पर असमाधानप्रद उत्तर देता है। उससे यह पूछने का कि क्या वह डकैत है यह युक्तियुक्त आधार हो सकता है ।
खंड- 153. युक्तियुक्त आधारों के बिना प्रश्न पूछे जाने की अवस्था में न्यायालय की प्रक्रिया ।
यदि न्यायालय की यह राय हो कि ऐसा कोई प्रश्न युक्तियुक्त आधारों के बिना पूछा गया था, तो यदि वह किसी अधिवक्ता द्वारा पूछा गया था, तो वह मामले की परिस्थितियों की उच्च न्यायालय को या अन्य प्राधिकारी को, जिसके अधिवक्ता अपनी वृत्ति के प्रयोग में अधीन है, रिपोर्ट कर सकेगा ।
खंड- 154. अशिष्ट और कलंकात्मक प्रश्न ।
न्यायालय किन्हीं प्रश्नों का या पूछताछों का, जिन्हें वह अशिष्ट या कलंकात्मक समझता है, चाहे ऐसे प्रश्न या जांच न्यायालय के समक्ष प्रश्नों को कुछ प्रभावित करने की प्रवृत्ति रखते हों, निषेध कर सकेगा, जब तक कि वे विवाद्यक तथ्यों के या उन विषयों के संबंध में न हों, जिनका ज्ञात होना यह अवधारित करने के लिए आवश्यक है कि विवाद्रद्यक तथ्य विद्यमान थे या नहीं ।
खंड- 155. अपमानित या क्षुब्ध करने के लिए आशयित प्रश्न ।
न्यायालय ऐसे प्रश्न का निषेध करेगा, जो उसे ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपमानित या क्षुब्ध करने के लिए आशयित है, या जो यद्यपि स्वयं में उचित है, तथापि रूप में न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है कि वह अनावश्यक तौर पर संतापकारी है ।
खंड- 156. सत्यवादिता परखने के प्रश्नों के उत्तरों का खण्डन करने के लिए साक्ष्य का अपवर्जन ।
किसी साक्षी से ऐसा कोई प्रश्न पूछा गया हो, जो जांच से केवल वहीं तक सुसंगत है जहां तक कि वह उसके शील को क्षति पहुंचा कर उसकी विश्वसनीयता को धक्का पहुंचाने की प्रवृत्ति रखता है, और उसने उसका उत्तर दे दिया हो, तब उसका खण्डन करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं दिया जाएगा; किन्तु यदि वह मिथ्या उत्तर देता है, तो तत्पश्चात् उस पर मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा ।
अपवाद 1- यदि किसी साक्षी से पूछा जाए कि क्या वह तत्पूर्व किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध हुआ था और वह उसका प्रत्याख्यान करे, तो उसकी पूर्व दोषसिद्धि का साक्ष्य दिया जा सकेगा ।
अपवाद 2- यदि किसी साक्षी से उसकी निष्पक्षता पर अधिक्षेप करने की प्रवृत्ति रखने वाला कोई प्रश्न पूछा जाए और वह सुझाए हुए तथ्यों के प्रत्याख्यान द्वारा उसका उत्तर देता है, तो उसका खण्डन किया जा सकेगा ।
दृष्टांत
(क) किसी निम्नांकक के विरुद्ध एक दावे का प्रतिरोध कपट के आधार पर किया जाता है । दावेदार से पूछा जाता है कि क्या उसने पिछले एक संव्यवहार में कपटपूर्ण दावा नहीं किया था । वह इसका प्रत्याख्यान करता है। यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य स्थापित किया जाता है कि उसने ऐसा दावा सचमुच किया था । यह साक्ष्य अग्राह्य है ।
(ख) किसी साक्षी से पूछा जाता है कि क्या वह किसी ओहदे से बेईमानी के लिए पदच्युत नहीं किया गया था । वह इसका प्रत्याख्यान करता है । यह दर्शित करने के लिए कि वह बेईमानी के लिए पदच्युत किया गया था साक्ष्य प्रतिस्थापित किया जाता है । यह साक्ष्य ग्राह्य नहीं है ।
(ग) क प्रतिज्ञात करता है कि उसने अमुक दिन ख को गोवा में देखा । क से पूछा जाता है कि क्या वह स्वयं उस दिन वाराणसी में नहीं था। वह इसका प्रत्याख्यान करता है । यह दर्शित करने के लिए कि क उस दिन वाराणसी में था साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है । यह साक्ष्य ग्राह्य है, इस नाते नहीं कि वह क का एक तथ्य के बारे में खण्डन करता है जो उसकी विश्वसनीयता पर प्रभाव डालता है, वरन् इस नाते कि वह इस अभिकथित तथ्य का खण्डन करता है कि ख प्रश्नगत दिन गोवा में देखा गया था । इनमें से हर एक मामले में साक्षी पर, यदि उसका प्रत्याख्यान मिथ्या था, मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा ।
(घ) क से पूछा जाता है कि क्या उसके कुटुम्ब और ख के, जिसके विरुद्ध वह साक्ष्य देता है, कुटुम्ब में कुल बैर नहीं रहा था । वह इसका प्रत्याख्यान करता है । उसका खण्डन इस आधार पर किया जा सकेगा कि यह प्रश्न उसकी निष्पक्षता पर अधिक्षेप करने की प्रवृत्ति रखता है ।
खंड- 157. पक्षकार द्वारा अपने ही साक्षी से प्रश्न ।
(1) न्यायालय उस व्यक्ति को, जो साक्षी को बुलाता है, उस साक्षी से कोई ऐसे प्रश्न करने की अपने विवेकानुसार अनुज्ञा दे सकेगा, जो प्रतिपक्षी द्वारा प्रतिपरीक्षा में किए जा सकते हैं ।
(2) इस धारा की कोई बात, उपधारा (1) के अधीन इस प्रकार अनुज्ञात किए गए व्यक्ति को ऐसे साक्षी के किसी भाग का अवलंब लेने के हक से वंचित नहीं करेगी ।
खंड- 158. साक्षी की विश्वसनीयता पर अधिक्षेप ।
किसी साक्षी की विश्वसनीयता पर प्रतिपक्षी द्वारा, या न्यायालय की सम्मति से उस पक्षकार द्वारा, जिसने उसे बुलाया है, निम्नलिखित प्रकारों से अधिक्षेप किया जा सकेगा, -
(क) उन व्यक्तियों के साक्ष्य द्वारा, जो यह परिसाक्ष्य देते हैं कि साक्षी के बारे में अपने ज्ञान के आधार पर, वे उसे विश्वसनीयता का अपात्र समझते हैं ;
(ख) यह साबित किए जाने द्वारा कि साक्षी को रिश्वत दी गई है या उसने रिश्वत की प्रस्थापना प्रतिगृहीत कर ली है या उसे अपना साक्ष्य देने के लिए कोई अन्य भ्रष्ट उत्प्रेरणा मिली है ;
(ग) उसके साक्ष्य के किसी ऐसे भाग से, जिसका खण्डन किया जा सकता है, असंगत पिछले कथनों को साबित करने द्वारा ।
स्पष्टीकरणकोई साक्षी जो किसी अन्य साक्षी को विश्वसनीयता के लिए अपात्र घोषित करता है, अपने से की गई मुख्य परीक्षा में अपने विश्वास के कारणों को चाहे न बताए, किन्तु प्रतिपरीक्षा में उससे उनके कारणों को पूछा जा सकेगा, और उन उत्तरों का, जिन्हें वह देता है, खण्डन नहीं किया जा सकता, तथापि यदि वे मिथ्या हों, तो तत्पश्चात् उस पर मिथ्या साक्ष्य देने का आरोप लगाया जा सकेगा ।
दृष्टांत
(क) ख को बेचे गए और परिदान किए गए माल के मूल्य के लिए ख पर क वाद लाता है । ग कहता है कि उसने ख को माल का परिदान किया । यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है कि किसी पूर्व अवसर पर उसने कहा था कि उसने उस माल का परिदान ख को नहीं किया था। यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
(ख) क, ख की हत्या का अभियुक्त है । ग कहता है कि ख ने मरते समय घोषित किया था कि क ने ख को यह घाव किया था, जिससे वह मर गया । यह दर्शित करने के लिए साक्ष्य प्रस्थापित किया जाता है कि किसी पूर्व अवसर पर ग ने कहा था कि खने मृत्यु के समय यह घोषित नहीं किया कि क ने ख को वह घाव दिया था, जिससे उसकी मृत्यु हुई । यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
खंड- 159. सुसंगत तथ्य के साक्ष्य की सम्पुष्टि करने की प्रवृत्ति रखने वाले प्रश्न ग्राह्य होंगे ।
जबकि कोई साक्षी, जिसकी सम्पुष्टि करना आशयित हो, किसी सुसंगत तथ्य का साक्ष्य देता है, तब उससे ऐसी अन्य किन्हीं भी परिस्थितियों के बारे में प्रश्न किया जा सकेगा, जिन्हें उसने उस समय या स्थान पर, या के निकट सम्प्रेक्षित किया, जिस पर ऐसा सुसंगत तथ्य घटित हुआ, यदि न्यायालय की यह राय हो कि ऐसी परिस्थितियां, यदि वे साबित हो जाएं साक्षी के उस सुसंगत तथ्य के बारे में, जिसका वह साक्ष्य देता है, परिसाक्ष्य को सम्पुष्ट करेंगी ।
दृष्टांत
क एक सह अपराधी किसी लूट का, जिसमें उसने भाग लिया था, वृत्तान्त देता है । वह लूट से असंसक्त विभिन्न घटनाओं का वर्णन करता है जो उस स्थान को और जहां कि वह लूट की गई थी, जाते हुए और वहां से आते हुए मार्ग में घटित हुई थी । इन तथ्यों का स्वतंत्र साक्ष्य स्वयं उस लूट के बारे में उसके साक्ष्य को सम्पुष्ट करने के लिए दिया जा सकेगा ।
खंड- 160. उसी तथ्य के बारे में पश्चात्वर्ती अभिसाक्ष्य की संपुष्टि करने के लिए साक्षी के पूर्वतन कथन साबित किए जा सकेंगे ।
किसी साक्षी के परिसाक्ष्य की सम्पुष्टि करने के लिए ऐसे साक्षी द्वारा उसी तथ्य से संबंधित, उस समय पर या के लगभग जब वह तथ्य घटित हुआ था, किया हुआ, या उस तथ्य का अन्वेषण करने के लिए विधि द्वारा सक्षम किसी प्राधिकारी के समक्ष किया हुआ कोई पूर्वतन कथन साबित किया जा सकेगा ।
खंड- 161. साबित कथन के बारे में, जो कथन धारा 26 या धारा 27 के अधीन सुसंगत है, कौन सी बातें साबित की जा सकेंगी ।
जब कभी कोई कथन, जो धारा 26 या धारा 27 के अधीन सुसंगत है, साबित कर दिया जाए, तब चाहे उसके खण्डन के लिए या संपुष्टि के लिए या जिसके द्वारा वह किया गया था उस व्यक्ति की विश्वसनीयता को अधिक्षिप्त या पुष्ट करने के लिए वे सभी बातें साबित की जा सकेंगी, जो यदि वह व्यक्ति साक्षी के रूप में बुलाया गया होता और उसने प्रतिपरीक्षा में सुझाई हुई बात की सत्यता का प्रत्याख्यान किया होता, तो साबित की जा सकती ।
खंड- 162. स्मृति ताजी करना ।
(1) कोई साक्षी जबकि वह परीक्षा के अधीन है, किसी ऐसे लेख को देख करके, जो कि स्वयं उसने उस संव्यवहार के समय जिसके संबंध में उससे प्रश्न किया जा रहा है, या इतने शीघ्र पश्चात् हो कि न्यायालय इसे संभाव्य समझता हो कि वह संव्यवहार उस समय उसकी स्मृति में ताजा था, अपनी स्मृति को ताजा कर सकेगा :
परंतु साक्षी उपर्युक्त प्रकार के किसी ऐसे लेख को भी देख सकेगा जो किसी अन्य व्यक्ति द्वारा तैयार किया गया हो और उस साक्षी द्वारा उपर्युक्त समय के भीतर पढ़ा गया हो, यदि वह उस लेख का, उस समय जबकि उसने उसे पढ़ा था, सही होना जानता था ।
(2) जब कभी कोई साक्षी अपनी स्मृति किसी दस्तावेज को देखने से ताजी कर सकता है, तब वह न्यायालय की अनुज्ञा से, ऐसे दस्तावेज की प्रतिलिपि को देख सकेगा :
परन्तु यह तब जबकि न्यायालय का समाधान हो गया हो कि मूल को पेश न करने के लिए पर्याप्त कारण है :
परंतु यह और कि विशेषज्ञ अपनी स्मृति वृत्तिक पुस्तकों को देख कर ताजी कर सकेगा ।
खंड- 163. धारा 162 में वर्णित दस्तावेज में कथित तथ्यों के लिए परिसाक्ष्य ।
कोई साक्षी किसी ऐसे दस्तावेज में, जैसा धारा 162 में वर्णित है, वर्णित तथ्यों का भी, चाहे उसे स्वयं उन तथ्यों का विनिर्दिष्ट स्मरण नहीं हो, परिसाक्ष्य दे सकेगा, यदि उसे यकीन है कि वे तथ्य उस दस्तावेज में ठीक-ठीक अभिलिखित थे ।
दृष्टांत
कोई लेखाकार कारबार के अनुक्रम में नियमित रूप से रखी जाने वाली बहियों में उसके द्वारा अभिलिखित तथ्यों का परिसाक्ष्य दे सकेगा, यदि वह जानता हो कि बहियां ठीक-ठीक रखी गई थीं, यद्यपि वह प्रविष्ट किए गए विशिष्ट संव्यवहारों को भूल गया हो ।
खंड- 164. स्मृति ताजी करने के लिए प्रयुक्त लेख के बारे में प्रतिपक्षी का अधिकार ।
पूर्ववर्ती अन्तिम दो धाराओं के उपबन्धों के अधीन निर्दिष्ट किए गए किसी लेख को प्रस्तुत किया जाएगा और प्रतिपक्षी को दिखाया जाएगा, यदि वह उसकी अपेक्षा करे । ऐसा पक्षकार, यदि वह चाहे, उस साक्षी से उसके बारे में प्रतिपरीक्षा कर सकेगा ।
खंड- 165. दस्तावेजों का पेश किया जाना ।
(1) किसी दस्तावेज को पेश करने के लिए समनित साक्षी, यदि वह उसके कब्जे में और शक्यधीन हो, ऐसे किसी आक्षेप के होने पर भी, जो उसे पेश करने या उसकी ग्राह्यता के बारे में हो, उसे न्यायालय में लाएगा :
परंतु ऐसे किसी आक्षेप की विधिमान्यता न्यायालय द्वारा विनिश्चित की जाएगी ।
(2) न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, उस दस्तावेज का, यदि वह राज्य की बातों से संबंधित न हो, निरीक्षण कर सकेगा, या अपने को उसकी ग्राह्यता अवधारित करने योग्य बनाने के लिए अन्य साक्ष्य ले सकेगा ।
(3) यदि ऐसे प्रयोजन के लिए किसी दस्तावेज का अनुवाद कराना आवश्यक हो तो न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, अनुवादक को निदेश दे सकेगा कि वह उसकी अन्र्तवस्तु को गुप्त रखे, सिवाय जबकि दस्तावेज को साक्ष्य में दिया जाना हो; तथा यदि अनुवादक ऐसे निदेश की अवज्ञा करे, तो यह धारित किया जाएगा कि उसने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 198 के अधीन अपराध किया है :
परंतु कोई न्यायालय, मंत्रियों और भारत के राष्ट्रपति के बीच हुई किसी संसूचना को इसके समक्ष प्रस्तुत करने की अपेक्षा नहीं करेगा ।
खंड- 166. मंगाई गई और सूचना पर पेश की गई दस्तावेज का साक्ष्य के रूप में दिया जाना ।
जबकि कोई पक्षकार किसी दस्तावेज को जिसे पेश करने की उसने दूसरे पक्षकार को सूचना दी है, मंगाता है और ऐसा दस्तावेज पेश किया जाता है और उस पक्षकार द्वारा, जिसने उसके पेश करने की मांग की थी, निरीक्षित हो जाता है, तब यदि उसे पेश करने वाला पक्षकार उससे ऐसा करने की अपेक्षा करता है, तो वह उसे साक्ष्य के रूप में देने के लिए आबद्ध होगा ।
खंड- 167. सूचना पाने पर जिसे दस्तावेज के पेश करने से इंकार कर दिया गया है उसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाना ।
जबकि कोई पक्षकार ऐसे किसी दस्तावेज को पेश करने से इन्कार कर देता है, जिसे पेश करने की उसे सूचना मिल चुकी है, तब वह तत्पश्चात् उस दस्तावेज को दूसरे पक्षकार की सम्मति के या न्यायालय के आदेश के बिना साक्ष्य के रूप में उपयोग में नहीं ला सकेगा ।
दृष्टांत
ख पर किसी करार के आधार पर क वाद लाता है और वह ख को उसे पेश करने की सूचना देता है । विचारण में क उस दस्तावेज की मांग करता है और ख उसे पेश करने से इंकार करता है । क उसकी अन्तर्वस्तु का द्वितीयक साक्ष्य देता है । क द्वारा दिए हुए द्वितीयक साक्ष्य का खण्डन करने के लिए या यह दर्शित करने के लिए कि वह करार स्टाम्पित नहीं है, ख दस्तावेज ही को पेश करना चाहता है । यह ऐसा नहीं कर सकता ।
खंड- 168. प्रश्न करने या पेश करने का आदेश देने की न्यायाधीश की शक्ति ।
न्यायाधीश सुसंगत तथ्यों का पता चलाने के लिए या उनका सबूत अभिप्राप्त करने के लिए, किसी भी रूप में किसी भी समय किसी भी साक्षी या पक्षकारों से किसी भी तथ्य के बारे में कोई भी प्रश्न, जो वह आवश्यक समझे, पूछ सकेगा, तथा किसी भी दस्तावेज या चीज को पेश करने का आदेश दे सकेगा; और न तो पक्षकार और न उनके प्रतिनिधि हकदार होंगे कि वह किसी भी ऐसे प्रश्न या आदेश के प्रति कोई भी आक्षेप करें, न ऐसे किसी भी प्रश्न के प्रत्युत्तर में दिए गए किसी भी उत्तर पर किसी भी साक्षी की न्यायालय की इजाजत के बिना प्रतिपरीक्षा करने के हकदार होंगे :
परन्तु निर्णय, उन तथ्यों पर, जो इस अधिनियम द्वारा सुसंगत घोषित किए गए हैं और जो सम्यक् रूप से साबित किए गए हों, आधारित होना चाहिए :
परन्तु यह और कि न तो यह धारा न्यायाधीश को किसी साक्षी को किसी ऐसे प्रश्न का उत्तर देने के लिए या किसी ऐसी दस्तावेज को पेश करने को विवश करने के लिए प्राधिकृत करेगी, जिसका उत्तर देने से या जिसे पेश करने से, यदि प्रतिपक्षी द्वारा वह प्रश्न पूछा गया होता या वह दस्तावेज मंगाया गया होता, तो ऐसा साक्षी दोनों धाराओं को सम्मिलित करते हुए धारा 127 से धारा 136, दोनों सहित, के अधीन उत्तर देने या प्रस्तुत करने से इंकार करने का हकदार होता; और न न्यायाधीश कोई ऐसा प्रश्न पूछेगा जिसका पूछना किसी अन्य व्यक्ति के लिए धारा 151 या धारा 152 के अधीन अनुचित होता; और न वह एतस्मिन्पूर्व अपवादित दशाओं के सिवाय किसी भी दस्तावेज के प्राथमिक साक्ष्य का दिया जाना अभिमुक्त करेगा ।
अध्याय 11- साक्ष्य के अनुचित ग्रहण और अग्रहण के विषय में
खंड- 169. साक्ष्य के अनुचित ग्रहण या अग्रहण के लिए नवीन विचारण नहीं होगा ।
साक्ष्य का अनुचित ग्रहण या अग्रहण स्वयमेव किसी भी मामले में नवीन विचारण के लिए या किसी विनिश्चय के उलटे जाने के लिए आधार नहीं होगा, यदि उस न्यायालय को, जिसके समक्ष ऐसा आक्षेप उठाया गया है, यह प्रतीत हो कि आक्षिप्त और गृहीत उस साक्ष्य के बिना भी विनिश्चय के न्यायोचित ठहराने के लिए यथेष्ट साक्ष्य था या यह कि यदि अगृहित साक्ष्य लिया भी गया होता तो उससे विनिश्चय में फेरफार न होना चाहिए था ।
अध्याय 12- निरसन और व्यावृत्ति
खंड- 170. निरसन और व्यावृत्ति
(1) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 निरसित किया जाता है ।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, यदि, उस तारीख से तत्काल पूर्व, जिसको यह अधिनियम प्रवृत्त होता है, कोई आवेदन, विचारण, जांच, अन्वेषण, कार्यवाही या अपील लंबित है, तो ऐसा आवेदन, विचारण, जांच, अन्वेषण, कार्यवाही या अपील, ऐसे प्रारंभ के ठीक पूर्व यथा प्रवृत्त भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के उपबंधों के अधीन व्यौहार किया जाएगा, मानो यह अधिनियम प्रवृत्त नहीं हुआ हो ।